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बिहार की इस लड़की ने किया कमाल, ऐसे बना दिया सेनिटरी नैपकिन बैंक - ईटीवी भारत न्यूज

बिहार में महिलाओं को मेंस्ट्रूअल हेल्थ के प्रति जागरुक करने के लिए पटना की ऋचा राजपूत (Richa Rajput From Patna) कॉलेज स्कूल से लेकर झुग्गी झोपड़ियों तक पहुंच जाती हैं. ये काम वो पिछले 4 सालों से कर रही हैं, वो मासिक से जुड़े भ्रांतियों को भी महिलाओं के बीच जाकर दूर करती हैं और उन्हें सैनिटरी पैड बांटती हैं.

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Published : Nov 22, 2022, 7:27 PM IST

पटनाः मेंस्ट्रूअल हेल्थ एक ऐसा विषय है जिस पर आज भी बिहार में खुलकर बात नहीं होती और उसका नतीजा ये है कि मेंस्ट्रूअल हाइजीन (Menstrual Hygiene For Women) यानी की मासिक के समय सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करने के मामले में पूरे देश में बिहार सबसे फिसड्डी है. विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों के रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि होती है कि बिहार में महिलाओं में मेंस्ट्रूअल हाइजीन के प्रति जागरूकता (Richa Rajput Aware Women About Menstrual Hygiene) अधिक नहीं है. NFHS-5 की रिपोर्ट भी बताती है कि देश में सेनेटरी नैपकिन का यूज करने वाली महिलाओं में बिहार सबसे पीछे है और मात्र 58.8% प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी पैड का यूज करती हैं.

ऐसे बना दिया सेनिटरी नैपकिन बैंक



ये भी पढ़ेंः स्लम इलाकों में निशुल्क सेनेटरी नैपकिन वितरित करती हैं कांति कुमारी, माहवारी को लेकर कर रहीं जागरूक

मेंस्ट्रूअल हाइजीन की देती हैं जानकारीः बिहार में महिलाओं के बीच मेंस्ट्रूअल हाइजीन को टैबू का विषय बनाए रखने के खिलाफ और मेंस्ट्रूअल हाइजीन के बारे में बताने के लिए पटना की ऋचा राजपूत बीते 4 वर्षों से लड़कियों के स्कूल कॉलेज और झुग्गी झोपड़ियों में जाकर उन्हें जागरुक कर रही हैं. वो ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल के फायदे बताती हैं. इसके साथ ही वह मासिक से जुड़े भ्रांतियों को भी महिलाओं के बीच जाकर दूर करती हैं और उन्हें सैनिटरी पैड बांटती हैं.

सेनेटरी नैपकिन के लिए महिलाओं को जागरूक करतीं ऋचा
सेनेटरी नैपकिन के लिए महिलाओं को जागरूक करतीं ऋचा

3 साल तक बांटे मुफ्त सेनेटरी पैडः ऋचा ने बताया कि शुरुआत के 3 साल में उन्होंने मुफ्त में सेनेटरी पैड बांटे लेकिन बाद में पता चला कि इसका सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. ऐसे में उन्होंने निर्णय लिया कि वह अब इसे पैसे लेकर देंगी और इसके लिए न्यूनतम पैसे लेंगी. उन्होंने बताया कि अब वह झुग्गी झोपड़ियों और महिलाओं के बस्ती में जाती हैं उन्हें सैनिटरी पैड के इस्तेमाल के बारे में अवेयर करती हैं और फिर 11 रुपये लेकर 6 सैनिटरी पैड देती हैं. इन दिनों ऋचा एक मुहिम चला रही हैं, वन गर्ल वन पैड. इसके माध्यम से वो सभी से एक सैनिटरी पैड का डोनेशन लेती है और फिर 6-6 पीस का बंडल बनाकर इसे 11 रुपये के न्यूनतम दर पर बांटती हैं.

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"शुरुआत के 3 वर्षों तक हमने अपने पैसे और अपने दूसरे संगठन के फायदे से पैसा निकालकर सेनेटरी पैड बांटा. लेकिन अब पोथी पत्रा फाउंडेशन बनाकर महिलाओं को सेनेटरी पैड के इस्तेमाल के बारे में जागरूक कर रही हूं. सेनेटरी पैड के लिए हमारे पास क्राउडफंडिंग होता है इसके अलावा अधिक संख्या में लोग सैनिटरी पैड डोनेट करते हैं. महिलाएं इस विषय पर बात नहीं करना चाहती. महिलाएं ऐसी बातों को गलत समझती हैं. उनके बीच जाकर उन्हें उनकी ही भाषा में समझाना पड़ता है"- ऋचा राजपूत, फाउंडर, पोथी पत्रा

सीमांचल की महिलाओं को भी करती हैं जागरुकः ऋचा ने बताया कि वह सीमांचल क्षेत्र के कई गांव में जाकर महिलाओं को जागरूक कर चुकी हैं और इस दौरान उन्हें कई कठिनाइयां भी आती हैं. महिलाएं जल्दी इस विषय पर बात नहीं करना चाहती. महिलाएं ऐसी बातों को गलत बातें और अश्लीलता समझती हैं लेकिन उनके बीच जाकर उन्हें उनकी भाषा में उनके तौर तरीके से वह समझाती हैं. उन्हें वह बताती हैं कि सेनेटरी पैड का इस्तेमाल अगर नहीं करती हैं और इसके बजाय वो कपड़ा यूज करती हैं तो इससे इंफेक्शन फैलता है. वह उनके बीच इस भ्रांति को तोड़ती हैं कि मासिक के समय योनि के पास खुजली बनी रहती है ऐसी नहीं है. यह फंगस से होता है और फंगस तब होता है जब साफ सफाई नहीं रहे और इसके लिए जरूरी है कि सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करें.

हर 6 घंटे पर बदलने चाहिए सैनिटरी पैडः ऋचा बताती हैं कि मासिक के समय प्रत्येक 6 घंटे पर सैनिटरी पैड को बदल लेना चाहिए. उन्होंने बताया कि कई महिलाएं उनसे यह भी बताती हैं कि मासिक के समय यदि खुजली अधिक हो रहा है तो यह समस्या किससे कहें क्योंकि वह अपने पति से भी इस विषय पर खुलकर बात नहीं कर पाती. ऐसे में वह बताती है कि अपने पति से खुलकर इस विषय पर बात करें क्योंकि जब वह उन्हें बताएंगे तो वह भी समझेंगे और जरूर उनका साथ देंगे. ऋचा ने बताया कि वह जब पटना के गर्ल्स कॉलेजों में भी जाती हैं तो वही भ्रांतियां उन्हें नजर आती हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के बीच बनी रहती है.

पीरियड के समय कई कार्यों के करने पर रोकः उन्होंने बताया कि शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण क्षेत्र लड़कियों और महिलाओं में आज भी यह भ्रांति बनी हुई है कि मासिक के समय आचार को नहीं छुआ जाता और जब वह पूछती हैं यह क्यों तो जवाब मिलता है कि आचार सड़ जाता है जबकि ऐसा नहीं है. मासिक के समय महिलाओं के बॉडी में गर्मी अधिक होती है और इस समय यदि वह अचार खाएं जिसमें मसाला काफी अधिक होता है तो यह उनके पेट में दर्द और अन्य समस्या पैदा कर सकता है. ऋचा ने बताया कि इसके अलावा एक और भ्रांति सुनने को मिलती है कि पीरियड के समय नेल पॉलिश यूज नहीं किया जाता. पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इसे मानती हैं और यही जवाब देती है कि नेलपेंट सूख जाता है लेकिन ऐसा होता नहीं है. उन्होंने बताया कि पीरियड के समय नेल पॉलिश के इस्तेमाल से इसलिए मना किया जाता है क्योंकि इस समय योनि से ब्लीडिंग होती रहती है और यदि नाखून वहां लग जाए तो नेल पेंट का जो केमिकल है उससे रिएक्शन होता है और योनि के पास खुजली और अन्य संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है.

ज्यादा कीमत के कारण पैड नहीं लेती महिलाएंः ऋचा ने बताया कि कई महिलाओं ने उन्हें यह भी बताया है कि सेनेटरी पैड की कीमत काफी अधिक रहती है इसलिए वह सूती कपड़ा लपेट लेती हैं, ऐसा कहने वाली महिलाओं को जागरूक करती हैं कि कपड़ा लपेटने के क्या नुकसान हैं और उन्हें सेनेटरी पैड देती हैं. उन्होंने बताया कि उनकी टीम है जिन्होंने गर्ल्स स्कूल और गर्ल्स कॉलेज में कई वॉलिंटियर तैयार किए हैं. जो नुक्कड़ नाटक और अलग-अलग तरीकों से सेनेटरी पैड के फायदे बताती हैं और कपड़ा लगाने की क्या नुकसान है इसे बताती हैं.

मासिक कोई बीमारी नहीं होतीः ऋचा ने बताया कि मेंस्ट्रूअल हेल्थ के बारे में घर परिवार में अब थोड़ी बहुत बातचीत होने लगी है लेकिन अभी भी खुलकर इस बारे में बातचीत नहीं होती. यह कोई समस्या नहीं है बल्कि यह एक प्रक्रिया है और मासिक के समय यदि साफ सफाई रखें साफ सुथरा सेनेटरी पैड इस्तेमाल करें तो कोई कार्य करने में दिक्कत नहीं होगी. उन्होंने कहा कि आज भी कई परिवारों में लड़कियों को जब मासिक आता है तो कह दिया जाता है कि लड़की बीमार है जबकि मासिक कोई बीमारी नहीं होती. कई बार मासिक बंद कराने के लिए घर परिवार वाले महिला का बच्चेदानी का ऑपरेशन करा देते हैं लेकिन वह इसे गलत मानती हैं. साफ-सफाई रख कर भी मासिक के समय स्वस्थ रहा जा सकता है.

ऋचा का ट्वीट हुआ था वायरल : बता दें कि सहरसा के सहसौल गांव की रहने वाली ऋचा राजपूत ने ट्रेन में सेनेटरी नैपकिन की व्यवस्था को लेकर पीएम मोदी और रेलमंत्री पीयूष गोयल को टैग करते हुए ट्वीट किया था. ऋचा ने पीएम मोदी और रेलमंत्री पीयूष गोयल को ट्विटर पर ट्वीट कर सभी रेलवे स्टेशन और ट्रेनों में सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराने की मांग की थी. ऋचा का ये ट्वीट वायरल हो गया था.

कौन है ऋचा राजपूत ? : ऋचा की मम्मी नूतन सिंह और पापा राकेश कुमार सिंह दोनों एडवोकेट हैं. ऋचा तीन बहनों में सबसे बड़ी हैं. उनसे छोटी उनके घर में नेहा और प्रिनू सिंह हैं. उनकी 10वीं और 12वीं तक की पढ़ाई मधेपुरा से हुई है. इसके बाद उन्होंने पटना के एएन कॉलेज से इंग्लिश में मास्टर्स किया है. बता दें कि ऋचा एनसीसी कैडेट भी रह चुकी हैं. इसके अलावा उन्होंने डिजास्टर मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया है. साथ ही वे साल 2015 में मिस बिहार दीवा रही हैं.

पटनाः मेंस्ट्रूअल हेल्थ एक ऐसा विषय है जिस पर आज भी बिहार में खुलकर बात नहीं होती और उसका नतीजा ये है कि मेंस्ट्रूअल हाइजीन (Menstrual Hygiene For Women) यानी की मासिक के समय सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करने के मामले में पूरे देश में बिहार सबसे फिसड्डी है. विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों के रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि होती है कि बिहार में महिलाओं में मेंस्ट्रूअल हाइजीन के प्रति जागरूकता (Richa Rajput Aware Women About Menstrual Hygiene) अधिक नहीं है. NFHS-5 की रिपोर्ट भी बताती है कि देश में सेनेटरी नैपकिन का यूज करने वाली महिलाओं में बिहार सबसे पीछे है और मात्र 58.8% प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी पैड का यूज करती हैं.

ऐसे बना दिया सेनिटरी नैपकिन बैंक



ये भी पढ़ेंः स्लम इलाकों में निशुल्क सेनेटरी नैपकिन वितरित करती हैं कांति कुमारी, माहवारी को लेकर कर रहीं जागरूक

मेंस्ट्रूअल हाइजीन की देती हैं जानकारीः बिहार में महिलाओं के बीच मेंस्ट्रूअल हाइजीन को टैबू का विषय बनाए रखने के खिलाफ और मेंस्ट्रूअल हाइजीन के बारे में बताने के लिए पटना की ऋचा राजपूत बीते 4 वर्षों से लड़कियों के स्कूल कॉलेज और झुग्गी झोपड़ियों में जाकर उन्हें जागरुक कर रही हैं. वो ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल के फायदे बताती हैं. इसके साथ ही वह मासिक से जुड़े भ्रांतियों को भी महिलाओं के बीच जाकर दूर करती हैं और उन्हें सैनिटरी पैड बांटती हैं.

सेनेटरी नैपकिन के लिए महिलाओं को जागरूक करतीं ऋचा
सेनेटरी नैपकिन के लिए महिलाओं को जागरूक करतीं ऋचा

3 साल तक बांटे मुफ्त सेनेटरी पैडः ऋचा ने बताया कि शुरुआत के 3 साल में उन्होंने मुफ्त में सेनेटरी पैड बांटे लेकिन बाद में पता चला कि इसका सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. ऐसे में उन्होंने निर्णय लिया कि वह अब इसे पैसे लेकर देंगी और इसके लिए न्यूनतम पैसे लेंगी. उन्होंने बताया कि अब वह झुग्गी झोपड़ियों और महिलाओं के बस्ती में जाती हैं उन्हें सैनिटरी पैड के इस्तेमाल के बारे में अवेयर करती हैं और फिर 11 रुपये लेकर 6 सैनिटरी पैड देती हैं. इन दिनों ऋचा एक मुहिम चला रही हैं, वन गर्ल वन पैड. इसके माध्यम से वो सभी से एक सैनिटरी पैड का डोनेशन लेती है और फिर 6-6 पीस का बंडल बनाकर इसे 11 रुपये के न्यूनतम दर पर बांटती हैं.

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"शुरुआत के 3 वर्षों तक हमने अपने पैसे और अपने दूसरे संगठन के फायदे से पैसा निकालकर सेनेटरी पैड बांटा. लेकिन अब पोथी पत्रा फाउंडेशन बनाकर महिलाओं को सेनेटरी पैड के इस्तेमाल के बारे में जागरूक कर रही हूं. सेनेटरी पैड के लिए हमारे पास क्राउडफंडिंग होता है इसके अलावा अधिक संख्या में लोग सैनिटरी पैड डोनेट करते हैं. महिलाएं इस विषय पर बात नहीं करना चाहती. महिलाएं ऐसी बातों को गलत समझती हैं. उनके बीच जाकर उन्हें उनकी ही भाषा में समझाना पड़ता है"- ऋचा राजपूत, फाउंडर, पोथी पत्रा

सीमांचल की महिलाओं को भी करती हैं जागरुकः ऋचा ने बताया कि वह सीमांचल क्षेत्र के कई गांव में जाकर महिलाओं को जागरूक कर चुकी हैं और इस दौरान उन्हें कई कठिनाइयां भी आती हैं. महिलाएं जल्दी इस विषय पर बात नहीं करना चाहती. महिलाएं ऐसी बातों को गलत बातें और अश्लीलता समझती हैं लेकिन उनके बीच जाकर उन्हें उनकी भाषा में उनके तौर तरीके से वह समझाती हैं. उन्हें वह बताती हैं कि सेनेटरी पैड का इस्तेमाल अगर नहीं करती हैं और इसके बजाय वो कपड़ा यूज करती हैं तो इससे इंफेक्शन फैलता है. वह उनके बीच इस भ्रांति को तोड़ती हैं कि मासिक के समय योनि के पास खुजली बनी रहती है ऐसी नहीं है. यह फंगस से होता है और फंगस तब होता है जब साफ सफाई नहीं रहे और इसके लिए जरूरी है कि सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करें.

हर 6 घंटे पर बदलने चाहिए सैनिटरी पैडः ऋचा बताती हैं कि मासिक के समय प्रत्येक 6 घंटे पर सैनिटरी पैड को बदल लेना चाहिए. उन्होंने बताया कि कई महिलाएं उनसे यह भी बताती हैं कि मासिक के समय यदि खुजली अधिक हो रहा है तो यह समस्या किससे कहें क्योंकि वह अपने पति से भी इस विषय पर खुलकर बात नहीं कर पाती. ऐसे में वह बताती है कि अपने पति से खुलकर इस विषय पर बात करें क्योंकि जब वह उन्हें बताएंगे तो वह भी समझेंगे और जरूर उनका साथ देंगे. ऋचा ने बताया कि वह जब पटना के गर्ल्स कॉलेजों में भी जाती हैं तो वही भ्रांतियां उन्हें नजर आती हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के बीच बनी रहती है.

पीरियड के समय कई कार्यों के करने पर रोकः उन्होंने बताया कि शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण क्षेत्र लड़कियों और महिलाओं में आज भी यह भ्रांति बनी हुई है कि मासिक के समय आचार को नहीं छुआ जाता और जब वह पूछती हैं यह क्यों तो जवाब मिलता है कि आचार सड़ जाता है जबकि ऐसा नहीं है. मासिक के समय महिलाओं के बॉडी में गर्मी अधिक होती है और इस समय यदि वह अचार खाएं जिसमें मसाला काफी अधिक होता है तो यह उनके पेट में दर्द और अन्य समस्या पैदा कर सकता है. ऋचा ने बताया कि इसके अलावा एक और भ्रांति सुनने को मिलती है कि पीरियड के समय नेल पॉलिश यूज नहीं किया जाता. पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इसे मानती हैं और यही जवाब देती है कि नेलपेंट सूख जाता है लेकिन ऐसा होता नहीं है. उन्होंने बताया कि पीरियड के समय नेल पॉलिश के इस्तेमाल से इसलिए मना किया जाता है क्योंकि इस समय योनि से ब्लीडिंग होती रहती है और यदि नाखून वहां लग जाए तो नेल पेंट का जो केमिकल है उससे रिएक्शन होता है और योनि के पास खुजली और अन्य संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है.

ज्यादा कीमत के कारण पैड नहीं लेती महिलाएंः ऋचा ने बताया कि कई महिलाओं ने उन्हें यह भी बताया है कि सेनेटरी पैड की कीमत काफी अधिक रहती है इसलिए वह सूती कपड़ा लपेट लेती हैं, ऐसा कहने वाली महिलाओं को जागरूक करती हैं कि कपड़ा लपेटने के क्या नुकसान हैं और उन्हें सेनेटरी पैड देती हैं. उन्होंने बताया कि उनकी टीम है जिन्होंने गर्ल्स स्कूल और गर्ल्स कॉलेज में कई वॉलिंटियर तैयार किए हैं. जो नुक्कड़ नाटक और अलग-अलग तरीकों से सेनेटरी पैड के फायदे बताती हैं और कपड़ा लगाने की क्या नुकसान है इसे बताती हैं.

मासिक कोई बीमारी नहीं होतीः ऋचा ने बताया कि मेंस्ट्रूअल हेल्थ के बारे में घर परिवार में अब थोड़ी बहुत बातचीत होने लगी है लेकिन अभी भी खुलकर इस बारे में बातचीत नहीं होती. यह कोई समस्या नहीं है बल्कि यह एक प्रक्रिया है और मासिक के समय यदि साफ सफाई रखें साफ सुथरा सेनेटरी पैड इस्तेमाल करें तो कोई कार्य करने में दिक्कत नहीं होगी. उन्होंने कहा कि आज भी कई परिवारों में लड़कियों को जब मासिक आता है तो कह दिया जाता है कि लड़की बीमार है जबकि मासिक कोई बीमारी नहीं होती. कई बार मासिक बंद कराने के लिए घर परिवार वाले महिला का बच्चेदानी का ऑपरेशन करा देते हैं लेकिन वह इसे गलत मानती हैं. साफ-सफाई रख कर भी मासिक के समय स्वस्थ रहा जा सकता है.

ऋचा का ट्वीट हुआ था वायरल : बता दें कि सहरसा के सहसौल गांव की रहने वाली ऋचा राजपूत ने ट्रेन में सेनेटरी नैपकिन की व्यवस्था को लेकर पीएम मोदी और रेलमंत्री पीयूष गोयल को टैग करते हुए ट्वीट किया था. ऋचा ने पीएम मोदी और रेलमंत्री पीयूष गोयल को ट्विटर पर ट्वीट कर सभी रेलवे स्टेशन और ट्रेनों में सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराने की मांग की थी. ऋचा का ये ट्वीट वायरल हो गया था.

कौन है ऋचा राजपूत ? : ऋचा की मम्मी नूतन सिंह और पापा राकेश कुमार सिंह दोनों एडवोकेट हैं. ऋचा तीन बहनों में सबसे बड़ी हैं. उनसे छोटी उनके घर में नेहा और प्रिनू सिंह हैं. उनकी 10वीं और 12वीं तक की पढ़ाई मधेपुरा से हुई है. इसके बाद उन्होंने पटना के एएन कॉलेज से इंग्लिश में मास्टर्स किया है. बता दें कि ऋचा एनसीसी कैडेट भी रह चुकी हैं. इसके अलावा उन्होंने डिजास्टर मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया है. साथ ही वे साल 2015 में मिस बिहार दीवा रही हैं.

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