भोपाल। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को उस निर्देशक की निगाह से देखिए जिसने फिल्म में हिट होने के सारे फार्मूले डाले हैं, लेकिन फिर भी वो ये गारंटी नहीं ले सकता कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट होगी. बॉक्स ऑफिस की जगह आप ईवीएम कह लीजिए. तो सवाल ये कि एमपी में अपने आखिरी अंतरे में पहुंची राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा क्या हिंदी बेल्ट के पहले राज्य के इम्तेहान में पास होती दिख रही है या 2023 के नतीजे से पहले किसी नतीजे पर पहुंच जाना अभी जल्दबाजी होगी.
राहुल की छवि बदली, कांग्रेस के लिए क्या बदला: जानकार ये मान रहे हैं कि हिंदी बेल्ट में आने के बाद राहुल गांधी के भाषण से लेकर बयानों में जो सधापन आया है वो ये बता रहा है कि राहुल गांधी अब गंभीर राजनेता की तरह उभर रहे हैं. तो इस लिहाज से राहुल गांधी की निजी लोकप्रियता और उनको लेकर जो खाका था समाज में वो बेशक दरक रहा है. लेकिन चुनौती ये है कि उनकी छवि में आया ये बदलाव कांग्रेस के जनाधार में कितना फर्क ला पाएगा. [Mission MP 2023 Saal Chunavi Hai]
6 जिले और 14 सीटें, ईवीएम पर कितना असर: बुरहानपुर में एंट्री के साथ राहुल गांधी ने एमपी में उमड़े जनसैलाब को देखकर कहा था कि एमपी ने महाराष्ट्र को भी पीछे कर दिया. हांलाकि, उसके बाद आम लोगों के संख्या बल के हिसाब से यात्रा कमजोर हुई. सवाल ये है कि जो भीड़ है भी, वो केवल आकर्षण में जुटी है या मजबूती के साथ ये जुड़ाव कांग्रेस के हक में ईवीएम तक जाएगा. इसमें दो राय नहीं कि बुरहानपुर से शुरू होकर मालवा के आखिरी छोर तक पूरी यात्रा में हर वर्ग तक कांग्रेस की रीच बनाने के हिसाब से प्लानिंग की गई है. बुरहानपुर में अल्पसंख्यकों की मोहब्बत के साथ बढ़ा राहुल गांधी का कारवां. टंट्या भील की जन्मस्थली पर आदिवासियों से कांग्रेस के पुराने नाते को जगाता है. ओंकारेश्वर में सॉफ्ट हिंदुत्व पर बढ़ता है, उज्जैन में महाकाल तक बरकरार रहता है. बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्मस्थली पहुंच कर ये कारवां दलितों, वंचितों का पैरोकार बन जाता है. यानि रणनीति के हिसाब से देखें तो दो राय नहीं कि पूरी प्लानिंग इस तरह से की गई है कि मालवा निमाड़ की 14 विधानसभा सीटों से गुजर रही ये यात्रा कई वर्गों को छूते हुए एमपी के बाकी हिस्सों तक भी असर दिखा जाए. [Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra in MP]
क्या वार्म अप हुई कांग्रेस ? : एमपी में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा सही मायनों में तब पार्टी प्लेटफार्म पर असर दिखा पाती, जब कांग्रेस के धड़े अपने-अपने खेमे छोड़कर साथ आ पाते. लेकिन, पूरी यात्रा के दौरान राहुल गांधी को मुंह दिखाई को बेताब नेता अपने नंबर बढ़ाने के लिए दूसरे का गणित बिगाड़ रहे हैं. बैनर होर्डिंग से लेकर राहुल गांधी के बगलगीर होकर किसे चलने का मौका मिला, उन तस्वीरो में फर्क दिखाई देता है. ये बेशक हुआ है कि यात्रा के पहले नेताओं ने उपयात्राएं निकालीं. यानि कार्यकर्ता वार्मअप हुआ, लेकिन ये जोश 2023 तक बरकरार रखना भी चुनौती है.
एमपी के किन नेताओं ने निकाली यात्रा, असर कितना
जनता का आर्शीवाद लेने निकलते रहे हैं मामा : शिवराज सिंह चौहान की जन आर्शीवाद यात्रा, सीएम शिवराज की तो पहचान ही यात्रा से बनी. लंबे वक्त तक उन्हें पांव पांव वाले भैय्या कहा जाता रहा. क्योंकि वे अपने संसदीय क्षेत्र में अपनी जनता तक यात्रा के जरिए मिलने पहुंचते थे. बाद में बीजेपी के सत्ता में आ जाने के बाद इन यात्राओं का स्वरूप बदला. सीएम शिवराज ने जो प्रमुख यात्राएं निकाली हैं. उनमें नर्मदा सेवा यात्रा और फिर जन आर्शीवाद यात्रा. दोनों ही यात्राओ का लक्ष्य चुनाव से पहले शिवराज का जनता से सीधे कनेक्ट. 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले निकली जनआर्शीवाद यात्रा भले ही उम्मीद के मुताबिक नतीजे ना दे पाई हो. बाकी इसके पूर्व सीएम शिवराज की हर यात्रा के साथ उनकी लोकप्रियता का ग्राफ भी बढ़ा है और बीजेपी की हर इलाके में पकड़ मजबूत हुई है.
उमा भारती की राम रोटी यात्रा : पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी उन जमीनी नेताओं में रही हैं जिन्होंने बहुत पहले जनता से जुड़ने के लिए यात्रा के फार्मूले को ना सिर्फ जान लिया था, बल्कि समय-समय पर उसका इस्तेमाल भी किया. भाजपा से निष्कासित किए जाने के बाद से उमा भारती भोपाल से अयोध्या तक की पद यात्रा पर निकलीं और इसे उन्होंने राम रोटी पदयात्रा का नाम दिया था. 2003 के विधानसभा चुनाव के पहले भी उमा भारती ने यात्राओं के जरिए ही पूरा एमपी नापा था और एमपी में बीजेपी के लिए माहौल बनाने में वे यात्राएं असरदार रही थीं. हांलाकि, इन्हीं उमा भारती की राम रोटी यात्रा कोई खास असर नहीं दिखा पाई.
दिग्विजय की नर्मदा परिक्रमा : 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले नर्मदा परिक्रमा पर निकले दिग्विजय सिंह की यात्रा पूरी तरह से आध्यात्मिक यात्रा थी. लेकिन उनकी यात्रा ने नर्मदा बेल्ट की 100 से ज्यादा सीटों पर असर दिखाया था. उसकी बड़ी वजह ये कि दिग्विजय सिंह ने गुटों में बंटी कांग्रेस को इस यात्रा के जरिए खड़ा किया था. नर्मदा बेल्ट के हर इलाके में कांग्रेस की जमीन मजबूत करने का काम करते रहे दिग्विजय और 2018 के विधानसभा चुनाव में उसके नतीजे भी सामने आ गए.
66 में से कितनी सीटें जोड़ पाएगी यात्रा : मालवा निमाड़ के जिस इलाके से भारत जोड़ो यात्रा गुजर रही है उस इलाके की 66 सीटों पर मिली जीत हार तय कर देती है कि चुनाव में पलड़ा किस तरफ बैठेगा. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मुकाबले यहां कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा था. कांग्रेस के खाते में 34 सीटें गई थीं, जबकि बीजेपी के पाले में 29 सीटें आई थीं. कांग्रेस मध्य प्रदेश में जीत के इस दरवाज़े पर अपनी मजबूत दस्तक चाहती है.
राहुल अब पिंजरे के तोते नहीं रहे : वरिष्ठ पत्रकार और कांग्रेस की सियासत को बहुत करीब से देखने वाले अरुण दीक्षित कहते हैं, "इस यात्रा से जो पहला बड़ा बदलाव दिखाई दे रहा है, वो खुद राहुल गांधी में नज़र आ रहा है. अब वो पिंजरे के तोते नहीं रहे. जो बीजेपी ने उनकी पप्पू और ना जाने क्या क्या उपमाएं देकर छवि बनाई थी. राहुल उससे बाहर आ चुके हैं और इसमें भी दो राय नहीं कि वे मध्य प्रदेश में जो जमीन बना रहे हैं. 2023 के चुनाव में ये कांग्रेस को मजबूती दे सकती है, बशर्ते कांग्रेस के किलेदार जो हैं वो अपने अंतरद्वंदों को भूलकर एकजुट हो जाएं.