कोटा. नगर विकास न्यास ने करीब 5000 करोड़ रुपए खर्च कर शहर में कई विकास कार्य करवाए हैं. इनमें ट्रैफिक लाइट फ्री शहर प्रोजेक्ट भी शामिल है. इसके अलावा कई वैकल्पिक मार्ग और चौराहों को भी विकसित किया है. इस पूरी ट्रांसफॉर्मिंग सिटी की थीम पर ही एरोड्रम सर्किल तैयार किया गया है. जिसे टावर ऑफ लिबर्टी का नाम दिया गया है.
इस टावर ऑफ लिबर्टी का निर्माण आर्किटेक्ट अनूप भरतरिया के निर्देश पर करवाया गया है. इसकी थीम कोटा को अलग और यूनिक दिखाने की थी. साथ ही इसका नाम भी टावर ऑफ लिबर्टी इसलिए दिया गया है कि कोटा जो पूरी तरह से बदल गया है और यहां के लोग पूरी लिबर्टी के साथ सड़कों पर चल सकेंगे, यही इसकी थीम थी. यह 200 फीट ऊंचा टावर ऑफ लिबर्टी बनाया गया है. नगर विकास न्यास का दावा है कि पूरे देश में इस तरह का टावर किसी चौराहे पर नहीं है.
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2 किलोमीटर दूर से नजर आ जाता है टावर: नगर विकास न्यास के अभियंता भुवनेश मीणा का कहना है कि इसमें तीन अलग-अलग ऊंचाई के टावर हैं. टावर इतने ऊंचे हैं कि करीब 2 किलोमीटर दूर से यह नजर आ जाते हैं. इनमें सबसे ऊंचा टावर 158 फीट, बीच का 125 और सबसे छोटा 103 फीट का है. इसके बाद 10 फीट का बेस है. इसके बाद करीब 30 फीट अंडरपास का रास्ता है. सबसे बड़ा टावर नीचे 12 मीटर चौड़ा है और ऊपर 2.5 मीटर तक हो जाता है. वहीं बीच वाला 8.25 मीटर और ऊपर जाकर 1.75 मीटर हो जाता है. सबसे छोटा 6 से डेढ़ मीटर रह जाता है.
दूर से जलती हुई दिखाई देगी मशाल: भुवनेश मीणा ने कहा कि टावर ऑफ लिबर्टी में लाइटिंग की गई है. इनका कलर भी अलग-अलग है. टावर के ऊपर की तरफ भी लाइटिंग लगाई गई है. मशाल का शेप भी दिया गया है. लाइटिंग इफेक्ट के जरिए दूर से टावर जलती मशाल की तरह नजर आएंगे. मशाल के ऊपर भी लपटों का इफेक्ट आएगा. यह लाइट की मदद से ही चलेगी.
आर्किटेक्ट की है यूनिक डिजाइन: भुवनेश मीणा का कहना है कि टावर ऑफ लिबर्टी का निर्माण करीब 25 करोड़ की लागत से हुआ है. जिसमें लाइटिंग से लेकर सिविल वर्क भी शामिल है. यह आर्किटेक्ट की एक यूनिक डिजाइन है. इसमें गुलामी से लेकर आजादी का मैसेज है. यह फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन टाइप है. पत्थर को पहले सीमेंट कंक्रीट के जरिए ड्रिल किया गया है. उसके बाद फास्टनर से भी चिपकाए गया है, ताकि मजबूत ही अच्छी रहे.
पुराने पिलर पर ही खड़ा किया नया स्ट्रक्चर: टावर ऑफ लिबर्टी के निर्माण के लिए पहले सीमेंट कंक्रीट का स्ट्रक्चर सीधा खड़ा किया गया था. जिसके बाद जैसलमेर स्टोन लगाया गया. करीब 900 क्यूबिक मीटर जैसलमेर स्टोन लगा है. इसके अलावा करीब 1100 क्यूबिक मीटर सीमेंट कंक्रीट का उपयोग किया है. सीमेंट-कंक्रीट डालने से पहले इसके लिए बेस बनाया गया. यह 21 मीटर के व्यास में बना है. साथ ही पुराने वाले एरोड्राम चौराहे में जहां पर मेटल के चार पिलर खड़े किए थे, उनके ऊपर यह स्ट्रक्चर खड़ा किया गया है. इसके लिए तीन अलग-अलग टावरों को शुरू किया गया था.