जयपुर. विशेष अदालत ने राजस्थान के जयपुर में वर्ष 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के दौरान जिंदा मिले बम के मामले में आरोपी सैफुर्रहमान, मोहम्मद सैफ और अन्य आरोपियों की अर्जी खारिज कर दी है. प्रार्थना पत्र में उन्हें जिंदा बम मामले को जयपुर बम ब्लास्ट मामले के समान मानते हुए बरी करने का आग्रह किया था. वहीं कोर्ट ने एटीएस की उन अर्जियों को मंजूर किया है, जिनमें पूर्व एडीजी अरविन्द कुमार जैन और मीडियाकर्मी प्रशांत टंडन सहित अन्य गवाहों का नाम जोड़ने और उन्हें गवाही के लिए बुलाने और मामले में पेश पूरक आरोप पत्र को रिकॉर्ड पर लेने का आग्रह किया था.
आरोपियों की ओर से प्रार्थना पत्र में कहा गया कि जिंदा बम और जयपुर ब्लास्ट केस में ज्यादातर गवाह और दस्तावेज समान हैं. बम ब्लास्ट के मामले में हाईकोर्ट उन्हें बरी कर चुका है. ऐसे में समान तथ्यों के आधार पर केस में दुबारा ट्रायल नहीं हो सकती. भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(2) में भी प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता है.
इसके अलावा सीआरपीसी की धारा 300 के तहत अगर किसी मामलें में आरोपी दोषमुक्त हो चुके हैं तो उन्हीं तथ्यों और गवाहों के आधार पर आरोपियों के खिलाफ दूसरा मामला नहीं चलाया जा सकता है, इसलिए उन्हें जिंदा बम मामले में दोषमुक्त किया जाए. वहीं, राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि जिंदा बम और सिलसिलेवार बम धमाकों की घटना अलग-अलग जगह पर हुई थी. ऐसे में जिंदा बम प्रकरण को बम ब्लास्ट के अपराध के समान मामले की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने आरोपियों के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है.