बेंगलुरु : हाथी, बुद्धिमान और धरती पर रहने वाले सबसे बड़े जानवरों में से एक हैं. जैसे-जैसे मानव अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहा है, दोनों (हाथी-इनसान) के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. कर्नाटक के जंगलों में इसको रोकेने के लिए एक अलग तरह का प्रयोग किया जा रहा है. इसके तहत हाथियों को रोकने के लिए मधुमख्खियों की मदद ली जा रही है.
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने सोमवार को देश में इनसान-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए 'मधुमक्खी-बाड़' बनाने की एक अनूठी परियोजना शुरू की. इसका नाम प्रोजेक्ट RE-HAB (Reducing Elephant – Human Attacks using Bees) है. इसका उद्देश्य मनुष्यों की बस्तियों पर हाथियों के हमलों को कम करने के साथ-साथ जवाबी कार्रवाई में होने वाली हाथियों की हत्या को कम करना है.
केवीआईसी के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना द्वारा कर्नाटक के कोडागु जिले के ग्राम चेलूर के आसपास चार स्थानों पर पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया गया. ये स्थान नागरहोल नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व की परिधि पर स्थित हैं और इन्हें इनसान-हाथी संघर्ष क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. परियोजना की कुल लागत सिर्फ 15 लाख रुपये है.
प्रोजेक्ट RE-HAB खादी और ग्रामोद्योग आयोग के राष्ट्रीय हनी मिशन का एक उप-मिशन है. हनी मिशन मधुमक्खियों की आबादी बढ़ाने के लिए लाया गया एक कार्यक्रम है. इसका उद्देश्य शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालन करने वालों की आमदनी को बढ़ाना है. वहीं, प्रोजेक्ट RE-HAB मधुमक्खी के बक्से को बाड़ के रूप में उपयोग करता है.
केवीआईसी ने चार स्थानों के बीच में मधुमक्खियों के 15-20 बक्से लगाए हैं. इन बक्सों को हाथियों के रास्तों पर लगाया गया है. इससे हाथियों को इनसानों की बस्तियों में प्रवेश करने से रोका जा सकेगा.
कई स्थानों पर हाथियों पर मधुमक्खियों के प्रभाव और इन क्षेत्रों में उनके व्यवहार को रिकॉर्ड करने के लिए हाई रिजोल्यूशन नाइट विजन कैमरे लगाए गए हैं.
केवीआईसी के अध्यक्ष सक्सेना ने कहा कि यह अनूठी पहल इनसान-हाथी संघर्षों के स्थायी समाधान के रूप में की गई है जो देश के कई हिस्सों में आम है.
सक्सेना ने कहा, वैज्ञानिकों ने पाया है कि हाथियों को मधुमक्खियों डर लगता है. हाथियों को डर होता है कि मधुमक्खी के झुंड सूंड और आंखों के उनके संवेदनशील अंदरूनी हिस्से को काट सकते हैं. मधुमक्खियां हाथियों को परेशान कर देता है और उन्हें वापस लौटने के लिए मजबूर कर देता है. हाथी, जो सबसे बुद्धिमान जानवरों में से एक हैं. उन्हें लंबे समय तक बातें/घटनाएं याद रहती हैं. इसलिए वह उस जगह पर लौटने से बचते हैं जहां उन्हें मधुमक्खियों का सामना करना पड़ा था.
प्रोजेक्ट RE-HAB का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह हाथियों को नुकसान पहुंचाए बिना, उन्हें भगा देता है. इसके अलावा यह अन्य उपायों की तुलना में किफायती है.
भारत में हाथी के हमलों के कारण हर साल लगभग 500 लोग मारे जाते हैं. यह देशभर में बड़ी बिल्लियों जेसे तेंदुए, गुलदार आदि की वजह से हुए घातक हमलों से लगभग 10 गुना अधिक है. 2015 से 2020 तक, हाथी हमलों में लगभग 2500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
इसमें से अकेले कर्नाटक में लगभग 170 लोगों की मौते हुई है. इसके विपरीत, इस संख्या का लगभग पांचवां हिस्सा, यानी पिछले 5 वर्षों में मनुष्यों द्वारा प्रतिशोध में लगभग 500 हाथियों की भी मौत हुई है.
अतीत में, सरकारों ने हाथियों को भगाने के लिए गहरे नाले खोदने और बाड़ लगाने के में करोड़ों रुपये खर्च किए हैं. साथ ही नुकसान के लिए मुआवजे पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. ये नाले और कांटेदार तार की बाड़ अक्सर हाथी के बच्चों की मौत का कारण बनती हैं. लिहाजा यह प्रयास बड़े पैमाने पर अव्यवहारिक साबित हुए हैं.
इससे पहले, केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान, पुणे, जो केवीआईसी की एक इकाई है, ने हाथी के हमलों को कम करने के लिए महाराष्ट्र में 'मधुमक्खी-बाड़' बनाने के क्षेत्र परीक्षण किए थे. हालांकि, यह पहली बार है, केवीआईसी ने इस परियोजना को समग्रता में लॉन्च किया है.
केवीआईसी ने परियोजना के प्रभाव मूल्यांकन के लिए कृषि और बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय, पोन्नमपेट के तहत कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री की मदद ली है. इस अवसर पर केवीआईसी के मुख्य सलाहकार (रणनीति और सतत विकास) डॉ. आर सुदर्शन और डॉ. सीजी कुशालप्पा, कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री के डीन, उपस्थित थे.
हाथियों के कारण इनसानों की मौत आकड़े
वर्ष | मृत्यु |
2014-15 | 418 |
2015-16 | 469 |
2016-17 | 516 |
2017-18 | 506 |
2018-19 | 452 |
योग | 2361 |
राज्यवार आकड़े (2014-15 to 2018-19)
राज्य | मृत्यु |
पश्चिम बंगाल | 403 |
ओडिशा | 397 |
झारखंड | 349 |
असम | 332 |
छत्तीसगढ़ | 289 |
कर्नाटक | 170 |