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एंटीलिया मामले में शिवसेना ने केंद्र पर साधा निशाना - editorial on antilia case

एंटीलिया मामले को लेकर पूरे महाराष्ट्र में हड़कंप मचा हुआ है. पहले विस्फोटक से भरी गाड़ी के मिलने और फिर गाड़ी के मालिक के संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए जाने से कई सवाल खड़े होते हैं. इन्ही के आधार पर विपक्ष महा विकास अघाड़ी को घेरने की कोशिश कर रही है. इसी क़ड़ी में शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक संपादकीय छापा गया है, जिसमें केंद्र पर जमकर निशाना साधा गया है.

saamana editorial on antilia case
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Published : Mar 19, 2021, 2:14 PM IST

मुंबई : उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर से बम से लदी गाड़ी बरामद होने के बात महाराष्ट्र की सियासत में हलचल मची हुई है. इसको लेकर शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय में केंद्र को निशाना बनाया गया है.

संपादकीय में कहा गया, मुंबई के कारमाइकल रोड पर एक कार मिली थी, जिसमें जिलेटिन की 20 छड़ें रखी हुई थीं. उन छड़ों में विस्फोट नहीं हुआ परंतु राजनीति और प्रशासन में बीते कुछ दिनों से ये छड़ें धमाके कर रही हैं.

इस पूरे मामले में अब मुंबई पुलिस के आयुक्त परमबीर सिंह को उनके पद से जाना पड़ा है. राज्य के पुलिस महासंचालक रहे हेमंत नगराले अब मुंबई पुलिस के नए आयुक्त बन गए हैं, तो वहीं रजनीश सेठ को पुलिस महासंचालक नियुक्त किया गया है. जिसे हम सामान्य बदली कहते हैं ये वैसी बदली नहीं है.

एक विशिष्ट परिस्थिति में सरकार को ये अदला-बदली करनी पड़ी है. नए पुलिस आयुक्त नगराले ने तुरंत कहा है कि 'पुलिस ने पहले जो गलतियां हुई हैं वो दोबारा नहीं होंगी. पुलिस की छवि को संभाला जाएगा.' नगराले का बयान महत्वपूर्ण है.

मुकेश अंबानी के घर के आसपास मिली संदेहास्पद कार व उसके बाद कार के मालिक मनसुख हिरेन की संदिग्ध परिस्थितियों में मिली लाश का मामला निश्चित तौर पर चिंताजनक है.

विपक्ष ने इस मामले में कुछ सवाल खड़े किए हैं ये सच है. परंतु राज्य का आतंक निरोधी दस्ता इस मामले में हत्या का मामला दर्ज करके जांच कर रहा था. इसी दौरान 'एनआईए' ने आनन-फानन में जांच की कमान अपने हाथ में ले ली.

महाराष्ट्र सरकार को किसी तरह से बदनाम कर सकें तो देखें, इसके अलावा कोई और 'नेक मकसद' इसके पीछे नहीं हो सकता है. क्राइम ब्रांच के एक सहायक पुलिस निरीक्षक के इर्द-गिर्द यह मामला घूम रहा है और इसके पीछे का मकसद जल्द ही सामने आएगा.

किसी भी हाल में इसके पीछे आतंकवाद के तार न जुड़ने के बावजूद इस अपराध की जांच में 'एनआईए' का घुसना, ये क्या मामला है? आतंकवाद से संबंधित प्रकरणों की जांच 'एनआईए' करती है. परंतु जिलेटिन की छड़ों की जांच करनेवाली 'एनआईए' ने उरी हमला, पठानकोट हमला व पुलवामा हमले में क्या जांच की, कौन-सा सत्यशोधन किया, कितने गुनहगारों को गिरफ्तार किया? ये भी रहस्य ही है. लेकिन मुंबई में 20 जिलेटिन की छड़ें 'एनआईए' के लिए बड़ी चुनौती ही सिद्ध होती नजर आ रही हैं.

इस पूरे घटनाक्रम का श्रेय राज्य का विपक्ष ले रहा है. हिरासत में आए पुलिस अधिकारी वाझे के पीछे वास्तविक सूत्रधार कौन है? आदि सवाल उन्होंने पूछा है. मनसुख हिरेन की संदिग्ध मौत हो गई और इसके लिए सभी को दुख है. भारतीय जनता पार्टी को थोड़ा ज्यादा ही दुख हुआ है.

परंतु इसी पार्टी के एक सांसद रामस्वरूप शर्मा की संसद का अधिवेशन शुरू रहने के दौरान दिल्ली में संदिग्ध मौत हो गई. शर्मा प्रखर हिंदुत्ववादी विचारोंवाले थे. उनकी संदिग्ध मौत के बारे में भाजपा वाले छाती पीटते नजर नहीं आ रहे हैं.

मोहन डेलकर की खुदकुशी के मामले में तो कोई 'एक शब्द' भी बोलने को तैयार नहीं है. सुशांत सिंह राजपूत और उसके परिजनों को तो सभी भूल गए हैं. किसी की मौत का निवेश वैसे किया जाए, यह वर्तमान विपक्ष से सीखना चाहिए. मुंबई पुलिस का मनोबल गिराने का प्रयास इस दौर में चल रहा है. विपक्ष को कम-से-कम इतना पाप तो नहीं करना चाहिए.

पढ़ें-हिरेन मौत मामला : फडणवीस पर शिवसेना नेता का पलटवार, कहा- हर जांच के लिए तैयार

विपक्ष ने महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होने का सपना पाला होगा तो यह उनकी समस्या है. परंतु ऐसी शरारत करने से उन्हें सत्ता की कुर्सी मिल जाएगी ये भ्रम है. पुलिस जैसी संस्था राज्य की रीढ़ होती है. उसकी प्रतिष्ठा का सभी को जतन करना चाहिए. विपक्ष महाराष्ट्र के प्रति निष्ठावान होगा तो वह पुलिस की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर राजनीति नहीं करेगा.

मनसुख प्रकरण के पीछे का पॉलिटिकल बॉस कौन? यह उनका सवाल है. इसका जवाब उन्हें ही ढूंढ़ना चाहिए. परंतु ऐसे प्रकरणों में कोई भी पॉलिटिकल बॉस नहीं होता है. महाराष्ट्र की यह परंपरा नहीं है. मनसुख की हत्या हुई होगी तो अपराधी बचेंगे नहीं. उन्होंने आत्महत्या की होगी तो उसके पीछे का कारण ढूंढ़ा जाएगा और उसी के लिए मुंबई सहित राज्य के पुलिस बल में भारी फेरबदल किया गया है.

विपक्ष को इसका विश्वास रखना चाहिए. मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से परमवीर सिंह को बदल दिया गया इसका मतलब वे गुनहगार सिद्ध नहीं होते. मुंबई पुलिस आयुक्त पद की कमान उन्होंने अत्यंत कठिन समय में संभाली थी. कोरोना संकट से लड़ने के लिए उन्होंने पुलिस में जोश निर्माण किया था. धारावी जैसे क्षेत्र में वे खुद जाते रहे. सुशांत, कंगना जैसे प्रकरणों में उन्होंने पुलिस का मनोबल टूटने नहीं दिया.

इसलिए आगे इस प्रकरण में सीबीआई आई तो भी मुंबई पुलिस की जांच सीबीआई के पास नहीं जा सकी. टीआरपी घोटाले की फाइल उन्हीं के समय में खोली गई. परमवीर सिंह पर दिल्ली की एक विशिष्ट लॉबी का गुस्सा था, जो कि इसी वजह से था. उनके हाथ में जिलेटिन की 20 छड़ें पड़ गईं. उन छड़ों में धमाका हुए बगैर ही पुलिस दल में दहशत फैल गई. नए आयुक्त हेमंत नगराले को साहस व सावधानी से काम करना होगा.

मुंबई : उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर से बम से लदी गाड़ी बरामद होने के बात महाराष्ट्र की सियासत में हलचल मची हुई है. इसको लेकर शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय में केंद्र को निशाना बनाया गया है.

संपादकीय में कहा गया, मुंबई के कारमाइकल रोड पर एक कार मिली थी, जिसमें जिलेटिन की 20 छड़ें रखी हुई थीं. उन छड़ों में विस्फोट नहीं हुआ परंतु राजनीति और प्रशासन में बीते कुछ दिनों से ये छड़ें धमाके कर रही हैं.

इस पूरे मामले में अब मुंबई पुलिस के आयुक्त परमबीर सिंह को उनके पद से जाना पड़ा है. राज्य के पुलिस महासंचालक रहे हेमंत नगराले अब मुंबई पुलिस के नए आयुक्त बन गए हैं, तो वहीं रजनीश सेठ को पुलिस महासंचालक नियुक्त किया गया है. जिसे हम सामान्य बदली कहते हैं ये वैसी बदली नहीं है.

एक विशिष्ट परिस्थिति में सरकार को ये अदला-बदली करनी पड़ी है. नए पुलिस आयुक्त नगराले ने तुरंत कहा है कि 'पुलिस ने पहले जो गलतियां हुई हैं वो दोबारा नहीं होंगी. पुलिस की छवि को संभाला जाएगा.' नगराले का बयान महत्वपूर्ण है.

मुकेश अंबानी के घर के आसपास मिली संदेहास्पद कार व उसके बाद कार के मालिक मनसुख हिरेन की संदिग्ध परिस्थितियों में मिली लाश का मामला निश्चित तौर पर चिंताजनक है.

विपक्ष ने इस मामले में कुछ सवाल खड़े किए हैं ये सच है. परंतु राज्य का आतंक निरोधी दस्ता इस मामले में हत्या का मामला दर्ज करके जांच कर रहा था. इसी दौरान 'एनआईए' ने आनन-फानन में जांच की कमान अपने हाथ में ले ली.

महाराष्ट्र सरकार को किसी तरह से बदनाम कर सकें तो देखें, इसके अलावा कोई और 'नेक मकसद' इसके पीछे नहीं हो सकता है. क्राइम ब्रांच के एक सहायक पुलिस निरीक्षक के इर्द-गिर्द यह मामला घूम रहा है और इसके पीछे का मकसद जल्द ही सामने आएगा.

किसी भी हाल में इसके पीछे आतंकवाद के तार न जुड़ने के बावजूद इस अपराध की जांच में 'एनआईए' का घुसना, ये क्या मामला है? आतंकवाद से संबंधित प्रकरणों की जांच 'एनआईए' करती है. परंतु जिलेटिन की छड़ों की जांच करनेवाली 'एनआईए' ने उरी हमला, पठानकोट हमला व पुलवामा हमले में क्या जांच की, कौन-सा सत्यशोधन किया, कितने गुनहगारों को गिरफ्तार किया? ये भी रहस्य ही है. लेकिन मुंबई में 20 जिलेटिन की छड़ें 'एनआईए' के लिए बड़ी चुनौती ही सिद्ध होती नजर आ रही हैं.

इस पूरे घटनाक्रम का श्रेय राज्य का विपक्ष ले रहा है. हिरासत में आए पुलिस अधिकारी वाझे के पीछे वास्तविक सूत्रधार कौन है? आदि सवाल उन्होंने पूछा है. मनसुख हिरेन की संदिग्ध मौत हो गई और इसके लिए सभी को दुख है. भारतीय जनता पार्टी को थोड़ा ज्यादा ही दुख हुआ है.

परंतु इसी पार्टी के एक सांसद रामस्वरूप शर्मा की संसद का अधिवेशन शुरू रहने के दौरान दिल्ली में संदिग्ध मौत हो गई. शर्मा प्रखर हिंदुत्ववादी विचारोंवाले थे. उनकी संदिग्ध मौत के बारे में भाजपा वाले छाती पीटते नजर नहीं आ रहे हैं.

मोहन डेलकर की खुदकुशी के मामले में तो कोई 'एक शब्द' भी बोलने को तैयार नहीं है. सुशांत सिंह राजपूत और उसके परिजनों को तो सभी भूल गए हैं. किसी की मौत का निवेश वैसे किया जाए, यह वर्तमान विपक्ष से सीखना चाहिए. मुंबई पुलिस का मनोबल गिराने का प्रयास इस दौर में चल रहा है. विपक्ष को कम-से-कम इतना पाप तो नहीं करना चाहिए.

पढ़ें-हिरेन मौत मामला : फडणवीस पर शिवसेना नेता का पलटवार, कहा- हर जांच के लिए तैयार

विपक्ष ने महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होने का सपना पाला होगा तो यह उनकी समस्या है. परंतु ऐसी शरारत करने से उन्हें सत्ता की कुर्सी मिल जाएगी ये भ्रम है. पुलिस जैसी संस्था राज्य की रीढ़ होती है. उसकी प्रतिष्ठा का सभी को जतन करना चाहिए. विपक्ष महाराष्ट्र के प्रति निष्ठावान होगा तो वह पुलिस की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर राजनीति नहीं करेगा.

मनसुख प्रकरण के पीछे का पॉलिटिकल बॉस कौन? यह उनका सवाल है. इसका जवाब उन्हें ही ढूंढ़ना चाहिए. परंतु ऐसे प्रकरणों में कोई भी पॉलिटिकल बॉस नहीं होता है. महाराष्ट्र की यह परंपरा नहीं है. मनसुख की हत्या हुई होगी तो अपराधी बचेंगे नहीं. उन्होंने आत्महत्या की होगी तो उसके पीछे का कारण ढूंढ़ा जाएगा और उसी के लिए मुंबई सहित राज्य के पुलिस बल में भारी फेरबदल किया गया है.

विपक्ष को इसका विश्वास रखना चाहिए. मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से परमवीर सिंह को बदल दिया गया इसका मतलब वे गुनहगार सिद्ध नहीं होते. मुंबई पुलिस आयुक्त पद की कमान उन्होंने अत्यंत कठिन समय में संभाली थी. कोरोना संकट से लड़ने के लिए उन्होंने पुलिस में जोश निर्माण किया था. धारावी जैसे क्षेत्र में वे खुद जाते रहे. सुशांत, कंगना जैसे प्रकरणों में उन्होंने पुलिस का मनोबल टूटने नहीं दिया.

इसलिए आगे इस प्रकरण में सीबीआई आई तो भी मुंबई पुलिस की जांच सीबीआई के पास नहीं जा सकी. टीआरपी घोटाले की फाइल उन्हीं के समय में खोली गई. परमवीर सिंह पर दिल्ली की एक विशिष्ट लॉबी का गुस्सा था, जो कि इसी वजह से था. उनके हाथ में जिलेटिन की 20 छड़ें पड़ गईं. उन छड़ों में धमाका हुए बगैर ही पुलिस दल में दहशत फैल गई. नए आयुक्त हेमंत नगराले को साहस व सावधानी से काम करना होगा.

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