नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर रेलवे ट्रेनों की देरी का कारण साबित नहीं करता है या सबूत नहीं देता है, तो उसे ट्रेनों की देरी के लिए मुआवजे का भुगतान करना होगा.
शीर्ष अदालत ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, 'जब तक तक देरी की व्याख्या करने वाले सबूत नहीं पेश किए जाते हैं और यह साबित नहीं हो जाता है कि देरी उनके नियंत्रण से बाहर थी और/ या यहां तक कि देरी के लिए कुछ औचित्य था, रेलवे देरी और ट्रेन के देरी से पहुंचने के लिए मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है.'
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ उत्तर पश्चिम रेलवे की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नई दिल्ली द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा, जिसमें उसने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, अलवर द्वारा पारित मूल आदेश की पुष्टि की गई थी. जिसमें प्रतिवादी द्वारा वर्तमान मामले में दायर शिकायत की अनुमति दी गई थी और उत्तर पश्चिम रेलवे 15,000 रुपये टैक्सी खर्च के लिए, 10,000 रुपये बुकिंग खर्च और 5,000 -5,000 रुपये मानसिक पीड़ा और मुकदमे का खर्च के लिए भुगतान करने का आदेश दिया गया था.
प्रतिवादी ने दावा किया था कि अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस के आगमन में चार घंटे का विलंब था, इसलिए उसकी जम्मू से श्रीनगर के लिए बुक कनेक्टिंग फ्लाइट छूट गई.
इस दौरान उसे टैक्सी से श्रीनगर की यात्रा करने के लिए मजबूर होना पड़ा और परिणामस्वरूप 9000 रुपये हवाई किराए के रूप में नुकसान हुआ और 15000 रुपये टैक्सी को देने पड़े. प्रतिवादी को 10,000 रुपये का नुकसार डल झील में नाव की बुकिंग के कारण भी हुआ.
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अदालत ने कहा कि जम्मू में ट्रेन देरी से आने के बारे में रेलवे की ओर से कोई सबूत नहीं दिया गया है. रेलवे को सबूत पेश करने और ट्रेन के देरी से आगमन की व्याख्या करने और यह साबित करने की आवश्यक है कि देरी उनके नियंत्रण से परे कारणों के कारण हुई. कम से कम रेलवे को देरी की व्याख्या करने की आवश्यकता थी, जिसमें रेलवे विफल रहा.