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द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी ने विपक्षी एकता को किया 'तार-तार' - एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू

संसद के मॉनसून सत्र से ठीक पहले जहां एक तरफ विपक्ष संसद से लेकर सड़क तक मोदी सरकार के खिलाफ इकट्ठा हो रहा है, वहीं एक मुद्दा ऐसा है जहां विपक्ष की एकता खतरे में पड़ गई है. आखिर क्या है वह बात, आइए जानते हैं ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में.

draupadi murmu
द्रौपदी मुर्मू
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Published : Jul 15, 2022, 8:19 PM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रपति चुनाव के लिए द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी ने विपक्ष की एकता को खतरे में डाल दिया है. द्रौपदी मुर्मू को एनडीए की तरफ से उम्मीदवार बनाए बनाए जाने के बाद विपक्ष की कई ऐसी पार्टियां, जो कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में सरकार चला रही हैं, या फिर गाहे-बगाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक मंच पर आकर एनडीए को उखाड़ फेंकने की बात करती रहीं हैं, मजबूरी में ही सही द्रौपदी मुर्मू के नाम पर समर्थन को तैयार हैं.

वो पार्टियां जो एकसाथ मिल कर मोदी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़तीं, उनमें राष्ट्रपति चुनाव के नाम पर फूट साफ दिख रही है. विपक्ष के किले में ये सेंध बीजेपी ने लगाई है राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के नाम पर।. और यह बात कांग्रेस को काफी चुभ रही है. उसे यह डर है कि कही इस समर्थन के बहाने यह नज़दीकियां दूर तक न चली जाएं और एक साल बाद 2024 के चुनावों के लिए कोई नया गठबंधन ना खड़ा हो जाए.

सबसे पहले बात शिवसेना की और उसमें भी उद्धव ठाकरे के गुट की, जिसके साथ हुए राजनीतिक उथल-पुथल के बाद ऐसा लग रहा था कि वह इसका बदला राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग से लेगी. मगर ठीक इससे विपरीत उद्धव ठाकरे ने एक आदिवासी और महिला उम्मीदवार होने का बहाना लेते हुए द्रौपदी मुर्मू को समर्थन करने की बात कही. हालांकि महा विकास अघाड़ी में मौजूद पार्टियों की उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी. मगर अपने फैसले के पीछे उद्धव ने मुर्मू के महिला और आदिवासी होने का तर्क दिया.

झारखंड में सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा राज्य में कांग्रेस के साथ ही मिलकर सरकार तो चला रही है, मगर उनकी मजबूरी यह है कि यह राज्य आदिवासी बहुल इलाका है और झारखंड मुक्ति मोर्चा का जनाधार ही आदिवासियों पर टिका है. इसकी अवहेलना नहीं की जा सकती. वहीं दूसरी ओर द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल भी लंबे समय तक रही हैं और उनके रिश्ते वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी काफी अच्छे रहे हैं. ऐसे में, राष्ट्रपति चुनाव के बहाने झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बढ़ती प्रधानमंत्री के साथ नज़दीकियां भी कांग्रेस को काफी चुभ रही हैं. इसलिए जेएमएम का द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देना एक बड़ी मजबूरी है.

यही नहीं हाल ही में देवघर पहुंचे प्रधानमंत्री के भाषण और झारखंड के मुख्यमंत्री की तरफ से प्रधानमंत्री को धन्यवाद और सहयोग जैसे शब्दों के इस्तेमाल ने भी, ना सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव पर मुर्मू के समर्थन का संकेत दिया है, बल्कि राजनीतिक हलकों में इससे आगे भी कयास लगाए जाने लगे हैं. हालांकि राष्ट्रपति चुनाव के विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा भी झारखंड से ही चुनाव लड़ते रहे हैं, मगर जेएमएम का वोट बैंक आदिवासी बहुल है, इसीलिए मुर्मू को उन्हें समर्थन देना समझा जा सकता है.

आइए कर्नाटक की पार्टी जेडीएस की बात कर लेते हैं. 2018 में जब मुख्यमंत्री और जेडीएस के नेता कुमार स्वामी ने सत्ता संभाली थी तो शपथ ग्रहण समारोह में तमाम विपक्षी पार्टियों को बुलाकर विपक्षी एकता का दिखावा किया गया था. मगर जेडीएस ने राष्ट्रपति चुनाव की एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का पूरा मन बना लिया है. संकेत टीडीपी यानी तेलुगू देशम पार्टी ने भी दिए हैं कि द्रौपदी मुरमू को उनका समर्थन होगा. टीडीपी 2018 तक एनडीए के साथ ही थी.

सबसे बड़ी बात यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर मोर्चा बनाया था और सबसे पहले अगुवाई की थी, उन्होंने ही बयान दे दिया था कि अगर उन्हें पता होता कि द्रौपदी मुर्मू उम्मीदवार होंगी, तो वे इस पर विचार कर सकती थीं. ममता बनर्जी की मजबूरी यह है कि बंगाल के भी 5 से 6 निर्वाचन क्षेत्र आदिवासी बहुल इलाके हैं और वह आदिवासियों को नाराज नहीं करना चाहतीं.

यानी राष्ट्रपति चुनाव के लिए द्रौपदी मुर्मू के नाम पर कुछ पार्टियों की मजबूरियां दिखने लगी हैं तो भविष्य के भी कुछ सांकेतिक स्वर सुनाई देने लगे है. ज़ाहिर है मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की मुसीबत बढ़ रही है. इस मुद्दे पर शिवसेना के सांसद अरविंद सावंत से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने कहा- 'शिवसेना, जैसा कि उनके नेता उद्धव ठाकरे ने कहा छोटी सोच नहीं रखती और जब बात देश हित की होती है तो वह बड़े फैसले लेती है और यही वजह है कि उद्धव ठाकरे ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की बात कही है. एक तो वह महिला उम्मीदवार हैं और दूसरी तरफ वह आदिवासी उम्मीदवार भी हैं जो एक बड़े समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं. वह विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ कर आई हैं और उन्होंने एक मुकाम हासिल किया है. ऐसे उम्मीदवार को समर्थन देना हमारा फर्ज बनता है.'

ये भी पढ़ें : Population Control : भागवत के बयान पर कांग्रेस 'लाल', राकेश सिन्हा ने कांग्रेस को 'इतिहास' की याद दिलाई

नई दिल्ली : राष्ट्रपति चुनाव के लिए द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी ने विपक्ष की एकता को खतरे में डाल दिया है. द्रौपदी मुर्मू को एनडीए की तरफ से उम्मीदवार बनाए बनाए जाने के बाद विपक्ष की कई ऐसी पार्टियां, जो कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में सरकार चला रही हैं, या फिर गाहे-बगाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक मंच पर आकर एनडीए को उखाड़ फेंकने की बात करती रहीं हैं, मजबूरी में ही सही द्रौपदी मुर्मू के नाम पर समर्थन को तैयार हैं.

वो पार्टियां जो एकसाथ मिल कर मोदी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़तीं, उनमें राष्ट्रपति चुनाव के नाम पर फूट साफ दिख रही है. विपक्ष के किले में ये सेंध बीजेपी ने लगाई है राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के नाम पर।. और यह बात कांग्रेस को काफी चुभ रही है. उसे यह डर है कि कही इस समर्थन के बहाने यह नज़दीकियां दूर तक न चली जाएं और एक साल बाद 2024 के चुनावों के लिए कोई नया गठबंधन ना खड़ा हो जाए.

सबसे पहले बात शिवसेना की और उसमें भी उद्धव ठाकरे के गुट की, जिसके साथ हुए राजनीतिक उथल-पुथल के बाद ऐसा लग रहा था कि वह इसका बदला राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग से लेगी. मगर ठीक इससे विपरीत उद्धव ठाकरे ने एक आदिवासी और महिला उम्मीदवार होने का बहाना लेते हुए द्रौपदी मुर्मू को समर्थन करने की बात कही. हालांकि महा विकास अघाड़ी में मौजूद पार्टियों की उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी. मगर अपने फैसले के पीछे उद्धव ने मुर्मू के महिला और आदिवासी होने का तर्क दिया.

झारखंड में सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा राज्य में कांग्रेस के साथ ही मिलकर सरकार तो चला रही है, मगर उनकी मजबूरी यह है कि यह राज्य आदिवासी बहुल इलाका है और झारखंड मुक्ति मोर्चा का जनाधार ही आदिवासियों पर टिका है. इसकी अवहेलना नहीं की जा सकती. वहीं दूसरी ओर द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल भी लंबे समय तक रही हैं और उनके रिश्ते वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी काफी अच्छे रहे हैं. ऐसे में, राष्ट्रपति चुनाव के बहाने झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बढ़ती प्रधानमंत्री के साथ नज़दीकियां भी कांग्रेस को काफी चुभ रही हैं. इसलिए जेएमएम का द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देना एक बड़ी मजबूरी है.

यही नहीं हाल ही में देवघर पहुंचे प्रधानमंत्री के भाषण और झारखंड के मुख्यमंत्री की तरफ से प्रधानमंत्री को धन्यवाद और सहयोग जैसे शब्दों के इस्तेमाल ने भी, ना सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव पर मुर्मू के समर्थन का संकेत दिया है, बल्कि राजनीतिक हलकों में इससे आगे भी कयास लगाए जाने लगे हैं. हालांकि राष्ट्रपति चुनाव के विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा भी झारखंड से ही चुनाव लड़ते रहे हैं, मगर जेएमएम का वोट बैंक आदिवासी बहुल है, इसीलिए मुर्मू को उन्हें समर्थन देना समझा जा सकता है.

आइए कर्नाटक की पार्टी जेडीएस की बात कर लेते हैं. 2018 में जब मुख्यमंत्री और जेडीएस के नेता कुमार स्वामी ने सत्ता संभाली थी तो शपथ ग्रहण समारोह में तमाम विपक्षी पार्टियों को बुलाकर विपक्षी एकता का दिखावा किया गया था. मगर जेडीएस ने राष्ट्रपति चुनाव की एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का पूरा मन बना लिया है. संकेत टीडीपी यानी तेलुगू देशम पार्टी ने भी दिए हैं कि द्रौपदी मुरमू को उनका समर्थन होगा. टीडीपी 2018 तक एनडीए के साथ ही थी.

सबसे बड़ी बात यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर मोर्चा बनाया था और सबसे पहले अगुवाई की थी, उन्होंने ही बयान दे दिया था कि अगर उन्हें पता होता कि द्रौपदी मुर्मू उम्मीदवार होंगी, तो वे इस पर विचार कर सकती थीं. ममता बनर्जी की मजबूरी यह है कि बंगाल के भी 5 से 6 निर्वाचन क्षेत्र आदिवासी बहुल इलाके हैं और वह आदिवासियों को नाराज नहीं करना चाहतीं.

यानी राष्ट्रपति चुनाव के लिए द्रौपदी मुर्मू के नाम पर कुछ पार्टियों की मजबूरियां दिखने लगी हैं तो भविष्य के भी कुछ सांकेतिक स्वर सुनाई देने लगे है. ज़ाहिर है मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की मुसीबत बढ़ रही है. इस मुद्दे पर शिवसेना के सांसद अरविंद सावंत से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने कहा- 'शिवसेना, जैसा कि उनके नेता उद्धव ठाकरे ने कहा छोटी सोच नहीं रखती और जब बात देश हित की होती है तो वह बड़े फैसले लेती है और यही वजह है कि उद्धव ठाकरे ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की बात कही है. एक तो वह महिला उम्मीदवार हैं और दूसरी तरफ वह आदिवासी उम्मीदवार भी हैं जो एक बड़े समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं. वह विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ कर आई हैं और उन्होंने एक मुकाम हासिल किया है. ऐसे उम्मीदवार को समर्थन देना हमारा फर्ज बनता है.'

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