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लिव-इन में रहने वालों को भी कानूनी सुरक्षा का हक : हाई कोर्ट

लिव-इन में रह रहे एक प्रेमी जोड़े की सुरक्षा को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश दिया है. हाई कोर्ट ने कहा कि चाहे इस मामले में प्रेमी जोड़े ने विवाह नहीं किया है और वह लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं फिर भी कानूनी सुरक्षा उनका अधिकार है.

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट
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Published : May 20, 2021, 10:46 PM IST

चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सभी को अपनी पसंद का साथी चुनने का हक है. साथी के साथ संबंध विवाह का हो या लिव इन रिलेशनशिप के माध्यम से हो यह उसके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, लेकिन वह कानूनी सुरक्षा पाने के हकदार हैं.

हाई कोर्ट ने यह आदेश लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे जींद के एक प्रेमी जोड़े के मामले में दिया. इस प्रेमी जोड़े ने हाईकोर्ट में सुरक्षा की मांग के लिए याचिका दी थी जिसे स्वीकार कर लिया गया है.

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर मित्तल ने अपने आदेश में कहा कि भारत का संविधान सभी की जान-माल की सुरक्षा की गारंटी देता है, चाहे इस मामले में प्रेमी जोड़े ने विवाह नहीं किया है और वह लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं फिर भी कानूनी सुरक्षा उनका अधिकार है.

जस्टिस सुधीर मित्तल का यह फैसला हाल के दिनों में आए फैसले से अलग है. पिछले कुछ दिनों से हाईकोर्ट की कई बेंच लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले प्रेमी जोड़ों की सुरक्षा की मांग इस आधार पर खारिज कर चुकी है कि यह सामाजिक ताने-बाने के खिलाफ है और इस अनैतिक रिश्ते पर हाई कोर्ट अपनी मोहर नहीं लगा सकता.

हरियाणा सरकार की तरफ से ये दी गई दलील
इस मामले में सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार की तरफ से यह दलील दी गई कि लिव-इन रिलेशनशिप कानूनी तौर पर मान्य नहीं है और इसे समाज स्वीकार नहीं करता इसलिए जोड़े को कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की जा सकती.

इस पर बेंच ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा हमारे समाज में घुस गई है. शुरू में पश्चिमी देशों से महानगर शहरों में स्वीकृति मिली है शायद इसलिए क्योंकि व्यक्तियों ने महसूस किया कि एक रिश्ते के लिए विभाग की औपचारिकता आवश्यक नहीं है.

शिक्षा में इस अवधारणा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. धीरे-धीरे यह अवधारणा छोटे शहरों और गांवों में भी फैल गई है. जैसा कि इस याचिका में स्पष्ट है इससे पता चलता है कि लिव-इन रिलेशनशिप के लिए सामाजिक स्वीकृति बढ़ रही है.

जस्टिस मित्तल ने कहा कि इस मामले में दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह के रिश्ते में प्रवेश करने का फैसला किया क्योंकि वह एक दूसरे के लिए अपनी भावनाओं के बारे में सुनिश्चित हैं.

हाईकोर्ट ने कहा कि इस जोड़े को अपनी सुरक्षा को लेकर खतरा है. कानून यह मानता है कि जीवन और प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता अनमोल है. व्यक्तिगत विचारों की परवाह किए बिना इसे संरक्षित किया जाना चाहिए.

पढ़ें- कोरोना काल में अन्य बीमारियों के इलाज पर निर्देश की मांग, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

कोर्ट ने कहा कि किसी भी नागरिक को कानून अपने हाथों में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए सरकार को प्रेमी जोड़े की सुरक्षा की मांग पर निर्णय लेने का आदेश जारी किया.

चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सभी को अपनी पसंद का साथी चुनने का हक है. साथी के साथ संबंध विवाह का हो या लिव इन रिलेशनशिप के माध्यम से हो यह उसके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, लेकिन वह कानूनी सुरक्षा पाने के हकदार हैं.

हाई कोर्ट ने यह आदेश लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे जींद के एक प्रेमी जोड़े के मामले में दिया. इस प्रेमी जोड़े ने हाईकोर्ट में सुरक्षा की मांग के लिए याचिका दी थी जिसे स्वीकार कर लिया गया है.

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर मित्तल ने अपने आदेश में कहा कि भारत का संविधान सभी की जान-माल की सुरक्षा की गारंटी देता है, चाहे इस मामले में प्रेमी जोड़े ने विवाह नहीं किया है और वह लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं फिर भी कानूनी सुरक्षा उनका अधिकार है.

जस्टिस सुधीर मित्तल का यह फैसला हाल के दिनों में आए फैसले से अलग है. पिछले कुछ दिनों से हाईकोर्ट की कई बेंच लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले प्रेमी जोड़ों की सुरक्षा की मांग इस आधार पर खारिज कर चुकी है कि यह सामाजिक ताने-बाने के खिलाफ है और इस अनैतिक रिश्ते पर हाई कोर्ट अपनी मोहर नहीं लगा सकता.

हरियाणा सरकार की तरफ से ये दी गई दलील
इस मामले में सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार की तरफ से यह दलील दी गई कि लिव-इन रिलेशनशिप कानूनी तौर पर मान्य नहीं है और इसे समाज स्वीकार नहीं करता इसलिए जोड़े को कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की जा सकती.

इस पर बेंच ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा हमारे समाज में घुस गई है. शुरू में पश्चिमी देशों से महानगर शहरों में स्वीकृति मिली है शायद इसलिए क्योंकि व्यक्तियों ने महसूस किया कि एक रिश्ते के लिए विभाग की औपचारिकता आवश्यक नहीं है.

शिक्षा में इस अवधारणा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. धीरे-धीरे यह अवधारणा छोटे शहरों और गांवों में भी फैल गई है. जैसा कि इस याचिका में स्पष्ट है इससे पता चलता है कि लिव-इन रिलेशनशिप के लिए सामाजिक स्वीकृति बढ़ रही है.

जस्टिस मित्तल ने कहा कि इस मामले में दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह के रिश्ते में प्रवेश करने का फैसला किया क्योंकि वह एक दूसरे के लिए अपनी भावनाओं के बारे में सुनिश्चित हैं.

हाईकोर्ट ने कहा कि इस जोड़े को अपनी सुरक्षा को लेकर खतरा है. कानून यह मानता है कि जीवन और प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता अनमोल है. व्यक्तिगत विचारों की परवाह किए बिना इसे संरक्षित किया जाना चाहिए.

पढ़ें- कोरोना काल में अन्य बीमारियों के इलाज पर निर्देश की मांग, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

कोर्ट ने कहा कि किसी भी नागरिक को कानून अपने हाथों में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए सरकार को प्रेमी जोड़े की सुरक्षा की मांग पर निर्णय लेने का आदेश जारी किया.

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