कुल्लू: हिमालय की गोद में बसा हिमाचल प्रदेश को कुदरत ने नैसर्गिक सौंदर्य से नवाजा है. जिसे देखने हर साल लाखों की संख्या में देश-विदेश से सैलानी यहां खींचे चले आते हैं. वैसे तो हिमाचल में पर्यटन स्थलों की कमी नहीं है, लेकिन बात जब रोहतांग दर्रा की हो तो सैलानियों के लिए इससे अच्छी जगह शायद हो नहीं सकती. इस बार भी एक सप्ताह के भीतर रोहतांग दर्रा को पर्यटकों के लिए खोलने की तैयारी चल रही है, ऐसे में अगर आप भी यहां जाने की सोच रहें तो कुछ बातों की जानकारी होना बेहद जरूरी है. ताकि आपका रोहतांग दर्रा घूमने का प्लान फेल न हो.
सैलानियों के लिए जल्द खुलेगा रोहतांग दर्रा: जिला कुल्लू की प्रसिद्ध पर्यटन नगरी मनाली का रोहतांग दर्रा जल्द ही सैलानियों के लिए बहाल होने वाला है. बीआरओ कर्मचारियों द्वारा यहां पर सड़क से बर्फ हटाने का काम अंतिम चरण में है. आने वाले 1 सप्ताह के भीतर रोहतांग दर्रा सैलानियों के लिए खोल दिया जाएगा. ऐसे में अब सैलानी मई और जून माह में भी रोहतांग दर्रा में बर्फ का दीदार कर सकेंगे. वहीं, मनाली के पर्यटन कारोबारियों ने अभी से सैलानियों से संपर्क करना शुरू कर दिया है. ऐसे में मनाली आने वाले सैलानियों के लिए एक और पर्यटन स्थल खुल जाएगा.
रोहतांग दर्रा ही आकर्षण का केंद्र: जिला कुल्लू के पर्यटन नगरी मनाली का रोहतांग दर्रा 4000 से अधिक मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां पर साल के 10 महीने बर्फ देखने को मिलती है. अटल टनल बनने से पहले सैलानियों के लिए रोहतांग दर्रा ही आकर्षण का केंद्र बना रहता था. ऐसे में अब अटल टनल होते हुए सैलानी लाहौल घाटी का रुख करते हैं और लाहौल से वापस रोहतांग दर्रा होते हुए मनाली पहुंचते हैं. रोहतांग दर्रा में सैलानी गर्मियों के मौसम में भी बर्फ का दीदार कर सकते हैं. वही, एनजीटी के आदेशों के बाद यहां पर वाहनों की संख्या पर भी प्रतिबंध लगाया गया है. ताकि रोहतांग दर्रे में प्रदूषण न फैले और यहां के वातावरण को गाड़ियों के धुएं से किसी प्रकार का नुकसान न हो.
रोहतांग दर्रा जाने वाले वाहनों की संख्या हुई सीमित: रोहतांग दर्रा जाने वाले वाहनों की संख्या भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने निर्धारित की है. इसके अनुसार 1 दिन में 1000 वाहन ही रोहतांग दर्रा का रुख कर सकते हैं. जिनमें 600 पेट्रोल और 400 डीजल वाहन शामिल है. एनजीटी ने प्रदूषण को रोकने के लिए साल 2015 में यह फैसला लिया था. हालांकि, पर्यटन कारोबारियों ने एनजीटी से आग्रह किया था कि यहां पर सैलानियों की संख्या को देखते हुए वाहनों की संख्या को बढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन बीते माह ही एनजीटी ने अपने फैसले में संशोधन करने से इंकार कर दिया. ऐसे में इस साल भी 1000 वाहन ही प्रतिदिन रोहतांग दर्रे का रुख कर सकेंगे.
रोहतांग दर्रा जाने के लिए ऑनलाइन परमिट: रोहतांग दर्रा जाने के लिए सैलानियों को प्रशासन की ओर से बनाई गई वेबसाइट में आवेदन करना पड़ता है. यह वेबसाइट रात 12:00 बजे खुलती है और उसके बाद ऑनलाइन माध्यम से रोहतांग दर्रा साइट पर आवेदन करना पड़ता है. ऐसे में पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर पर्यटकों को परमिट जारी किया जाता है. उसके लिए पर्यटकों को कुछ शुल्क भी चुकाना पड़ता है. जैसे ही रोहतांग दर्रा वाहनों की आवाजाही के लिए बहाल होगा तो जिला प्रशासन द्वारा वेबसाइट के माध्यम से रोहतांग दर्रा जाने की अनुमति भी दी जाएगी. प्रशासन ने मनाली के गुलाबा में एक बैरियर भी स्थापित किया है. जहां पर रोहतांग दर्रा जाने वाले वाहनों के परमिट की जांच की जाती है. परमिट सही पाए जाने के बाद सैलानियों को रोहतांग दर्रा जाने की अनुमति दी जाती है.
कई फिल्मों में दिखा रोहतांग दर्रे की खूबसूरती: सर्दियों के मौसम में रोहतांग दर्रा नवंबर या दिसंबर माह में भारी बर्फबारी के कारण पूरी तरह से बंद हो जाता है. ऐसे में मार्च माह में दर्रा से बर्फ हटाने का काम बीआरओ द्वारा शुरू किया जाता है, जो इस साल मई माह में खत्म होगा. उसके बाद यहां पर सैलानियों की आवाजाही शुरू कर दी जाएगी. रोहतांग दर्रा कई सालों से अपनी बर्फ के कारण सैलानियों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. क्योंकि यहां पर गर्मियों के दौरान भी बर्फ मौजूद रहती है. इसके अलावा कई बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग भी रोहतांग दर्रा में हो चुकी है, जो रोहतांग दर्रे की हसीन वादियों के कारण अपना काफी नाम कमा चुकी है.
अटल टनल निर्माण से राह हुई आसान: अटल टनल निर्माण से पहले रोहतांग दर्रा लाहौल घाटी को जोड़ने में अपनी अहम भूमिका निभाता था. सर्दियों में जब बर्फबारी के कारण रोहतांग दर्रा वाहनों की आवाजाही के लिए बंद हो जाता था तो, लाहुल घाटी भी 6 माह के लिए पूरी तरह से कट जाती थी. ऐसे में लाहुल घाटी के लोगों को आवागमन के लिए प्रदेश सरकार द्वारा हेलीकॉप्टर की सुविधा दी जाती थी. अब अटल टनल बनने से सर्दियों में भी लाहौल घाटी में आवागमन की सुविधा लोगों को मिल रही है. ऐसे में सैलानियों के लिए ही रोहतांग दर्रा प्रशासन द्वारा खोला जाता है.
मनाली से लेकर रोहतांग दर्रे तक पुलिस की तैनाती: मई माह में जिला कुल्लू में पर्यटन सीजन की शुरुआत भी हो गई है. ऐसे में मनाली से लेकर रोहतांग दर्रा तक जगह-जगह ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की तैनाती की जाती है. अटल टनल बनने के बाद रोहतांग दर्रे में ट्रैफिक का दबाव कम हुआ है. वहीं, एनजीटी द्वारा मात्र 1000 वाहनों को प्रतिदिन जाने की अनुमति दी गई है. वही ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में भी कुल्लू पुलिस की टीम काम करने में जुट गई है. ताकि जैसे ही रोहतांग दर्रा वाहनों की आवाजाही के लिए बहाल होता है तो सैलानियों को ट्रैफिक की दिक्कतों का सामना ना करना पड़े.
रोहतांग दर्रा आने के लिए रोड मैप: रोहतांग दर्रा के दीदार के लिए सैलानी दिल्ली से हवाई उड़ान के माध्यम से भुंतर हवाई अड्डा पहुंच सकते हैं. उसके बाद टैक्सी से मनाली का सफर पूरा कर सकते हैं. वहीं, दिल्ली से बस या फिर टैक्सी के माध्यम से भी सड़क मार्ग होते हुए सैलानी मनाली पहुंच सकते हैं. यहां पर सैलानी ऑनलाइन माध्यम से भी रोहतांग दर्रा जाने के लिए अपना परमिट बुक कर सकते हैं या फिर किसी ट्रैवल एजेंसी के साथ भी संपर्क कर सकते हैं. रोहतांग दर्रा 4000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित होने के चलते गर्मियों में भी काफी ठंडा रहता है. ऐसे में बर्फ के बीच मस्ती करने के लिए सैलानियों को गर्म कपड़े लाना भी जरूरी रहता है.
बर्फीले तूफान में दबने से हुई थी जोरावर सिंह की सैनिक की मौत: रोहतांग का मतलब तिब्बती भाषा में लाशों का मैदान होता है. क्योंकि जब यहां पर सड़क नहीं होती थी तो, इस तरह से पैदल गुजरते हुए कई लोगों ने बर्फीले तूफान में अपनी जान गवाई हैं. कहा जाता है कि जम्मू कश्मीर रियासत के सेनापति जनरल जोरावर सिंह ने कुल्लू रियासत पर जब आक्रमण किया तो, उसके बाद लाहौल स्पीति को जीतने के लिए भी वह रोहतांग दर्रा से गुजरने लगा, लेकिन जब जोरावर सिंह की सेना रोहतांग दर्रे को पार कर रही थी, तभी बर्फीले तूफान की चपेट में आने से सैनिक बर्फ में दबकर मर गए. जब गर्मियों का मौसम आया तो तिब्बत की ओर से आने वाले लोग यहां से गुजरने लगे. इस दौरान दर्रे में बर्फ के नीचे शव का ढेर देखकर वह डर गए. मनाली पहुंचकर उन्हें पता चला कि सेनापति जोरावर सिंह ने यहां आक्रमण की कोशिश की थी और दर्रे में वह सब बर्फीले तूफान की चपेट में आकर मारे गए. उसके बाद स्थानीय लोग एकत्र हुए और उन्होंने इन शवों को निकालकर रोहतांग दर्रे से नीचे एक स्थान पर रखा और उनका अंतिम संस्कार किया. जिसे आज मढ़ी नाम से जाना जाता है. पंजाबी भाषा में भी श्मशान घाट या समाधि स्थल को मढ़ी कहते हैं.
रोहतांग दर्रे से बर्फ हटाने में जुटे बीआरओ अधिकारी: डीसी कुल्लू आशुतोष गर्ग ने बताया बीआरओ के अधिकारी और कर्मचारी लगातार दर्रे से बर्फ हटाने के काम में जुटे हुए हैं. एक सप्ताह के भीतर रोहतांग दर्रे से बर्फ हटाने का काम पूरा कर लिया जाएगा. उसके बाद संयुक्त रूप से इसका निरीक्षण किया जाएगा. बीआरओ की अनुमति मिलने के बाद यहां पर सैलानियों को जाने की अनुमति दी जाएगी और रोहतांग परमिट को भी शुरू कर दिया जाएगा.
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