भागलपुरः बिहार के भागलपुर में 1989 में हुए दंगे की अनगिनत घटनाएं हैं. जिसके बाद केंद्र और बिहार की सियासत भी बदल गई थी, लेकिन आज उसकी चर्चा नहीं करेंगे. चर्चा आज उस फरिश्ते या फिर मैसेंजर ऑफ गॉड मेजर विर्क की करेंगे, आप सोच रहे होंगे 33 साल बाद एकाएक उनकी चर्चा क्यों हो रही है. दरअसल दंगे में ड्यूटी निभा रहे मेजर का उस दौरान एक बच्ची मल्लिका से ऐसा रिश्ता कायम हो गया था, जिसकी मिसाल आज भी दी जा रही है. 33 साल बाद उसी बच्ची ने सोशल मीडिया से ढूंढकर मेजर विर्क को अपने बेटे की शादी में बुलाया, जहां पहुंचकर मेजर और उनकी पत्नी ने वर-वधु को आशीर्वाद दिया.
33 साल बाद भागलपुर पहुंचे कर्नल विर्कः भागलपुर पहुंचे रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जीपीएस विर्क ने 1989 में हुए दंगे को याद करते हुए बताया कि उस दौरान कई घटनाएं मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने जैसी थीं. विर्क साहब बताते हैं कि 27 अक्टूबर 1989 की रात 9 बजकर 30 मिनट पर सबौर के चंदेरी गांव गए तो दंगे के हालात बेकाबू थे. हालात को बिगुल बजाकर कंट्रोल किया. उन्होंने कहीं भी किसी इलाके में दंगाइयों पर गोली चलाने की इजाजत नहीं दी. बल्कि बिगुल बजाने के साथ ही आम लोग घर के अंदर हो जाते थे. इसी बीच मेजर विर्क को प्यास लगी तो चंदेरी गांव में एक बच्ची मल्लिका ने अपने घर से एक लोटे में पानी लाकर दिया. प्यास बुझाकर मेजर साहब पूरे प्लाटून के साथ सबौर स्कूल के कैम्प में चले गए.
कर्नल ने बताई दंगा पीड़ित मल्लिका की कहानीः उसके दूसरे दिन यानी 28 अक्टूबर 1989 को 8 बजकर 30 मिनट पर सुबह जब मेजर साहब दंगा ग्रस्त इलाके का मुआयना करने उसी चंदेरी गांव पहुंचे तो जलकुम्भी वाले तालाब से एक रूहांसी आवाज आई "बाबूजी मुझे बचा लीजिए". सुनसान सड़कों पर मेजर विर्क को लगा की कोई आवाज दे रहा है. इधर उधर देखा तो कोई नजर नहीं आया, लेकिन उस जलकुम्भी वाले तालाब के पानी में थोड़ा हलचल हुई. एक हाथ की अंगुली बाहर दिखी. मेजर साहब को लगा कि किसी को उनकी मदद की जरूरत है. आर्मी जीप में सवार तमाम जवानों को इशारा किया. रायफल बट के सहारे जिस 17 वर्षीय लड़की को जलकुम्भी भरे तलाब से निकाला गया, वह मल्लिका थी. जिसने एक रात पहले मेजर साहब को प्यास लगने पर पानी पिलाया था.
लड़की का हाथ थामने आर्मी जवान आया सामनेः जलकुम्भी से निकालने के बाद मल्लिका को मरणासन्न हालत में भागलपुर अस्पताल लाया गया और वहां इलाज कराया गया. उसके पैर पर तलवार से वार किया गया था, परिवार के लोग भी मारे गए थे. बाद में उसे बेहतर इलाज के लिए दानापुर के मिलिट्री अस्पताल में भेजा गया, मेजर और उनकी पत्नी उससे रोज मिलने जाते थे. लेकिन उस दौरान जब मल्लिका की दुनिया उजड़ गई थी तो वह हताश थी. कहती थी कि मैं अब जीकर क्या करूंगी. उसी वक्त मेजर विर्क ने साथ चल रहे जम्मू के जवानों से कहा कि क्या कोई है, जो इस लड़की का हाथ थाम सके. तब एक आर्मी जवान सामने आया.
"उस समय दंगे जैसे हालात को काबू करने के लिए सिर्फ आदेश का पालन करना होता था, लेकिन भागलपुर में जो हमने देखा उसमें मेरी मानवीय संवेदना जाग उठी. दंगे पर नियंत्रण भी हुआ और किसी को जीवनदान भी मिला. मुझे उपर वाले ने उस लायक समझा, इसलिए मैं ईश्वर का शुक्रगुजार हूं"- जीपीएस विर्क, रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल
सोशल मीडिया के माध्यम से मेजर से मिली मल्लिकाः उधर दंगा शांत होने के बाद सेना लौट गई और विर्क साहब भी भागलपुर से चले गए. इस घटना को 30 साल गुजर गए. लेकिन सोशल मीडिया की मदद से 33 साल बाद वही आर्मी जवान अपनी बेटी समान मल्लिका बेगम के घर भागलपुर पहुंचा. दरअसल जब मल्लिका ने जाना कि विर्क साहब अभी भी जीवित हैं, तो सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें खोज निकाला, उसने अपना पैगाम विर्क साहब तक पहुंचाया. घटना से जुड़ी फोटो पोस्ट की. तब मेजर साहब की यादें भी तरोताजा हों गईं. मल्लिका ने बेटे के निकाह का न्योता मेजर साहब को भेजा और आने की गुजारिश की. दंगा पीड़िता मल्लिका बेगम की जान बचाने वाले तत्कालीन मेजर गुरप्रकाश सिंह विर्क धर्मपत्नी राजवंत विर्क के साथ गुरुवार को भागलपुर पहुंचे.
मल्लिका बेगम के बेटे बहू को कर्नल ने दिया आशीर्वादः बेटे की शादी पर पिता समान मेजर गुरप्रकाश सिंह को देखकर मल्लिका बेगम अपने खुशी के आंसू रोक नहीं पाईं. मल्लिका को ऐसा लग रहा था, मानों उनके सामने फरिश्ते के रूप में दोनों पति-पत्नी खड़े हैं. मल्लिका कहती हैं कि मेरा जीवन तो विर्क साहब की देन है. विर्क साहब दोबारा आए तो जीवनदान मिला. मल्लिका की बिटिया भी विर्क साहब से कहती हैं कि आप "मैसेंजर ऑफ गॉड" हैं. मेजर गुरप्रकाश सिंह ने मल्लिका के बेटे और बहू को आशीर्वाद दिया और दोनों परिवारों ने एक साथ कई फोटो भी खिंचवाई. रिटायर होने के बाद मेजर गुरप्रकाश सिंह इस वक्त अपने पैतृक गांव पंजाब के मोहाली में रह रहे हैं.
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