रायपुर: सरकार की समर्पण और पुनर्वास नीति के तहत आर्थिक मदद देकर सरेंडर करने वाले नक्सलियों का पुनर्वास लोन वर्राटू अभियान चलाकर किया जा रहा है. जो नक्सली बाहरी लोगों के बहकावे में आकर हिंसा की राह पर चल पड़े थे, अब वही डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) का हिस्सा बन गए हैं. नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में अब यही पुलिस के सबसे बड़े हथियार हैं. घने जंगलों के साथ ही हल्बी और गोंडी भाषा की समझ नक्सलियों की बड़ी काट है तो वहीं गुरिल्ला युद्ध में महारत हर हमले का जवाब है. ऐसी ही एक जांबाज गार्ड हैं सुंदरी, जो नक्सली वारदातों के बीच बेखौफ होकर अपना फर्ज निभा रही हैं.
15 साल की उम्र में पकड़ ले गए थे नक्सली: महिला गार्ड सुंदरी ने बताया कि "हम 3 भाई-बहन थे. मेरे भाई की सरकारी नौकरी थी. इसलिए जब मैं 15 साल की थी, तब मुझे नक्सलियों ने पकड़ लिया था. मुझे उनके लिए 10 साल तक काम करना पड़ा. उनके लिए काम करने के बाद जब धीरे-धीरे उनके इरादों के बारे में पता चला तो हमने घर लौटने का तय किया."
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नक्सल ऑपरेशन में करते हैं पुलिस की मदद: सुंदरी बताती हैं कि "2014 में जब पति गीदम में थे तो किसी ने एक पेपर दिया, जिसमें लिखे नंबर के जरिए हममें सशस्त्र बल से संपर्क कर नक्सल मूनमेंट छोड़ने और सरेंडर करने की बात रखी. सरेंडर करने के बाद रहने के लिए सरकारी क्वार्टर मिला. बाद में मेरे पति और मैंने डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड ज्वाइन कर लिया. नक्सल ऑपरेशन में हम पुलिस की मदद करते हैं."