देहरादून: उच्च हिमालई क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. लगातार हो रहे क्लाइमेट चेंज की वजह से एक ओर ग्लेशियर में मौजूद झीलों का आकार बढ़ रहा है, वहीं, दूसरी ओर नई-नई झीलें भी बन रही हैं. लगातार बढ़ रही ग्लेशियर झीलों का आकार, भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती है. अगर ये ग्लेशियर लेक कभी टूटे तो बड़ी तबाही मचेगी. वैज्ञानिकों के अनुसार गंगोत्री और भागीरथी बेसिन में मौजूद कुछ झीलों का आकार लगातार बढ़ रहा है, जो चिंताजनक है.
झीलों के बढ़ने के तीन कारण : उत्तराखंड रीजन में करीब एक हजार ग्लेशियर हैं. इन ग्लेशियर में करीब 1400 से 1500 ग्लेशियर झील मौजूद हैं. ग्लेशियर में किसी जगह पर पानी के एकत्र होने को ही ग्लेशियर झील कहते हैं. ग्लेशियर झील में पानी बढ़ने के मुख्य रूप में तीन कारण होते हैं. जिसमें मुख्य कारण ग्लेशियर के पिघलने के कारण जमा पानी होता है. दूसरा कारण स्नो फॉल है. तीसरा कारण बारिश है. इन तीनों ही वजहों से झीलों का आकार बढ़ता है.
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सेटेलाइट इमेज के जरिए हो रही मॉनिटरिंग: ग्लेशियर में मौजूद झीलों की सेटेलाइट इमेज के जरिए मॉनिटरिंग की जाती है. वाडिया निदेशक डॉ कालाचंद साईं ने बताया सेटेलाइट इमेज के जरिए की जा रही मॉनिटरिंग से लेक की गतिविधियों पर नजर रखी जाती है. साथ ही झील में पानी की मात्रा को भी आंका जाता है. झील के चारों तरफ जो वॉल होती है वो किसी हार्ड मटेरियल की नहीं बल्कि लूज मटेरियल से बनी होती है. यही वजह है कि जब भी झील में पानी का दबाव बढ़ता तो ये वॉल टूट जाती है. जिसको देखते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ग्लेशियर में मौजूद ग्लेशियर झीलों का अध्ययन कर रहा है. इस अध्यन में झीलों में पानी की मात्रा के साथ ही झील की वॉल की क्षमता का भी पता चल सकेगा.
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भूकंप से ग्लेशियर झील की वॉल पर पड़ता है असर: वाडिया निदेशक डॉ कालाचंद साईं ने बताया वॉल की क्षमता से अधिक पानी झील में एकत्र होता है, तो वह टूट जाएगा. जिससे नीचे रहने वाले लोगों या फिर पावर प्रोजेक्ट्स और विकास कार्यों पर इसका सीधा असर पड़ेगा. यही नहीं, ग्लेशियर झील के वॉल के टूटने में भूकंप भी एक बड़ा रोल अदा करता है. भूकंप आने से झील की वॉल पर कई बार दरारें पड़ जाती हैं. जिसके कारण इससे पानी रिसने लगता है, जो धीरे धीरे बढ़ता रहता है.
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ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रही लेक: ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. ऐसे में ग्लेशियर के लगातार पिघलने के चलते ग्लेशियर में झील बने की घटना भी अधिक हो रही है. इसके अलावा क्लाइमेट चेंज होने की वजह से कई बार उच्च हिमालय क्षेत्र पर बहुत अधिक बर्फबारी होती है, लिहाजा गर्मियों के मौसम में बर्फ पिघलती है. जिसके चलते ग्लेशियर पर झील बढ़ने लगती है. वर्तमान समय में ग्लेशियर में झीलें बढ़ रही हैं. यही नहीं, इन सभी फैक्टर्स की वजह से न सिर्फ नए-नए झीलें बन रहे हैं बल्कि पहले से मौजूद झीलों के आकार में भी बढ़ोतरी हो रही है.
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गंगोत्री और भागीरथी बेसिन में बढ़ रहा है ग्लेशियर झीलों का आकार: वाडिया निदेशक डॉ कालाचंद साईं ने बताया गंगोत्री और भागीरथी बेसिन में काम करने के लिए आपदा विभाग से प्रोजेक्ट्स लिया था. जिसके अध्ययन में पता चला है कि इन दोनों बेसिन की कुछ झीलों का आकार बढ़ रहा है. इन झीलों का आकार धीमी गति से बढ़ रहा है. गंगोत्री और भागीरथी बेसिन में मौजूद किसी भी लेक की अभी टूटने की संभावना नहीं है.