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मुस्लिम नेताओं ने भी खादी के प्रचार में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका - Role of Muslim leaders in promoting khadi

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से सहमत होकर, मुस्लिम नेताओं ने खादी और ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए जनता को जागृत किया था. पढ़ें विस्तार से...

खादी के प्रचार
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Published : Mar 22, 2021, 11:02 PM IST

बाराबंकी : आजादी की लड़ाई में खादी किसी हथियार से कम नहीं थी. असहयोग आंदोलन के दौरान, उस समय के मुस्लिम नेताओं ने भी विदेशी वस्तुओं को छोड़कर खादी और स्वदेशी चीजों के प्रति लोगों को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. खादी भारत की आजादी की लड़ाई से जुड़ा हुआ है, यह कपड़ा अंग्रेजों के खिलाफ किसी हथियार से कम नहीं था.

स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हथकरघा बुनाई को प्रोत्साहित करने के लिए संगठन बनाने की सोची और इसके लिए समाज के विभिन्न वर्गों से धन एकत्र किया. जिससे स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए ‘खादी’ आंदोलन कहा गया.

मुस्लिम नेताओं की खादी प्रचार में भूमिका

महात्मा गांधी के दृष्टिकोण से सहमत होकर, मुस्लिम नेताओं ने लोगों के बीच खादी और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए प्रचार किया. गांधी आश्रम के शताब्दी वर्ष को चिह्नित करने के लिए उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से 19 मार्च को ‘आत्मनिर्भर भारत यात्रा’ निकाला गया, जो खादी आंदोलन के महत्व की याद दिलाती है.

पढ़ें- अनिल देशमुख को बचा रही महाराष्ट्र सरकार : केंद्रीय मंत्री अठावले

मार्च के दौरान, जनता को जागरुक करने के लिए कई नेताओं के विचारों का प्रचार किया गया. महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना हसरत नोमानी, मौलाना मुहम्मद अली जौहर और खान अब्दुल गफ्फार खान के विचारों को भी लोगों के सामने रखा गया.

पैदल मार्च के संयोजक राजनाथ शर्मा के कहा कि जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ, तो देश में कपड़ों की भारी कमी थी. उस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों सहित नेताओं ने खादी और अन्य स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए एक साथ आए.

बाराबंकी : आजादी की लड़ाई में खादी किसी हथियार से कम नहीं थी. असहयोग आंदोलन के दौरान, उस समय के मुस्लिम नेताओं ने भी विदेशी वस्तुओं को छोड़कर खादी और स्वदेशी चीजों के प्रति लोगों को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. खादी भारत की आजादी की लड़ाई से जुड़ा हुआ है, यह कपड़ा अंग्रेजों के खिलाफ किसी हथियार से कम नहीं था.

स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हथकरघा बुनाई को प्रोत्साहित करने के लिए संगठन बनाने की सोची और इसके लिए समाज के विभिन्न वर्गों से धन एकत्र किया. जिससे स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए ‘खादी’ आंदोलन कहा गया.

मुस्लिम नेताओं की खादी प्रचार में भूमिका

महात्मा गांधी के दृष्टिकोण से सहमत होकर, मुस्लिम नेताओं ने लोगों के बीच खादी और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए प्रचार किया. गांधी आश्रम के शताब्दी वर्ष को चिह्नित करने के लिए उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से 19 मार्च को ‘आत्मनिर्भर भारत यात्रा’ निकाला गया, जो खादी आंदोलन के महत्व की याद दिलाती है.

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मार्च के दौरान, जनता को जागरुक करने के लिए कई नेताओं के विचारों का प्रचार किया गया. महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना हसरत नोमानी, मौलाना मुहम्मद अली जौहर और खान अब्दुल गफ्फार खान के विचारों को भी लोगों के सामने रखा गया.

पैदल मार्च के संयोजक राजनाथ शर्मा के कहा कि जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ, तो देश में कपड़ों की भारी कमी थी. उस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों सहित नेताओं ने खादी और अन्य स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए एक साथ आए.

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