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पनबिजली बांधों से पानी छोड़ने के कारण असम में आती है बाढ़ : सरकार

केंद्र ने स्वीकार किया है कि अरुणाचल प्रदेश और अन्य राज्यों के हाईड्रोइलेक्ट्रिक जनरेशन डैम (hydroelectric generation dam) से पानी छोड़ने से राज्य में बाढ़ आती है और निचले इलाकों को नुकसान (damages in downstream areas) होता है.

बांध
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Published : Aug 18, 2021, 9:46 PM IST

नई दिल्ली : ऐसे समय में जब पूरा असम बाढ़ से जूझ रहा है, केंद्र ने स्वीकार किया है कि अरुणाचल प्रदेश और अन्य राज्यों के हाईड्रोइलेक्ट्रिक जनरेशन डैम (hydroelectric generation dams) से पानी छोड़ने से राज्य में बाढ़ आती है और निचले इलाकों को नुकसान (damages in downstream areas) होता है.

जल संसाधन विभाग (Department of Water Resources) , नदी विकास और गंगा संरक्षण के अधिकारियों ने एक संसदीय समिति के समक्ष स्वीकार किया कि रंगनाडी, पारे, दोयांग, कोपिली, उमियाम, सेरलुई, तुइरियाल जैसे जलविद्युत उत्पादन के लिए बनाए गए कुछ बांध और अरुणाचल प्रदेश में असम के ऊपर स्थित हैं और जब अन्य राज्य क्षेत्र में उच्च वर्षा के कारण नदियों का पानी छोड़ते हैं, तो इसके परिणामस्वरूप असम में निचले क्षेत्रों में कुछ नुकसान होता है.

चूंकि इनमें से अधिकांश परियोजनाएं नदी परियोजनाओं से जुढ़ी हैं, इसलिए पानी को रोकने की कोई गुंजाइश नहीं है. हालांकि, जलाशयों के उचित संचालन, समन्वय और विनियमन के साथ कुछ हद तक बाढ़ पर नियंत्रण हासिल किया जा सकता.

आपदा प्रबंधन अधिनियम (Disaster Management Act), 2005 की धारा 10 में दिए अधिकारों का प्रयोग करते हुए जल शक्ति मंत्रालय ने सभी अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी किए हैं कि जब भी उनके द्वारा पानी छोड़ने का निर्णय लिया जाता है, तो वे निचले इलाकों के अधिकारियों को सूचित करें.

अधिकारियों ने कहा कि उक्त निर्णय को संबंधित राज्यों द्वारा पर्याप्त रूप से अग्रिम रूप से सूचित किया जाना चाहिए, ताकि बांधों और जलाशयों से पानी छोड़ने के कारण आने वाली बाढ़ की स्थिति से निचली इलाकों को बचाने के लिए डाउनस्ट्रीम अधिकारियों को आदेश दिए जा सकें.

अधिकारियों ने असम में बाढ़ पर अरुणाचल प्रदेश जलविद्युत परियोजनाओं के प्रभाव (impact of hydro projects) के बारे में विस्तार से बताया कि यदि ऊपरी सियांग जिले के मुख्यालय यिंगकिओंग में रहने वाले लोगों को उचित पुनर्वास मिलता है और यदि ऊपरी सियांग की परियोजना (project of Upper Siang ) बनाई जाती है, तो यह बहुत अच्छा होगा. हमारे पास जो परियोजनाएं हैं वे इससे बेहतर होंगी क्योंकि इससे बिजली की उत्पादन लागत भी कम होगी और सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि असम में बाढ़ की स्थिति दूर हो जाएगी.

बता दें कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में सिक्किम और पश्चिम बंगाल के ब्रह्मपुत्र बेसिन के लिए जल संसाधनों के एकीकृत प्रबंधन के लिए उत्तर पूर्व जल प्रबंधन प्राधिकरण (orth East Water Management Authority) नामक एक मल्टी डिसप्लनेरी बॉडी (multi-disciplinary body) की स्थापना विचाराधीन है.

इसके लिए मसौदा विधेयक (draft Bill) उच्चतम स्तर पर सभी हितधारकों के साथ परामर्श मोड में तैयार किया गया है और सभी संबंधित राज्यों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों, नीति आयोग, आदि को सर्क्यलेट किया गया था.

पढ़ें - भंवरी प्रकरण : दस साल से जेल में बंद पूर्व विधायक मलखान सिंह को HC से जमानत

मार्च 2020 में जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता (chairmanship of Jal Shakti Minister) र्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों का एक सम्मेलन था भी आयोजित किया गया था.

मसौदा विधेयक के साथ मसौदा कैबिनेट नोट की वर्तमान में कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा जांच की जा रही है. संसद में विधेयक को जल्द से जल्द पेश करने का प्रयास किया जा रहा है.

नई दिल्ली : ऐसे समय में जब पूरा असम बाढ़ से जूझ रहा है, केंद्र ने स्वीकार किया है कि अरुणाचल प्रदेश और अन्य राज्यों के हाईड्रोइलेक्ट्रिक जनरेशन डैम (hydroelectric generation dams) से पानी छोड़ने से राज्य में बाढ़ आती है और निचले इलाकों को नुकसान (damages in downstream areas) होता है.

जल संसाधन विभाग (Department of Water Resources) , नदी विकास और गंगा संरक्षण के अधिकारियों ने एक संसदीय समिति के समक्ष स्वीकार किया कि रंगनाडी, पारे, दोयांग, कोपिली, उमियाम, सेरलुई, तुइरियाल जैसे जलविद्युत उत्पादन के लिए बनाए गए कुछ बांध और अरुणाचल प्रदेश में असम के ऊपर स्थित हैं और जब अन्य राज्य क्षेत्र में उच्च वर्षा के कारण नदियों का पानी छोड़ते हैं, तो इसके परिणामस्वरूप असम में निचले क्षेत्रों में कुछ नुकसान होता है.

चूंकि इनमें से अधिकांश परियोजनाएं नदी परियोजनाओं से जुढ़ी हैं, इसलिए पानी को रोकने की कोई गुंजाइश नहीं है. हालांकि, जलाशयों के उचित संचालन, समन्वय और विनियमन के साथ कुछ हद तक बाढ़ पर नियंत्रण हासिल किया जा सकता.

आपदा प्रबंधन अधिनियम (Disaster Management Act), 2005 की धारा 10 में दिए अधिकारों का प्रयोग करते हुए जल शक्ति मंत्रालय ने सभी अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी किए हैं कि जब भी उनके द्वारा पानी छोड़ने का निर्णय लिया जाता है, तो वे निचले इलाकों के अधिकारियों को सूचित करें.

अधिकारियों ने कहा कि उक्त निर्णय को संबंधित राज्यों द्वारा पर्याप्त रूप से अग्रिम रूप से सूचित किया जाना चाहिए, ताकि बांधों और जलाशयों से पानी छोड़ने के कारण आने वाली बाढ़ की स्थिति से निचली इलाकों को बचाने के लिए डाउनस्ट्रीम अधिकारियों को आदेश दिए जा सकें.

अधिकारियों ने असम में बाढ़ पर अरुणाचल प्रदेश जलविद्युत परियोजनाओं के प्रभाव (impact of hydro projects) के बारे में विस्तार से बताया कि यदि ऊपरी सियांग जिले के मुख्यालय यिंगकिओंग में रहने वाले लोगों को उचित पुनर्वास मिलता है और यदि ऊपरी सियांग की परियोजना (project of Upper Siang ) बनाई जाती है, तो यह बहुत अच्छा होगा. हमारे पास जो परियोजनाएं हैं वे इससे बेहतर होंगी क्योंकि इससे बिजली की उत्पादन लागत भी कम होगी और सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि असम में बाढ़ की स्थिति दूर हो जाएगी.

बता दें कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में सिक्किम और पश्चिम बंगाल के ब्रह्मपुत्र बेसिन के लिए जल संसाधनों के एकीकृत प्रबंधन के लिए उत्तर पूर्व जल प्रबंधन प्राधिकरण (orth East Water Management Authority) नामक एक मल्टी डिसप्लनेरी बॉडी (multi-disciplinary body) की स्थापना विचाराधीन है.

इसके लिए मसौदा विधेयक (draft Bill) उच्चतम स्तर पर सभी हितधारकों के साथ परामर्श मोड में तैयार किया गया है और सभी संबंधित राज्यों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों, नीति आयोग, आदि को सर्क्यलेट किया गया था.

पढ़ें - भंवरी प्रकरण : दस साल से जेल में बंद पूर्व विधायक मलखान सिंह को HC से जमानत

मार्च 2020 में जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता (chairmanship of Jal Shakti Minister) र्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों का एक सम्मेलन था भी आयोजित किया गया था.

मसौदा विधेयक के साथ मसौदा कैबिनेट नोट की वर्तमान में कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा जांच की जा रही है. संसद में विधेयक को जल्द से जल्द पेश करने का प्रयास किया जा रहा है.

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