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Chhattisgarh Naxal Attack: नक्सली घटनाओं के बीच महिला जवान सुंदरी के जज्बे को सलाम

बंदूक पहले भी हाथ में थी, बंदूक आज भी हाथ में है. बदला है तो सिर्फ नजरिया, जिसने उसे हिंसा करने वाले से हिंसा रोकने वाला बना दिया. जिन नक्सलियों के लिए एक दशक तक काम किया अब वही हाथ उन्हें छत्तीसगढ़ से उखाड़ फेंकने में पुलिस की मदद कर रहे हैं.Salute to Sundari spirit

Salute to Sundari spirit
समर्पण और पुनर्वास नीति
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Published : Apr 26, 2023, 11:00 PM IST

समर्पण और पुनर्वास नीति

रायपुर: सरकार की समर्पण और पुनर्वास नीति के तहत आर्थिक मदद देकर सरेंडर करने वाले नक्सलियों का पुनर्वास लोन वर्राटू अभियान चलाकर किया जा रहा है. जो नक्सली बाहरी लोगों के बहकावे में आकर हिंसा की राह पर चल पड़े थे, अब वही डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) का हिस्सा बन गए हैं. नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में अब यही पुलिस के सबसे बड़े हथियार हैं. घने जंगलों के साथ ही हल्बी और गोंडी भाषा की समझ नक्सलियों की बड़ी काट है तो वहीं गुरिल्ला युद्ध में महारत हर हमले का जवाब है. ऐसी ही एक जांबाज गार्ड हैं सुंदरी, जो नक्सली वारदातों के बीच बेखौफ होकर अपना फर्ज निभा रही हैं.

15 साल की उम्र में पकड़ ले गए थे नक्सली: महिला गार्ड सुंदरी ने बताया कि "हम 3 भाई-बहन थे. मेरे भाई की सरकारी नौकरी थी. इसलिए जब मैं 15 साल की थी, तब मुझे नक्सलियों ने पकड़ लिया था. मुझे उनके लिए 10 साल तक काम करना पड़ा. उनके लिए काम करने के बाद जब धीरे-धीरे उनके इरादों के बारे में पता चला तो हमने घर लौटने का तय किया."

यह भी पढ़ें- Chhattisgarh : साल 2023 में छत्तीसगढ़ में लाल आतंक ने मचाया कोहराम

नक्सल ऑपरेशन में करते हैं पुलिस की मदद: सुंदरी बताती हैं कि "2014 में जब पति गीदम में थे तो किसी ने एक पेपर दिया, जिसमें लिखे नंबर के जरिए हममें सशस्त्र बल से संपर्क कर नक्सल मूनमेंट छोड़ने और सरेंडर करने की बात रखी. सरेंडर करने के बाद रहने के लिए सरकारी क्वार्टर मिला. बाद में मेरे पति और मैंने डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड ज्वाइन कर लिया. नक्सल ऑपरेशन में हम पुलिस की मदद करते हैं."

समर्पण और पुनर्वास नीति

रायपुर: सरकार की समर्पण और पुनर्वास नीति के तहत आर्थिक मदद देकर सरेंडर करने वाले नक्सलियों का पुनर्वास लोन वर्राटू अभियान चलाकर किया जा रहा है. जो नक्सली बाहरी लोगों के बहकावे में आकर हिंसा की राह पर चल पड़े थे, अब वही डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) का हिस्सा बन गए हैं. नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में अब यही पुलिस के सबसे बड़े हथियार हैं. घने जंगलों के साथ ही हल्बी और गोंडी भाषा की समझ नक्सलियों की बड़ी काट है तो वहीं गुरिल्ला युद्ध में महारत हर हमले का जवाब है. ऐसी ही एक जांबाज गार्ड हैं सुंदरी, जो नक्सली वारदातों के बीच बेखौफ होकर अपना फर्ज निभा रही हैं.

15 साल की उम्र में पकड़ ले गए थे नक्सली: महिला गार्ड सुंदरी ने बताया कि "हम 3 भाई-बहन थे. मेरे भाई की सरकारी नौकरी थी. इसलिए जब मैं 15 साल की थी, तब मुझे नक्सलियों ने पकड़ लिया था. मुझे उनके लिए 10 साल तक काम करना पड़ा. उनके लिए काम करने के बाद जब धीरे-धीरे उनके इरादों के बारे में पता चला तो हमने घर लौटने का तय किया."

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नक्सल ऑपरेशन में करते हैं पुलिस की मदद: सुंदरी बताती हैं कि "2014 में जब पति गीदम में थे तो किसी ने एक पेपर दिया, जिसमें लिखे नंबर के जरिए हममें सशस्त्र बल से संपर्क कर नक्सल मूनमेंट छोड़ने और सरेंडर करने की बात रखी. सरेंडर करने के बाद रहने के लिए सरकारी क्वार्टर मिला. बाद में मेरे पति और मैंने डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड ज्वाइन कर लिया. नक्सल ऑपरेशन में हम पुलिस की मदद करते हैं."

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