शहडोल। अगर कोई चीज महंगी हो जाती है तो आप क्या करते हैं? सामान्य सी बात है, हम उस चीज का उपयोग कम कर देते हैं, जैसे अभी टमाटर के रेट जिस तरह से बढ़े उसके बाद लोगों ने उसे खरीदना कम कर दिया. जहां 1 किलो टमाटर का उपयोग होता था, वहां अब आधे या एक पाव से ही काफी लोग काम चला रहे हैं, लेकिन आज हम जंगल में पाए जाने वाले जिस सब्जी के बारे में आपको बताने जा रहे वो टमाटर से भी कई गुना महंगी है. फिर भी लोगों के बीच डिमांड बहुत ज्यादा है, इसे खरीदने लोगों की होड़ मची रहती है.
इतना महंगा, फिर भी गजब डिमांड: शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है, जंगलों में हरे-भरे साल(पेड़) के पेड़ों की यहां भरमार है और यही वजह है ग्रामीण अंचलों के आदिवासी समाज के लोग निकल पड़ते हैं एक बहुत ही बहुमूल्य साल के जंगलों में मिलने वाले इस अनोखे सब्जी की तलाश में, क्योंकि ये सेहत के लिए शानदार होती है और बाजार में बेचने पर इसमें कमाई भी अच्छी होती है, हम बात कर रहे हैं, जंगल में मिलने वाले रुगड़ा की, जिसे पुटु के नाम से भी जाना जाता है.
![Puttu vegetable costlier than tomato](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/29-07-2023/mp-sha-02-special-jangali-sabji-pkg-7203529_29072023184615_2907f_1690636575_631.jpg)
अलग-अलग क्षेत्र अलग-अलग नामों से इसकी पहचान है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी पहचान यही है कि ये साल के जंगलों में पाया जाता है. साल के जंगलों में पेड़ों के नीचे पाया जाता है, जिसे आदिवासी समाज के लोग बारिश होने पर जंगलों में जाते हैं और एक एक कर ढूंढ-ढूंढ कर उसे निकालते हैं और इकट्ठा करके कई किलो बनाते हैं. फिर उसे अपने घर में भी इस्तेमाल करते हैं और ज्यादा होने पर बाजार में भी बेचने लाते हैं, यह इतना महंगा है फिर भी इसकी डिमांड काफी अच्छी है.
शाकाहारी मटन के नाम से मशहूर है पुटु: साल के पेड़ों के नीचे पाया जाने वाला ये जंगली सब्जी मशरूम का ही एक प्रकार है, पुटू व्यापारी संतोष चौधरी बताते हुए कहते हैं कि इस की असली पहचान 'शाकाहारी मटन' है सावन के महीने में आता है सावन के महीने में ज्यादातर लोग मांस का सेवन नहीं करते हैं और उसके लिए यह 'शाकाहारी मटन' का काम करता है, क्योंकि स्वाद उसका उसी तरह होता है. ये सेहत के लिए भी शानदार होता है, महंगा बिकता है फिर भी इसकी डिमांड बहुत ज्यादा होती है. उसकी वजह यह है कि बहुत कम दिनों के लिए आता है और खाने में इतना स्वादिष्ट होता है कि लोग इसे बहुत पसंद करते हैं. खासकर वो लोग जो मीट मांस खाते हैं, लेकिन सावन के महीने में नहीं खा पाते हैं वह इस रुगड़ा से काम चलाते हैं."
600 रुपये किलो तक बिका: व्यापारी संतोष चौधरी बताते हैं कि "मौजूदा साल शहडोल जिले में इसे 150 रुपये पाव तक मतलब ₹600 किलो तक उन्होंने बेचा है. किसी-किसी दिन तो ₹700 किलो तक बेचा है और अभी भी जैसी इसकी सप्लाई होती है वैसे इसका रेट घटता बढ़ता रहता है. गांव में जाकर आदिवासी समाज के उन लोगों से जो जंगलों में जाकर इसे लाते हैं, किसी से आधा किलो किसी से 1 किलो किसी से 2 किलो खरीद कर लेकर आते हैं, फिर उसे बाजार में रखकर बेचते हैं."
आखिर ये इतना खास क्यों? कृषि वैज्ञानिक डॉ बीके प्रजापति बताते हैं कि "बाजार में इन दिनों रुगड़ा, पुटु, की बहुत ज्यादा भरमार है, आदिवासी समुदाय के बीच ये अलग-अलग क्षेत्र के हिसाब से अलग अलग नाम से जाना जाता है. इसे छत्तीसगढ़ में कहीं पुट-पुटु, कहीं बोडा, झारखंड में इसे रुगड़ा के नाम से पहचाना जाता है, ये गेस्ट्रम फैमिली और लाइको परडान 2 फैमिली के अंतर्गत ये पाए जाते हैं."
- शहडोल क्षेत्र में जो साल ( सरई )के जंगल पाए जाते हैं उन जंगलों में जुलाई के मध्य में जब लगभग 300 एमएम की बारिश हो जाती है और 30 डिग्री के आसपास का तापमान होता है, उमस बहुत ज्यादा रहती है और बिजली तड़कती रहती है, तब इसका निर्माण होता है. फिर जब बारिश होती है तब आदिवासी समुदाय के द्वारा पत्तियों के नीचे लकड़ी से किसी डंडे से कुदाली से इसे निकाला जाता और इकट्ठा किया जाता है.
- इसमें दो परत होती है, एक बाहरी परत होती है जो बहुत रफ होती है, हार्ड नेचर की होती है, और वह अंडे के आकार का होता है. इसके अंदरूनी भाग जो होता है, वह बहुत ही सॉफ्ट होता है जो खाने में भी बहुत ही टेस्टी होता है.
- यह बहुत ही गुणवत्ता युक्त और स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है, इसके अंदर विटामिन सी, विटामिन बी, फोलिक एसिड, प्रोटीन, विटामिन बी कॉन्प्लेक्स, विटामिन डी, लवण, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटैशियम, थायमिन, पोटास, कापर, मिनरल्स की प्रचुर मात्रा पाई जाती है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए ये बहुत ही फायदेमंद होता है.
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आयुर्वेद डॉक्टर ने कही ये बात: साल के जंगलों के पेड़ के नीचे पाए जाने वाले इस पुटू, रूगड़ा को लेकर आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि "साल (सरई) के जंगल जहां पाए जाते हैं, वहां एक विशेष तरह का फंगस ग्रो करता है, खासतौर पर तब जब बादल गरजते हैं और वर्षा होती हैं, ये एक नेचुरल फ़ॉर्म में फंगस है. स्वादिष्ट होने से और प्रोटीन का अच्छा सोर्स है, मशरूम का ही एक प्रकार है इसलिए इसकी डिमांड ज्यादा है."
![Puttu vegetable known as vegetarian mutton](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/29-07-2023/mp-sha-02-special-jangali-sabji-pkg-7203529_29072023184615_2907f_1690636575_115.jpg)
आदिवासियों के लिए प्रकृति का वरदान: जब बरसात शुरु होती है अच्छी बारिश होती है, तो अक्सर देखने को मिलता है कि ग्रामीण अंचलों में मजदूर वर्ग के लिए काम की थोड़ी बहुत कमी हो जाती है. ऐसे में आदिवासी समाज के ऐसे लोगों के लिए जंगलों पर डिपेंड रहने वाले लोगों के लिए यह आय का अच्छा सोर्स भी बन जाता है, आदिवासी समाज के लोग बरसात में जंगलों में जाते हैं इसे निकाल कर लाते हैं और इससे अच्छी आमदनी भी कर लेते हैं. साथ ही अपने भोजन में भी इसे शामिल करते हैं और बड़े चाव के साथ खाते हैं एक तरह से कहा जाए तो यह प्रकृति का बड़ा वरदान है.
अलग-अलग तरीके से बनाते हैं लोग: इसकी सब्जी बना कर खाने वाले कुछ ग्रामीण बताते हैं कि "यह खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होता है, इसकी अगर मसालेदार सब्जी बनाएं तो बहुत ही जबरदस्त बनती है. इसके साथ ही अगर किसी को सर्दी खांसी और जुकाम की समस्या हो तो इसके तरी वाली पानी को पीने से यह समस्या कम हो जाती है, मतलब असरदार होती है."