नई दिल्ली : हमारे देश में किसी भी पार्टी को मुख्यमंत्री बदलना इतना आसान नहीं होता है. जब भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा होने के पहले बदला जाता है तो उसके उत्तराधिकारी का चयन किसी भी पार्टी के लिए काफी मुश्किल होता है. भारतीय जनता पार्टी आलाकमान के फैसले को सब लोग चुपचाप भले मान लेते हों, लेकिन कांग्रेस पार्टी में ऐसा नहीं देख रहा है. अशोक गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले नए दावेदार का फैसला होना है. वहां के विरोध व बगावती तेवर को देखकर लगता है कि कहीं पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने की कहानी राजस्थान में भी न दोहरायी जाय और दो नेताओं की खींचतान में सत्ता हाथ से निकल जाय या विरोध इस कदर बढ़े की पार्टी में टूट हो जाए. कहा जा रहा है कि अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) की पसंद का नया सीएम नहीं बना तो कांग्रेस आलाकमान चाह कर भी कांग्रेस पार्टी की सरकार वापस लाने में असफल सिद्ध होगा. पंजाब की सत्ता जाने के साथ साथ कांग्रेस के पास आज की तारीख न तो सिद्धू हैं और न ही अमरिंदर सिंह. पंजाब 2022 के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Siddu) ने पंजाब के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. तो वहीं अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) भाजपा में चले गए हैं.
पंजाब कांग्रेस में जैसा असंतोष चुनाव के एक साल पहले 2021 में हुआ था, कुछ वैसा की तरह ही राजस्थान में चुनाव के एक साल पहले होने जा रहा है. फिर भी जानकारों का कहना है कि दोनों राज्यों की स्थिति अलग है और सियासी हालात भी अलग हैं. पंजाब में कैप्टन के खिलाफ कांग्रेस के दो तिहाई विधायक खड़े थे और सीएलपी बैठक में बदलने का फैसला किया था. जबकि राजस्थान में कांग्रेस विधायक बड़ी संख्या में अशोक गहलोत के साथ हैं और सीएम बदलने के पक्ष में नहीं है. इतना ही नहीं सचिन पायलट को नए सीएम बनाने के लिए लिए बड़ी संख्या में विधायकों ने नाराजगी जाहिर की है. इसकी एक बड़ी वजह पायलट का 2020 में बगावती तेवर अख्तियार करना भी बताया जा रहा है.
लेकिन खुद राजस्थान का एक विधायकों को पार्टी के लोगों को संबोधित करते हुए कह रहा है कि पंजाब की कहानी यहां दोहरायी जा रही है. सरकार के मंत्री शांतिकुमार धारीवाल एक वीडियो में बोल रहे हैं कि सारा काम एक षड़यंत्र के तहत हो रहा है. जिस षड़यंत्र ने पंजाब खोया था, वही काम राजस्थान में भी होने जा रहा है.
मंत्री शांतिकुमार धारीवाल बोले-
''आज ऐसी क्या बात उठ गई जो कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत का इस्तीफा मांगने के लिए तैयार हो रहा है. यह सारा षड़यंत्र है, जिस षड़यंत्र ने पंजाब खोया, वो राजस्थान भी खोने जा रहा है. ये तो आप लोग, अपन लोग (विधायक) समझ जाएं.. तब तो राजस्थान बचेगा. वरना राजस्थान भी हाथ से जाएगा.''
2018 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने राजस्थान का चुनाव सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते लड़ा था और 2018 के चुनाव में राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 100 सींटें मिली थीं. वहीं भारतीय जनता पार्टी को 72 सीटों से संतोष करना पड़ा था. तभी ऐसी उम्मीद थी कांग्रेस सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाएगी, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने यह कुर्सी अपने वफादार अशोक गहलोत को सौंपी. तब से ही सचिन पायलट खेमा नाराज हैं और एकबार तो बगावत के मूड में चले गए थे. लेकिन मान मनौव्वल के बाद वह मान गए और कांग्रेस सरकार जाते जाते रह गयी. उसके बाद से सचिन पायलट को उम्मीद है कि उन्हें अगला मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. अब जब गहलोत का कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा है तो ऐसे में सचिन पायलट गहलोत के सशक्त उत्तराधिकारी हो सकते हैं, लेकिन उनकी पिछली बग़ावत उनके लिए रोड़े अटकाने लगी है.
एक को मनाना कांग्रेस की मजबूरी
अशोक गहलोत समर्थकों ने विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर दिया था और 70 विधायकों ने रविवार शाम विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के घर पहुंचकर इस्तीफा दिया दे दिया. इस दौरान मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने 92 विधायकों के साथ होने का दावा करते हुए कहा कि बगावत करने वाले लोगों में से किसी को मुख्यमंत्री की कुर्सी न दी जाय. पार्टी में विरोध की चर्चाओं के साथ साथ आलाकमान के ढुलमुल रवैए का नतीजा यह है कि पार्टी की जमकर किरकिरी हो रही है. फिलहाल सब कुछ पार्टी आलाकमान पर निर्भर है कि वह पहले गहलोत को समझा- बुझा कर सचिन को आगे करता है या गहलोत की बात को वजन देते हुए किसी और को कुर्सी पर बैठाता है. इस स्थिति में अशोक गहलोत को ही अपनी जिद छोड़कर अपने समर्थकों को समझाना पड़ेगा. नहीं तो पार्टी में विभाजन या सरकार का जाना तय हो सकता है.
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फिलहाल देखा जाय तो सचिन पायलट ने पदयात्रा से लौटने के बाद पूरे मामले में केवल चुप्पी साध रखी है. गहलोत समर्थकों के दावे व आंकड़ों को देखें तो पायलट खेमे में सिर्फ 16 विधायक बचते हैं. हालांकि अभी तक पायलट गुट की तरफ से विधायकों की संख्या को लेकर कोई दावा नहीं किया गया है. सचिन फिलहाल सीएम बनेंगे तो विधाकों के दम पर नहीं, बल्कि आलाकमान के दम पर बनेंगे. बन भी गए तो कितनी देर टिकेंगे यह देखने वाली बात होगी.
अशोक गहलोत के खेमे का ऐलान
अशोक गहलोत के खेमे ने अभी से यह माहौल बनाना शुरू कर दिया है कि मुख्यमंत्री पद पर सचिन पायलट को छोड़कर किसी और को बैठाया जाना चाहिए. वह किसी भी हालत में सचिन को गहलोत के उनका उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे. देर रात सत्तर विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के पास पहुंचकर जिस तरह से दबाव बनाने के लिए अपना इस्तीफ़ा उन्हें सौंपा है, उससे साफ है कि आलाकमान के लिए यह काम आसान नहीं है.
वहीं अशोक गहलोत की सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की पैरवी करते हुए कहा है कि उन्हें सबसे बेहतर बनाया दावेदार बताया. गुढ़ा ने कहा कि अब जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अब कांग्रेस अध्यक्ष बनना लगभग तय होने जा रहा है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई और ही बैठेगा. ऐसे में गहलोत के बाद अब मेरी जानकारी में कांग्रेस में पायलट से बेस्ट कोई फेस नहीं है.
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पिछले चुनाव में 200 विधानसभा वाले राजस्थान की 199 सीटों पर वोटिंग हुई थी. जिनमें से कांग्रेस को 99 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को 71 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. इसके अलावा बीएसपी को 6, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्ससिस्ट) को 2, भारतीय ट्रायबल पार्टी को 2, राष्ट्रीय लोक दल को एक, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को 3 और निर्दलीयों को 13 सीटों पर जीत मिली थी. इसके बाद 2019 में बसपा के सभी 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वहीं रालोद ने भी कांग्रेस को अपना समर्थन दिया था. वहीं 2021 में हुए उपचुनावों में कांग्रेस ने दोनों सीटों पर जीत दर्ज की थी. जिसके बाद वर्तमान में कांग्रेस के पास 108 विधायक हो गए हैं. वहीं बीजेपी ने अपनी एक विधायक शोभा रानी को क्रॉस वोटिंग करने के लिए सस्पेंड कर दिया था, जिसके बाद भाजपा के विधायकों की संख्या 70 रह गयी थी.
आपको पंजाब का घटनाक्रम याद होगा जब कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच नाराजगी के कारण अमरिंदर सिंह हटाया गया, लेकिन सिद्धू की जगह चरनजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया गया. बाद में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पार्टी छोड़कर नयी पार्टी बना ली और कांग्रेस के विरोध में चुनाव भी लड़ा. इसी के कारण कांग्रेस को राज्य में 117 में से केवल 18 सीटें ही मिल सकीं, जबकि आम आदमी पार्टी 92 सीटों पर शानदार जीत दर्ज करके पहली बार पंजाब की कुर्सी हथियाने में कामयाब रही.
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