नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच पिछले दो साल से चल रहे गतिरोध के कारण दोनों देशों ने सरहद पर सैनिकों की तैनाती कर रखी है. सैन्य उपकरण भी बढ़ा रखे हैं. ऐसे में चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स का महामारी से भारतीय अर्थव्यवस्था के उबरने को लेकर तारीफ करना चौंकाने वाला है. रविवार को 'ग्लोबल टाइम्स' के संपादकीय में कहा गया है 'इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पिछले कुछ महीनों में भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है. भारत का कुल निर्यात 2021-22 में 675 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया, जबकि अप्रैल में माल और सेवा कर संग्रह ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है. उसका विनिर्माण पीएमआई 54.7 था, जो सभी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की ओर इशारा करता है.'
'आईएमएफ ने अनुमान लगाया है कि भारत 2022 में 8 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर हासिल करने के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन सकता है. दुनिया के लिए यह बहुत उत्साहजनक है कि भारत महामारी से प्रेरित संकटों से तेजी से उबरना जारी रखे.' 'ग्लोबल टाइम्स' में जो कुछ भी छपता है उसकी जांच बीजिंग सरकार द्वारा की जाती है. इसमें रखे जाने वाले विचार आमतौर पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की सोच को दर्शाते हैं.
रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण पुरानी विश्व व्यवस्था के फिर से आकार लेने की संभावना है. भारत अमेरिका के नेतृत्व वाले ब्लॉक और उभरते रूस-चीन समीकरणों के बीच रस्साकशी में फंस गया है. दोनों पक्ष उसे आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत शांति का पक्षधर है, वह सामरिक स्वायत्तता की नीति का अनुसरण कर रहा है. यही वजह है कि वह तटस्थ रहकर किसी का पक्ष लेने से बच रहा है.
यूक्रेन संघर्ष में भारत का रुख चीन के साथ रूस के बढ़ते संबंधों से भी प्रभावित हुआ है. अमेरिका के नेतृत्व वाले ब्लॉक के लिए भारतीय झुकाव जाहिर तौर पर रूस को चीन के ज्यादा निकट करेगा. आमतौर पर भारत विरोधी बयानबाजी के लिए जाने जाने वाले मुखपत्र (ग्लोबल टाइम्स) के लेख ने भी सुलह का इशारा किया है. उसने लिखा है कि 'जब तक चीन और भारत एक साथ हैं, जब भी बड़े भू-राजनीतिक संकट आएंगे तो उनकी आवाज़ें बड़ी हो जाएंगी और स्थापित शक्तियों द्वारा सुनी जाएंगी.' उसने लिखा कि 'सहयोग की बजाए प्रतिस्पर्धा को प्राथमिकता देने से दोनों अर्थव्यवस्थाओं के लिए अनावश्यक टकराव पैदा होगा, जिससे दुनिया की दो सबसे बड़ी उभरती बाजार शक्तियों की विकास संभावनाओं को नुकसान होगा.'
नई दिल्ली से भारत-चीन संबंधों पर ध्यान देने और पश्चिमी शक्तियों के प्रति चौकन्ना रहने के लिए कहते हुए लेख में कहा गया है कि भारत-चीन संबंध कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे 'अमेरिका और पश्चिम के रणनीतिकार देखना चाहेंगे.' वे चाहते हैं कि दो एशियाई दिग्गज सहयोग और साझेदारी के बजाय अधिक प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता में लगे रहें. लेकिन लेख का मुख्य विषय चीनी कंपनियों की भारतीय शाखाओं पर भारत सरकार की ओर से की जा रही कार्रवाई था. दरअसल हाल ही में प्रमुख चीनी स्मार्टफोन निर्माता कंपनी Xiaomi के भारत ने लगभग 725 मिलियन अमेरिकी डॉलर फ्रीज कर दिए हैं. कथित तौर पर रॉयल्टी भुगतान की आड़ में विदेशों में अवैध रूप से पैसे भेजने के मामले में प्रवर्तन निदेशालय जांच कर रहा है. Xiaomi किसी भी अवैध लेनदेन से इनकार करता रहा है.
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