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घिसे पिटे या काल्पनिक आधार पर एहतियाती हिरासत कायम नहीं रह सकती : हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एहतियातन हिरासत का आदेश ऐसे घिसे-पिटे और काल्पनिक आधार पर कायम नहीं रह सकता, जिसका पहले हुई किसी पूर्वाग्रही गतिविधि से कोई वास्तविक संबंध नहीं हो. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर

दिल्ली हाईकोर्ट
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Published : Oct 1, 2021, 2:50 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court ) ने कहा कि एहतियातन हिरासत का आदेश ऐसे घिसे-पिटे और काल्पनिक आधार पर कायम नहीं रह सकता, जिसका पहले हुई किसी पूर्वाग्रही गतिविधि से कोई वास्तविक संबंध नहीं हो.

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदल (Justices Siddharth Mridul) और न्यायमूर्ति अनूप जे. भम्भानी (Anup J Bhambhami) की पीठ ने कहा कि चूंकि एहतियातन हिरासत महज संदेह पर आधारित कदम है, ऐसे में इसकी अनुमति सिर्फ तभी दी जा सकती है जब व्यक्ति की अतीत की गतिविधियों और उसे हिरासत में लेने की जरूरत के बीच कोई संबंध हो.

पीठ ने कहा कि एहतियातन हिरासत का आदेश घिसे-पिटे और काल्पनिक आधार पर कायम नहीं रह सकता है जिसका अतीत में की गई प्रतिकूल गतिविधियों के साथ कोई संबंध ना हो.

यह भी पढ़ें- किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा - आप शहर का गला घोंट रहे हैं

पीठ ने तस्करी निरोधी कानून के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ पारित एहतियातन हिरासत के आदेश को दरकिनार करते हुए उक्त टिप्पणी की.

वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता को जनवरी 2021 में इस आधार पर हिरासत आदेश जारी किए जाने के बाद विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974 के तहत एहतियातन हिरासत में रखा गया था कि वह कथित तौर पर धोखाधड़ी को प्रभावित करने में शामिल एक सिंडिकेट को नियंत्रित कर रहा था.

रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने देखा कि जनवरी में हिरासत का आदेश पारित किया गया था.

एहतियातन हिरासत का आदेश को पारित करने और निष्पादन में देरी न केवल ऐसे आदेश के उद्देश्य को पराजित करती है, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ इस तरह के कठोर उपाय को अपनाने की आवश्यकता के बारे में संदेह पैदा होता है, जिससे केवल संदेह पर ही व्यक्ति की स्वतंत्रता कम हो जाती है.इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को तुरंत हिरासत से रिहा आदेश दिया.

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court ) ने कहा कि एहतियातन हिरासत का आदेश ऐसे घिसे-पिटे और काल्पनिक आधार पर कायम नहीं रह सकता, जिसका पहले हुई किसी पूर्वाग्रही गतिविधि से कोई वास्तविक संबंध नहीं हो.

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदल (Justices Siddharth Mridul) और न्यायमूर्ति अनूप जे. भम्भानी (Anup J Bhambhami) की पीठ ने कहा कि चूंकि एहतियातन हिरासत महज संदेह पर आधारित कदम है, ऐसे में इसकी अनुमति सिर्फ तभी दी जा सकती है जब व्यक्ति की अतीत की गतिविधियों और उसे हिरासत में लेने की जरूरत के बीच कोई संबंध हो.

पीठ ने कहा कि एहतियातन हिरासत का आदेश घिसे-पिटे और काल्पनिक आधार पर कायम नहीं रह सकता है जिसका अतीत में की गई प्रतिकूल गतिविधियों के साथ कोई संबंध ना हो.

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पीठ ने तस्करी निरोधी कानून के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ पारित एहतियातन हिरासत के आदेश को दरकिनार करते हुए उक्त टिप्पणी की.

वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता को जनवरी 2021 में इस आधार पर हिरासत आदेश जारी किए जाने के बाद विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974 के तहत एहतियातन हिरासत में रखा गया था कि वह कथित तौर पर धोखाधड़ी को प्रभावित करने में शामिल एक सिंडिकेट को नियंत्रित कर रहा था.

रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने देखा कि जनवरी में हिरासत का आदेश पारित किया गया था.

एहतियातन हिरासत का आदेश को पारित करने और निष्पादन में देरी न केवल ऐसे आदेश के उद्देश्य को पराजित करती है, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ इस तरह के कठोर उपाय को अपनाने की आवश्यकता के बारे में संदेह पैदा होता है, जिससे केवल संदेह पर ही व्यक्ति की स्वतंत्रता कम हो जाती है.इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को तुरंत हिरासत से रिहा आदेश दिया.

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