चंडीगढ़ : पंजाब विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ, 'हम तो डूबे हैं सनम, तुमको भी ले डूबेंगे' वाली कहावत लगभग सच साबित हुई. वर्ष 2017 में पंजाब में कांग्रेस को 77 सीटों पर उस समय तक की दूसरी बड़ी जीत दिलाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह पर भाजपा को इतना भरोसा था कि शायद उनके सहारे वह किंग मेकर की स्थिति में आ जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वहीं भाजपा से मिलीभगत के आरोप से घिरे कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस ने सत्ता से दूर किया तो उन्होंने कांग्रेस को सबक सिखाने की ठान ली और दोबारा पार्टी में नहीं गए.
इतना ही नहीं उन्होंने नई पार्टी बनाने का फैसला किया और उम्मीद थी कि उनके समर्थक कांग्रेसी विधायक भी पार्टी से टिकट न मिलने की सूरत में उनकी पंजाब लोक कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जो कांग्रेस से टूटे भी, वह भी भाजपा में शामिल हो गए. वहीं भारतीय जनता पार्टी, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उम्मीद थी कि कैप्टन के सहारे भाजपा पंजाब में राजनीतिक जमीन स्थापित कर लेगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
ये भी पढ़ें - पंजाब विधानसभा चुनाव परिणाम 2022: पंजाब में 'आप' की भारी जीत, सीएम चन्नी दोनों सीटों पर हारे
वहीं भाजपा और अमरिंदर के बीच गठबंधन के पीछे दो तथ्य प्रमुख रहे, इसमें एक तो किसान अंदोलन के दौरान पंजाब के सभी वर्ग में भाजपा के प्रति नफरत पैदा होना और दूसरा कैप्टन अमरिंदर सिंह का पिछली सरकार में पौने पांच साल का कार्यकाल पूरा करना था. वहीं दूसरा कांग्रेस की कारगुजारी के खिलाफ जो भी प्रचार किया जाता रहा, लोग उसे कैप्टन के कार्यकाल के तौर पर देखते रहे. इस वजह से कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा लेकिन कैप्टन भी राजनीतिक जमीन बनाने में असफल रहे. साथ ही भाजपा की उम्मीदें भी कैप्टन की हार के साथ धूमिल हो गईं.