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सुब्रत रॉय: चिटफंड कंपनी से शुरू हुआ सफर सबसे शक्तिशाली लोगों की लिस्ट में शामिल होकर हुआ खत्म

सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक सुब्रत रॉय का कार्डियो अरेस्ट के बाद मुंबई के एक अस्पताल में मंगलवार देर रात निधन हो गया. जानकारी के मुताबिक सुब्रत रॉय कई बीमारियों से जूझ रहे थे.

Subrata Roy founder of Sahara India Pariwar
सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक सुब्रत रॉय
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 15, 2023, 6:55 AM IST

नई दिल्ली: सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक सुब्रत रॉय का मंगलवार देर रात मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया. 75 वर्षीय सुब्रत की कार्डियो अरेस्ट के बाद सांसे थम गईं. उन्हें गंभीर हालत में 12 नंवबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जानकारी के मुताबिक सुब्रत रॉय ने साल 1978 में सहारा इंडिया ग्रुप की स्थापना की थी. जिसके बाद वे लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए. उन्होंने एंबी वैली सिटी, सहारा एयरलाइंस, मीडिया समेत कई क्षेत्रों में अपनी जड़े जमाईं. साल 2012 में सुब्रत रॉय को भारत के 10 सबसे शक्तिशाली लोगों में चुना गया था.

बिहार के बंगाली परिवार में हुआ था जन्म
सुब्रत रॉय का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया जिले में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम सुधीर चंद्र रॉय और मां का नाम छवि रॉय था. सुब्रत रॉय की प्रारंभिक शिक्षा गोरखपुर से ही हुई. उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने गोरखपुर में ही बिजनेस की शुरुआत की. जिसे आगे चलकर सहारा इंडिया परिवार का नाम दिया गया. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सुब्रत रॉय ने साल 1976 में एक चिटफंड कंपनी में अपनी पहली नौकरी शुरू की थी. जिसका बाद में उन्होंने अधिग्रहण कर लिया.

धीरे-धीरे चढ़ते गए सफलता के सोपान
सुब्रत रॉय धीरे-धीरे अपने व्यवसाय को बढ़ाने में लग गए. उन्होंने कई क्षेत्रों में हाथ आजमाए. सुब्रत रॉय साल 1992 में मीडिया के क्षेत्र में उतरे. उन्होंने राष्ट्रीय सहारा के नाम से समाचार पत्र लॉन्च किया. इसके बाद उन्होंने पुणे में एंबी वैली सिटी बनाई. उसके बाद उन्होंने टेलीविजन इंडस्ट्री में झंडे गाड़े. सुब्रत रॉय ने विदेशों में भी कई संपत्तियां खरीदी हैं.

पढ़ें: सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय का निधन

साल 2014 में शुरू हुए मुश्किल भरे दिन
लगभग सभी क्षेत्रों में अपनी धाक जमा चुके सुब्रत रॉय के लिए साल 2014 बेहद खराब रहा. उन्हें इस साल कई कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ा. सेबी से विवाद के चलते उन्हें सुप्रीम कोर्ट का भी मुंह देखना पड़ा. जिसकी काफी लंबी लड़ाई चली. इसमें उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी. उन्हें काफी जद्दोजहद के बाद तिहाड़ जेल से आजादी मिली और वे पैरोल पर बाहर आए.

नई दिल्ली: सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक सुब्रत रॉय का मंगलवार देर रात मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया. 75 वर्षीय सुब्रत की कार्डियो अरेस्ट के बाद सांसे थम गईं. उन्हें गंभीर हालत में 12 नंवबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जानकारी के मुताबिक सुब्रत रॉय ने साल 1978 में सहारा इंडिया ग्रुप की स्थापना की थी. जिसके बाद वे लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए. उन्होंने एंबी वैली सिटी, सहारा एयरलाइंस, मीडिया समेत कई क्षेत्रों में अपनी जड़े जमाईं. साल 2012 में सुब्रत रॉय को भारत के 10 सबसे शक्तिशाली लोगों में चुना गया था.

बिहार के बंगाली परिवार में हुआ था जन्म
सुब्रत रॉय का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया जिले में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम सुधीर चंद्र रॉय और मां का नाम छवि रॉय था. सुब्रत रॉय की प्रारंभिक शिक्षा गोरखपुर से ही हुई. उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने गोरखपुर में ही बिजनेस की शुरुआत की. जिसे आगे चलकर सहारा इंडिया परिवार का नाम दिया गया. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सुब्रत रॉय ने साल 1976 में एक चिटफंड कंपनी में अपनी पहली नौकरी शुरू की थी. जिसका बाद में उन्होंने अधिग्रहण कर लिया.

धीरे-धीरे चढ़ते गए सफलता के सोपान
सुब्रत रॉय धीरे-धीरे अपने व्यवसाय को बढ़ाने में लग गए. उन्होंने कई क्षेत्रों में हाथ आजमाए. सुब्रत रॉय साल 1992 में मीडिया के क्षेत्र में उतरे. उन्होंने राष्ट्रीय सहारा के नाम से समाचार पत्र लॉन्च किया. इसके बाद उन्होंने पुणे में एंबी वैली सिटी बनाई. उसके बाद उन्होंने टेलीविजन इंडस्ट्री में झंडे गाड़े. सुब्रत रॉय ने विदेशों में भी कई संपत्तियां खरीदी हैं.

पढ़ें: सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय का निधन

साल 2014 में शुरू हुए मुश्किल भरे दिन
लगभग सभी क्षेत्रों में अपनी धाक जमा चुके सुब्रत रॉय के लिए साल 2014 बेहद खराब रहा. उन्हें इस साल कई कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ा. सेबी से विवाद के चलते उन्हें सुप्रीम कोर्ट का भी मुंह देखना पड़ा. जिसकी काफी लंबी लड़ाई चली. इसमें उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी. उन्हें काफी जद्दोजहद के बाद तिहाड़ जेल से आजादी मिली और वे पैरोल पर बाहर आए.

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