मुंबई : शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आत्मनिर्भर भारत और राष्ट्रवाद का नारा खोखला ढोल साबित हुआ. ऐसा लग रहा है कि 2020 में चीन एक बार फिर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार होगा.
शिवसेना ने कहा लद्दाख सीमा पर भारत-चीन के बीच का तनाव पिछले सप्ताह समाप्त हो गया. अब दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों के बीच भी तनाव कम होने के संकेत मिल रहे हैं. चीन की लगभग 45 कंपनियों को हिंदुस्तान में कारोबार शुरू करने की छूट दिए जाने की संभावना है. संक्षेप में कहें, तो कोरोना के कहर के बाद चीनी कंपनियों, उनके हिंदुस्तान में कारोबार और निवेश आदि के संबंध में मोदी सरकार द्वारा कदम उठाए जा रहे हैं.
कहा जाता है कि राजनीति और विदेशी संबंध, परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं. उसमें समय के अनुसार सख्ती कम या ज्यादा होती रहती है. ऐसा ही कुछ भारत-चीन के बीच हुए गतिरोध के बाद देखने को मिल रहा है, जहां एक ओर सीमा पर चीनी सेना के साथ तनाव कम हुआ, तो वहीं भारत में चीन के साथ व्यापार संबंधों में सख्ती कम देखने को मिल सकती है.
क्या इसे महज संयोग माना जाए ? आठ महीनों से पूर्वी लद्दाख सीमा पर भारत-चीन का सैन्य संघर्ष चरम पर पहुंच गया था. चीनी सेना द्वारा भारत में घुसपैठ भी की गई, इसकी वजह से गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हुआ संघर्ष हुआ.
इसके बाद दोनों देशों के बीच सीमा से पीछे हटने को लेकर बातचीत होती है. इस परिप्रेक्ष्य में पिछले सप्ताह चीन और भारत के बीच ‘सामंजस्य’ करार होता है, दोनों सेनाएं पीछे हटती हैं, सीमा पर तनाव कम होता है और यहां भारत-चीन व्यापार फिर से शुरू होने की खबरें प्रकाशित होती हैं.
सरकार भले ही हाथ झटक ले, परंतु सीमा पर चीन दो कदम पीछे हटा और यहां भारत से उद्योग-व्यापार में ‘चार कदम’ आगे बढ़ गया, ऐसा दृश्य स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है. विदेश नीति से जुड़े संबंधों में ‘दो दो, दो लो’ ऐसा ही होता है, लेकिन चीन हमारा सबसे बड़ा धोखेबाज पड़ोसी है.
व्यावसायिक हित के लिए सीमा पर नरमी बरतने वाला चीन उद्देश्य पूरा हो जाने पर सरहद पर फिर खुराफात कर सकता है. कोरोना संकट के परिप्रेक्ष्य में गत वर्ष टिकटॉक सहित 59 चीनी एप्स पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया था. चीन के साथ अन्य कुछ व्यावसायिक करार भी रद्द कर दिए गए थे. चीनी निवेश पर अंकुश लगाया गया.
आत्मनिर्भर भारत का नारा देकर 'चीनी कम' नीति पर राष्ट्रवाद की झालर चढ़ाई गई. मोदी सरकार द्वारा चीन की परेशानी बढ़ाने का ढोल पीटा गया. फिर अब आठ महीने में ही ऐसा क्या हुआ कि 45 चीनी कंपनियों के भारत में व्यवसाय के लिए लाल गलीचा बिछाया जा रहा है.
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आत्मनिर्भर भारत और राष्ट्रवाद का खोखला ढोल साबित हुआ, तो चीन के दबाव में आप नरम हो गए? भारत से चीन को होने वाला निर्यात बढ़ा. हालांकि 2019 में दोनों देशों के बीच व्यापार थोड़ा कम हुआ है, ये सच है कि 2020 में चीन एक बार फिर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार होगा, ये हकीकत है, चीनी सामान का बहिष्कार, स्वदेशी का नारा, चीनी एप्स पर प्रतिबंध आदि के दावे गुब्बारे की तरह राष्ट्रवाद की हवा भरकर हवा में उड़ गए, लेकिन भारतीय वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट ने खुद ही इन गुब्बारों में सुई मार दी.
अब तो कुछ चीनी कंपनियों को ही भारत में व्यवसाय करने की अनुमति दिए जाने के संकेत हैं. मतलब वहां सीमा पर चीन पीछे हटता है और यहां व्यापार में हमारी सरकार उसे आगे बढ़ने देती है. केंद्र सरकार न ही इस संयोग को स्वीकार करेगी, न ही वहां पिछड़ने और यहां अगुवाई वाली चाल का खुलासा करेगी.