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रूस-यूक्रेन युद्ध का भारत के कृषि क्षेत्र पर होगा प्रभाव, जानें विशेषज्ञ की राय - खाद्य सामग्री की कीमतें बढ़ने की संभावना

रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) के बीच संभावना जताई जा रही है कि भारत में खाद्य तेलों और आयात की जाने वाली अन्य खाद्य सामग्री की कीमतें बढ़ सकती हैं. इस मसले पर दिल्ली में ईटीवी भारत के संवाददाता अभिजीत ठाकुर ने कृषि विशेषज्ञ और इंडियन चैम्बर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष एमजे खान से विशेष बातचीत की है.

एमजे खान
एमजे खान
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Published : Mar 1, 2022, 7:29 PM IST

Updated : Mar 1, 2022, 8:04 PM IST

नई दिल्ली : रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे भीषण युद्ध (Russia-Ukraine war) के बीच भारत के कृषि और खाद्य बजार पर भी इसका व्यापक असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है. युद्ध की स्थिति के बीच खाद्य तेलों और आयात की जाने वाली अन्य खाद्य सामग्री की कीमतें बढ़ने की संभावना विशेषज्ञ जता रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ गेहूं और कुछ अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात में इसे एक अवसर के रूप में भी देखा जा रहा है. ईटीवी भारत ने इस विषय पर कृषि विशेषज्ञ और इंडियन चैम्बर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष एमजे खान से विशेष बातचीत की है.

एमजे खान ने बताया कि वर्ष 2021 की बात करें तो यूक्रेन के साथ भारत का लगभग तीन बिलियन डॉलर का कारोबार है, जबकि रूस के साथ लगभग 11.5 बिलियन डॉलर का है. यूक्रेन के साथ तीन बिलियन डॉलर के व्यापार में भारत करीब 500 मिलियन डॉलर का निर्यात करता है, जबकि ढाई बिलियन डॉलर का भारत में आयात होता है. युद्ध के कारण निर्यात को बढ़ाने का अवसर जरूर बढ़ा है लेकिन भारत कैसे इस अवसर पर पड़ोसी देशों के साथ सामंजस्य स्थापित कर काम करता है यह देखना होगा.

इंडियन चैम्बर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष एमजे खान से विशेष बातचीत

उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान सप्लाई चेन की समस्या के कारण शुरुआती दिक्कतें हो सकती हैं, लेकिन युद्ध के खत्म होने के बाद भारत इस अवसर को भुना कर निर्यात बढ़ा सकता है. भारत से दवाइयों, कृषि रसायन और सॉफ्टवेयर का निर्यात बड़ी मात्रा में होता है. आगे चल कर इनकी मांग में बढ़ोतरी होगी, लेकिन निर्यात की बात करें तो रूस और यूक्रेन मिला कर भारत में सूरजमुखी का 90% तक आयात होता है जिसमें अब रुकावट आएगी. खान ने कहा कि यूक्रेन विश्व में सूरजमुखी का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिससे खाद्य तेल का उत्पादन होता है. इसका विकल्प भारत को तैयार करना होगा. मक्के के उत्पादन में भी यूक्रेन पांचवें स्थान पर है. सूरजमुखी तेल के मामले में ये दोनों देश विश्व में 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं.

उन्होंने कहा कि यदि गेहूं की बात करें तो रूस और यूक्रेन से अफ्रीकी और यूरोपीय देशों में गेहूं बड़ी मात्रा में निर्यात होता है. दोनों देश मिला कर विश्व को 21 प्रतिशत गेहूं का निर्यात करते हैं. अब सप्लाई चेन में व्यवधान आने से उन देशों में मांग बढ़ेगी और भारत के लिए यह एक अवसर हो सकता है रिप्लेस्मेंट सप्लायर के रूप में.

एमजे खान ने कहा कि खाद्य तेल में भारत लगभग एक बिलियन डॉलर से ज्यादा का निर्यात करता है. कृषि क्षेत्र में इसका असर इसलिए भी देखने को मिलेगा क्योंकि पेट्रोलियम पदार्थों के आयत में भी समस्या आएगी. इसके कारण डीजल के दाम में बढ़ोतरी होने पर किसानों के लिए लागत मूल्य बढ़ने का खतरा है.

हालांकि विशेषज्ञ यह भी स्पष्ट करते हैं कि बफर स्टॉक के कारण बजार पर युद्ध का तुरंत असर नहीं दिखेगा इसलिए अभी खाद्य तेलों के कीमत में बढ़ोतरी नहीं होनी चाहिए. जहां तक भविष्य की संभावना को देखते हुए विकल्प तैयार करने की बात है, इस पर एमजे खान कहते हैं कि भारत पहले ही सनफ्लावर ऑयल से पाम ऑयल की तरफ बढ़ रहा है, जिसकी आपूर्ति इस समय अधिक है.

उन्होंने कहा कि मलेशिया, इंडोनेशिया और कुछ अफ्रीकी देशों से पाम ऑयल के निर्यात को बढ़ाया जा सकता है जो भारत कर लेगा. इस तरह से वैकल्पिक व्यवस्था और बफर स्टॉक होने के कारण तुरंत असर नहीं होना चाहिए, लेकिन बजार पर युद्ध की परिस्थिति का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता है. इसलिए खाद्य तेलों में 15 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होने की आशंका जताई जा सकती है.

यह भी पढ़ें- रूस-यूक्रेन युद्ध : कई देशों ने किया रणनीति में बदलाव, यूक्रेन को मदद का एलान

भारत में गेहूं का बफर स्टॉक इस समय आवश्यकता से दोगना है और युद्ध की खबरों के बीच इसे निर्यात को बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा जा रहा है. इस पर विशेषज्ञ कहते हैं कि यह अवसर इस बात पर निर्भर करेगा कि युद्ध कितना लंबा चलता है. यदि एक महीने के भीतर युद्ध विराम होता है तो भारत रूस और यूक्रेन के रिप्लेस्मेंट सप्लायर के रूप में नहीं उभर सकता है. इसका कारण है कि अंतरराष्ट्रीय समझौते लंबे समय के लिए होते हैं, क्योंकि खरीदार से जो अंतरराष्ट्रीय करार होते हैं उसमें प्रावधान होता है कि तीन या छह महीने तक सप्लाई में देरी होने के बाद ही करार खत्म हो सकता है. उस परिस्थिति में कोई अन्य देश इसमें प्रवेश कर ले इसकी संभावना नहीं होगी, लेकिन नई मांग को पूरा करने के लिए भविष्य में भारत के लिए अवसर आ सकता है. गेहूं की बात करें तो इसमें 10 से 15 प्रतिशत तक का अवसर भारत के लिए बन सकता है.

मनोवैज्ञानिक असर के कारण घरेलू बजार में कीमतें न बढ़ें, इसके लिए सरकार अपने पास उप्लब्ध पर्याप्त स्टॉक की जानकारी सार्वजनिक कर सकती है जिससे लोगों में भय की स्थिति नहीं बनेगी. इसके अलावा कीमतों को कम करने के लिए NAFED या FCI के पास उप्लब्ध स्टॉक को भी लाया जा सकता है. भारत ने जिन अन्य देशों से आपूर्ति के लिए करार किया है या करने की प्रक्रिया में है उसे बताया जा सकता है. इन सबको मिला कर विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि सरकार चाहे तो कीमतों पर हाल में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

नई दिल्ली : रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे भीषण युद्ध (Russia-Ukraine war) के बीच भारत के कृषि और खाद्य बजार पर भी इसका व्यापक असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है. युद्ध की स्थिति के बीच खाद्य तेलों और आयात की जाने वाली अन्य खाद्य सामग्री की कीमतें बढ़ने की संभावना विशेषज्ञ जता रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ गेहूं और कुछ अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात में इसे एक अवसर के रूप में भी देखा जा रहा है. ईटीवी भारत ने इस विषय पर कृषि विशेषज्ञ और इंडियन चैम्बर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष एमजे खान से विशेष बातचीत की है.

एमजे खान ने बताया कि वर्ष 2021 की बात करें तो यूक्रेन के साथ भारत का लगभग तीन बिलियन डॉलर का कारोबार है, जबकि रूस के साथ लगभग 11.5 बिलियन डॉलर का है. यूक्रेन के साथ तीन बिलियन डॉलर के व्यापार में भारत करीब 500 मिलियन डॉलर का निर्यात करता है, जबकि ढाई बिलियन डॉलर का भारत में आयात होता है. युद्ध के कारण निर्यात को बढ़ाने का अवसर जरूर बढ़ा है लेकिन भारत कैसे इस अवसर पर पड़ोसी देशों के साथ सामंजस्य स्थापित कर काम करता है यह देखना होगा.

इंडियन चैम्बर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष एमजे खान से विशेष बातचीत

उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान सप्लाई चेन की समस्या के कारण शुरुआती दिक्कतें हो सकती हैं, लेकिन युद्ध के खत्म होने के बाद भारत इस अवसर को भुना कर निर्यात बढ़ा सकता है. भारत से दवाइयों, कृषि रसायन और सॉफ्टवेयर का निर्यात बड़ी मात्रा में होता है. आगे चल कर इनकी मांग में बढ़ोतरी होगी, लेकिन निर्यात की बात करें तो रूस और यूक्रेन मिला कर भारत में सूरजमुखी का 90% तक आयात होता है जिसमें अब रुकावट आएगी. खान ने कहा कि यूक्रेन विश्व में सूरजमुखी का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिससे खाद्य तेल का उत्पादन होता है. इसका विकल्प भारत को तैयार करना होगा. मक्के के उत्पादन में भी यूक्रेन पांचवें स्थान पर है. सूरजमुखी तेल के मामले में ये दोनों देश विश्व में 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं.

उन्होंने कहा कि यदि गेहूं की बात करें तो रूस और यूक्रेन से अफ्रीकी और यूरोपीय देशों में गेहूं बड़ी मात्रा में निर्यात होता है. दोनों देश मिला कर विश्व को 21 प्रतिशत गेहूं का निर्यात करते हैं. अब सप्लाई चेन में व्यवधान आने से उन देशों में मांग बढ़ेगी और भारत के लिए यह एक अवसर हो सकता है रिप्लेस्मेंट सप्लायर के रूप में.

एमजे खान ने कहा कि खाद्य तेल में भारत लगभग एक बिलियन डॉलर से ज्यादा का निर्यात करता है. कृषि क्षेत्र में इसका असर इसलिए भी देखने को मिलेगा क्योंकि पेट्रोलियम पदार्थों के आयत में भी समस्या आएगी. इसके कारण डीजल के दाम में बढ़ोतरी होने पर किसानों के लिए लागत मूल्य बढ़ने का खतरा है.

हालांकि विशेषज्ञ यह भी स्पष्ट करते हैं कि बफर स्टॉक के कारण बजार पर युद्ध का तुरंत असर नहीं दिखेगा इसलिए अभी खाद्य तेलों के कीमत में बढ़ोतरी नहीं होनी चाहिए. जहां तक भविष्य की संभावना को देखते हुए विकल्प तैयार करने की बात है, इस पर एमजे खान कहते हैं कि भारत पहले ही सनफ्लावर ऑयल से पाम ऑयल की तरफ बढ़ रहा है, जिसकी आपूर्ति इस समय अधिक है.

उन्होंने कहा कि मलेशिया, इंडोनेशिया और कुछ अफ्रीकी देशों से पाम ऑयल के निर्यात को बढ़ाया जा सकता है जो भारत कर लेगा. इस तरह से वैकल्पिक व्यवस्था और बफर स्टॉक होने के कारण तुरंत असर नहीं होना चाहिए, लेकिन बजार पर युद्ध की परिस्थिति का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता है. इसलिए खाद्य तेलों में 15 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होने की आशंका जताई जा सकती है.

यह भी पढ़ें- रूस-यूक्रेन युद्ध : कई देशों ने किया रणनीति में बदलाव, यूक्रेन को मदद का एलान

भारत में गेहूं का बफर स्टॉक इस समय आवश्यकता से दोगना है और युद्ध की खबरों के बीच इसे निर्यात को बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा जा रहा है. इस पर विशेषज्ञ कहते हैं कि यह अवसर इस बात पर निर्भर करेगा कि युद्ध कितना लंबा चलता है. यदि एक महीने के भीतर युद्ध विराम होता है तो भारत रूस और यूक्रेन के रिप्लेस्मेंट सप्लायर के रूप में नहीं उभर सकता है. इसका कारण है कि अंतरराष्ट्रीय समझौते लंबे समय के लिए होते हैं, क्योंकि खरीदार से जो अंतरराष्ट्रीय करार होते हैं उसमें प्रावधान होता है कि तीन या छह महीने तक सप्लाई में देरी होने के बाद ही करार खत्म हो सकता है. उस परिस्थिति में कोई अन्य देश इसमें प्रवेश कर ले इसकी संभावना नहीं होगी, लेकिन नई मांग को पूरा करने के लिए भविष्य में भारत के लिए अवसर आ सकता है. गेहूं की बात करें तो इसमें 10 से 15 प्रतिशत तक का अवसर भारत के लिए बन सकता है.

मनोवैज्ञानिक असर के कारण घरेलू बजार में कीमतें न बढ़ें, इसके लिए सरकार अपने पास उप्लब्ध पर्याप्त स्टॉक की जानकारी सार्वजनिक कर सकती है जिससे लोगों में भय की स्थिति नहीं बनेगी. इसके अलावा कीमतों को कम करने के लिए NAFED या FCI के पास उप्लब्ध स्टॉक को भी लाया जा सकता है. भारत ने जिन अन्य देशों से आपूर्ति के लिए करार किया है या करने की प्रक्रिया में है उसे बताया जा सकता है. इन सबको मिला कर विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि सरकार चाहे तो कीमतों पर हाल में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

Last Updated : Mar 1, 2022, 8:04 PM IST
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