नई दिल्ली: साल 2024 में लोकसभा का चुनाव होना है. ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से चुनावी बिसात बिछाने लगे हैं. विरोधियों के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी है. कुछ विपक्षी दल सीधे तौर पर तो कुछ अपने सहयोगी संगठनों के माध्यम से केंद्र सरकार के विरोध में आंदोलन चला रहे हैं. इस दौरान धरना प्रदर्शन से लेकर ऑनलाइन कैंपेन तक का सहारा लिया जा रहा है. किसानों और मजदूरों के नाम पर भी आंदोलन जारी हैं. दिल्ली का रामलीला मैदान उसका प्रत्यक्ष गवाह रहा है.
रामलीला मैदान में 1 माह में दूसरी किसान रैली: रामलीला मैदान में एक महीने के भीतर दूसरी किसान रैली आयोजित की है. 20 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से महापंचायत आयोजित किया गया था. महापंचायत से पहले दावा किया गया था कि इसमें देश भर से 50,000 से अधिक किसान आएंगे, लेकिन रैला में मुश्किल से छह से सात हजार किसान ही पहुंचे थे. तब संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा था कि बारिश के कारण किसानों की फसल बर्बाद हो जाने से किसान परेशान थे, इसीलिए बहुत से किसान दिल्ली आ ही नहीं पाए हैं.
किसान महापंचायत में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी, खेतिहर मजदूरों और महिला मजदूरों संबंधी कई मांगों को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गई थी. इस दौरान आरोप लगाया गया था कि केंद्र सरकार किसानों के बजाय कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए काम कर रही है. कुल मिलाकर महापंचायत में केंद्र सरकार और मोदी पर निशाना साधा गया था. महापंचायत में दावा किया गया था कि पूरे देश के किसान आएंगे, लेकिन ज्यादातर किसान पंजाब से थे.
रैली में केरल और कर्नाटक से पहुंचे किसान: अपनी मांगों को लेकर बुधावर को किसान रामलीला मैदान में जुटे हैं. किसानों ने एमएसपी पर गारंटी, पेंशन की मांग, निजीकरण और ठेकेदारी प्रथा का विरोध और सेना में अग्निपथ योजना के विरोध का अपना मुद्दा दोहराते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा. आंदोलनकारियों ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वह भाजपा को निश्चित तौर पर हराएंगे. इसके लिए वह किसानों में एकजुटता लाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. मजदूर किसान संघर्ष समिति की ओर से यह रैली आयोजित की गई है. रैली में पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, बिहार, राजस्थान आदि राज्यों से किसान आए हैं.
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1 साल तक चला था किसान आंदोलन: नए कृषि कानूनों के विरोध में इससे पहले एक साल तक किसान आंदोलन चला था. पूरे भारत में कृषि संगठनों ने 25 सितंबर 2020 को भारत बंद का आह्वान किया था. सबसे व्यापक विरोध प्रदर्शन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए थे. कर्नाटक, तमिलनाडु, उड़ीसा, केरल और अन्य राज्यों के हिस्सों में भी प्रदर्शन हुए थे. एक साल बाद 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्र तीनों विवादित कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की थी. इसके बाद वह आंदोलन स्थगित हो गया था.
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