देहरादून: ये क्या हो गया... मैं तो अपनी मां की कोख में नौ महीने बड़े प्यार से पला बढ़ा...मां मेरी हर हरकत से खुश होती थी. पापा भी मां के पेट से मेरे किक को महसूस करते थे. मैं उस दिन का इंतजार करता था, जब मैं दुनिया में कदम रखूं. आज वो दिन भी आ गया.. लेकिन ये क्या, ये कैसी बदबू है? ये मुझे कौन नोंच रहा है? मेरे शरीर पर ये क्या चुभ रहा है? दुनिया में पहला कदम रखते ही जिसके लिए कफन का कपड़ा तैयार किया जाने लगे, जो मां खुद अपने लाडले को सड़क किनारे, कूड़ेदान या फिर कंटीली झाड़ियों में जानवरों के सामने छोड़ दे, उस मां से बड़ा अभागा दूसरा कोई नहीं हो सकता.
लेकिन कहते हैं न, जिंदगी लेने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है. इन सबके घटनाओं के बीच नवजात बच्चों के दर्द को कम करने के लिए कुछ लोग फरिश्ता बनकर सामने आते हैं. समाज में आज भी ऐसे कई फरिश्ते हैं, जो लावारिस नवजात बच्चों की परवरिश का जिम्मा लेकर उन्हें नई जिंदगी दे रहे हैं.
नवजात बच्चों के सुनसान जगहों पर मिलने की घटनाएं अक्सर सुनी-देखी जाती रही हैं. ऐसी घटनाओं में कई बच्चे अपनी जान गंवा देते हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें किसी फरिश्ते का सहारा मिल जाता है और वो अपनी नई जिंदगी की तरफ बढ़ जाते हैं.
उत्तराखंड में भी अक्सर कूड़ेदान या झाड़ियों में नवजात शिशुओं के मिलने की खबरें आती रहती हैं. स्थानीय लोगों की मदद से कई बच्चों को बचाया जाता है लेकिन कुछ काल के गाल में समा जाते हैं. आजतक जिन बच्चों को बचाने में कामयाबी मिली, उनमें से कई बच्चे एक अच्छी जिंदगी भी जी रहे हैं. दरअसल, सरकार की तरफ से ऐसे बच्चों के लिए गोद लेने की व्यवस्थाएं बनाई गई हैं ताकि इन बच्चों को फिर एक परिवार मिल सके और मां-बाप का प्यार भी.
उत्तराखंड में अनाथ बच्चों के आंकड़े-
- साल 2016 से लेकर अबतक कुल 73 बच्चों को गोद दिया गया है.
- देहरादून में राजकीय शिशु सदन, बाल वनिता आश्रम और इंदिरा राष्ट्रीय चेतना संस्थान बच्चों की देखभाल कर रहा है.
- देहरादून में स्थित इन तीनों संस्थानों के कुल 46 बच्चों को गोद दिया गया है.
- इसमें 36 बच्चे भारत के ही विभिन्न जिलों में रहने वाले लोगों द्वारा गोद लिए गए हैं, जबकि 10 बच्चों को विदेशों में रहने वाले लोगों ने गोद लिया है.
- अल्मोड़ा के राजकीय शिशु सदन से कुल 20 बच्चे को दिए गए हैं. इनमें से 17 बच्चे भारत के ही विभिन्न जिलों के लोगों द्वारा गोद लिए गए हैं. जबकि तीन बच्चे विदेश में रहने वाले लोगों ने गोद लिए हैं.
- हरिद्वार के अनाथ शिशु पालन ट्रस्ट से 7 बच्चों को गोद दिया गया है. यह सभी साथ बच्चे भारत में ही गोद दिए गए.
ये भी पढ़ें: बच्चों के टीकाकरण में कोरोना संक्रमण बना रुकावट, 42% बच्चे वैक्सीन से वंचित
बच्चों को फेंकने वालों पर नहीं होती कार्रवाई
प्रदेश में लगातार लावारिस हालात में नवजात शिशु के मिलने खबरें आती रहती हैं लेकिन इन सबके बीच दोषी माता-पिता पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे माता-पिता का सुराग लगाना काफी मुश्किल हो जाता है और अपराध करने वाले ऐसे लोगों की जानकारी न मिलने के कारण दोषी कानून के शिकंजे से बच जाते हैं.
उत्तराखंड सरकार चला रही योजनाएं
प्रदेश में नवजात शिशु के लावारिस मिलने पर राज्य सरकार गंभीर है. सरकार द्वारा शुरू की गई पालना योजना के तहत लोगों से भी निवेदन किया जाता है कि-
- यदि वे मजबूरी में बच्चों को नहीं अपना सकते तो शिशु सदन या अलग-अलग स्थानों पर लगाए गये 'पालने' में बच्चे को सकुशल रखें ताकि बच्चे को कोई हानि न हो.
- ऐसे बच्चों के लिए सरकार ने सरकारी नौकरियों में भी 5% आरक्षण की बात की है.
- मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए भी 2% के आरक्षण की व्यवस्था की गई है.
- तमाम दूसरी अस्थायी नौकरियों में भी बालिग अनाथ नौजवानों को रोजगार दे रही है.
- बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी कहती हैं कि इसमें सबसे बड़ा योगदान समाज का है. समाज को इसके लिए जागरुक होना होगा. साथ ही नर्सिंग होम और तमाम अस्पतालों के डॉक्टर को भी इसके लिए सजग रहना होगा.
भारत में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया
उत्तराखंड में हर साल तकरीबन आठ से 10 बच्चे लावारिस हालत में मिलते हैं लेकिन अच्छी बात यह है कि ऐसे अनाथ बच्चों को गोद लेने वालों की संख्या बेहद ज्यादा है. हालांकि, बच्चों को गोद देने से पहले एजेंसियां और सरकार यह पुख्ता जरूर करती है कि बच्चा सही लोगों के हाथों में जाए. सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी को CARA नाम से जाना जाता है. यह संस्था नोडल बॉडी की तरह काम करती है. CARA मुख्य रूप से अनाथ, छोड़ दिए गए बच्चों के अडॉप्शन के लिए काम करती है.
गोद देने से पहले ये बातें रखी जाती हैं ध्यान-
- संभावित मां-बाप को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से सक्षम होना जरूरी है. यह बात प्रमाणित होनी चाहिए कि संभावित अभिभावकों को कोई जानलेवा बीमारी न हो.
- कोई भी संभावित माता-पिता जिनकी अपनी कोई जैविक संतान हो या न हो, वो बच्चा गोद ले सकते हैं. यदि संभावित अभिभावक शादीशुदा हैं तो उन दोनों की आपसी सहमति होना जरूरी है.
- संभावित मां-बाप अगर दो साल से ज्यादा वक्त से शादीशुदा हों, तभी वो बच्चा गोद ले सकते हैं.
- एक सिंगल महिला किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती है. जबकि एक सिंगल पुरुष सिर्फ लड़के को ही गोद ले सकता है.
- बच्चा गोद लेने के लिए मां-बाप की उम्र भी बेहद अहम है. ऐसे में कम उम्र के बच्चे को गोद लेने के लिए मां-बाप की औसत उम्र कम होनी चाहिए.
- संभावित माता-पिता और गोद लिए जाने वाले बच्चे के बीच उम्र का अंतर कम से कम 25 साल होना ही चाहिए.
- यह नियम उस समय लागू नहीं होता है, जब गोद लेने वाले संभावित माता-पिता रिश्तेदार हों या फिर सौतेले हों.
- जिन लोगों के पहले से ही तीन या इससे अधिक बच्चे हैं, वो लोग बच्चा गोद लेने के लिए योग्य नहीं हैं. लेकिन विशेष स्थिति में ही वो बच्चा गोद ले सकते हैं.
ये भी पढ़ें: हरिद्वार की 'किलर' सड़कें, कर रहीं कोख सूनी!
10 कागजात का होना जरूरी-
- बच्चे को गोद लेने के इच्छुक परिवार की मौजूदा तस्वीर या फिर उस दंपति और शख्स की मौजूदा तस्वीर.
- जो शख्स बच्चे को गोद लेना चाह रहा है, उसका पैन कार्ड.
- जन्म प्रमाणपत्र या कोई भी ऐसा डॉक्यूमेंट, जिससे उस शख्स की जन्मतिथि प्रमाणित हो.
- निवास प्रमाण पत्र (आधार कार्ड/ वोटर आईडी/ पासपोर्ट/ नवीनतम बिजली का बिल/ टेलीफोन बिल).
- उस साल के इनकम टैक्स की प्रामाणिक कॉपी.
- किसी सरकारी चिकित्सा अधिकारी का हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र, जिससे इस बात की पुष्टि होती हो कि जो शख्स बच्चे को गोद लेने जा रहा है उसे किसी तरह की कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है.
- गोद लेने के इच्छुक दंपति को अपने-अपने मेडिकल सर्टिफिकेट जमा कराने होंगे.
- शादी का प्रमाण पत्र (अगर शादीशुदा हैं तो).
- अगर शख्स तलाकशुदा है तो उसका प्रमाणपत्र.
- गोद लेने के पक्ष में इच्छुक व्यक्ति से जुड़े दो लोगों का बयान.
- अगर इच्छुक व्यक्ति का कोई बच्चा पहले से ही है और उसकी उम्र पांच साल से अधिक है तो उसकी सहमति.