रायपुर: छत्तीसगढ़ में भाजपा के नेतृत्व वाली डॉ रमन सरकार ने साल 2012 में आरक्षण को बढ़ाकर 58 परसेंट किया. हाईकोर्ट के 58 फीसदी आरक्षण को अवैधानिक करार देने के बाद कांग्रेस सरकार आरक्षण संशोधन विधेयक ले आई, जिसमें आरक्षण को बढ़ाकर 76 फीसदी कर दिया गया. ये बिल राज्यपाल के पास मंजूर होने के लिए गया है. अब तक इस पर राज्यपाल ने कोई फैसला नहीं लिया है. इस बीच राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 58 फीसदी आरक्षण वाले फैसले पर रोक लगा दी है. यानी छत्तीसगढ़ में अब फिर से भर्तियां हो सकती हैं. चुनावी साल में मिली इस राहत को भाजपा भुनाने की कोशिश में है तो कांग्रेस भी पीछे नहीं है.
बीजेपी की रणनीति: छत्तीसगढ़ भाजपा चुनावी साल में खुद के शासनकाल में दिए 58 फीसदी आरक्षण के मुद्दे को भुनाने के मूड में है. भाजपा कांग्रेस पर लगातार अटैक कर रही है. पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल की दलील है कि बीजेपी के 58 फीसदी आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने अप्रूव किया है. यह बताने के लिए काफी है कि बीजेपी ने सही काम किया. पूर्व मंत्री विक्रम उसेंडी कहते हैं कि भूपेश सरकार ने कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती के साथ नहीं रखा. वर्ना सितंबर 2022 में वही फैसला आता, जो सुप्रीम कोर्ट ने दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने भी कहा है कि ''सर्वोच्च न्यायालय ने भाजपा के जनसंख्या के आधार पर 58 प्रतिशत आरक्षण के पक्ष में मुहर लगाया है. कांग्रेस को इससे सीख लेनी चाहिए.''
कांग्रेस का भाजपा पर अटैक: चुनावी साल में आरक्षण के मुद्दे को लेकर कांग्रेस भी पीछे नहीं रहना चाहती है. कांग्रेस भाजपा की सभी दलीलों और आरोपों पर लगातार काउंटर अटैक कर रही है. खुद सूबे के मुखिया ने चुनावी साल में इस मुद्दे पर मोर्चा संभाल लिया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा "सुप्रीम कोर्ट में हमने सही तथ्य रखा. न्यायालय ने उसको स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए निर्णय दिया. अब भाजपा वाले क्यों पीठ थपथपा रहे हैं. रमन सिंह अपनी नाकामी छिपा रहे हैं."
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किस पार्टी को मिलेगा सियासी लाभ: राजनीति के जानकार शशांक शर्मा का मानना है आरक्षण और भर्ती का किस पार्टी को लाभ मिलेगा, इसका फैसला खुद जनता करेगी. साढ़े चार साल तक प्रदेश में भर्तियां नहीं हुई. कई नौजवानों के सपने अधूरे रह गए. अब जब चुनाव सिर पर है तो पुराने फॉर्मूले पर भर्तियां होंगी. ऐसे में दोनों ही दलों में से जो अपनी बात जनता के बीच सही तरीके से पेश करेगा, उसे लाभ मिलेगा.