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सम्राट अशोक की जाति पर घमासान, राजनैतिक दलों के तर्क को इतिहासकारों ने नकारा

क्या है सम्राट अशोक की जाति? ये सवाल इसलिए, क्योंकि सियासी दलों की ओर से उनके कुशवाहा जाति से होने का दावा किया जा रहा है. हालांकि इतिहासकारों की राय अलग है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों बीजेपी और जेडीयू के नेता जाति और जन्मतिथि पर बिना किसी प्रमाण के दावा कर रहे हैं. क्या बिहार में ओबीसी वोट बैंक (Politics for OBC vote bank) को लुभाने के लिए ये दांव खेला जा रहा है. पढ़ें खास रिपोर्ट.

Birth anniversary
सम्राट अशोक की जयंती
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Published : Apr 9, 2022, 9:59 PM IST

पटना: सम्राट अशोक की जयंती (Emperor Ashoka Birth Anniversary) के बहाने एनडीए में क्रेडिट लेने की होड़ मची है. बीजेपी ने जहां आठ अप्रैल को कार्यक्रम आयोजित किया, वहीं जेडीयू ने नौ अप्रैल को समारोह का आयोजन किया. दरअसल, करीब आठ साल पहले जब बिहार में बीजेपी नेता सूरजनंदन कुशवाहा ने मौर्य वंश के सम्राट अशोक के नाम पर यात्रा निकाली, तब शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि एक दिन उनका यह कदम बिहार की राजनीति में नया मोड़ लाएगा.

उसके बाद से ही राजनीतिक दलों ने न केवल सम्राट अशोक की जाति (Emperor Ashoka Caste) का पता लगाया, बल्कि उनकी जन्म तिथि भी पता कर डाली. राजनीतिक दलों को अशोक के नाम पर एक बड़ा ओबीसी वोट बैंक दिख रहा है. हालांकि सियासी दलों की ओर से सम्राट अशोक की जाति को लेकर जारी दावों से इतिहासकार इत्तेफाक नहीं रखते हैं.

बीजेपी ने बताई अशोक की जाति: सम्राट अशोक की जाति पर बिहार की सियासत में पहला दावा साल 2014 में बीजेपी नेता सूरजनंदन कुशवाहा ने किया था. उन्होंने सम्राट अशोक को कोईरी जाति (कुशवाहा) का बताकर 2330वीं जयंती आयोजित की थी. रविशंकर प्रसाद समेत बीजेपी के बड़े नेता उस कार्यक्रम में मौजूद थे. रविशंकर प्रसाद ने सम्राट अशोक की उस तस्वीर के साथ डाक टिकट जारी कर दिया. एक टिकट तो 2017 में पटना के जनरल पोस्ट ऑफिस में जारी किया गया. उसके बाद से अशोक को इसी जाति से जोड़कर देखा जाता है.

देखें वीडियो

नीतीश ने बताई अशोक की जन्मतिथि: उधर नीतीश कुमार बीजेपी से नाता तोड़ लालू के साथ गलबहियां करने लगे और लव-कुश के चक्कर में सम्राट अशोक पर उनकी पार्टी ने भी दावेदारी कर दी. नतीजा ये निकला कि सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार ने 14 अप्रैल को अशोक जयंती घोषित करते हुए राजकीय छुट्टी घोषित कर दी. मतलब तब नीतीश कुमार ने सम्राट अशोक का बर्थ डे खोज लिया. हालांकि बाद के वर्षों में अशोक जयंती पर बहुत शोर नहीं सुनाई पड़ा लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से सम्राट अशोक की तुलना मुगल शासक औरंगजेब से करने का विवादित बयान सामने आया, बिहार में जातियों के सम्मान का बखेड़ा खड़ा हो गया.

सम्मान की लड़ाई या कुछ और माजरा: वैसे सम्राट अशोक की जन्म तिथि का कोई साक्ष्य नहीं है. इतिहासकार बताते हैं कि उनका जन्म 304 ईसा पूर्व यानी करीब 2300 साल पहले हुआ था लेकिन बिहार के कई नेता सम्राट अशोक की जाति तय कर चुके हैं. ऐसे में इतिहासकार, इतिहास के साथ होते इस छेड़छाड़ पर अपनी विवशता जाहिर करने को मजबूर हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या नेता सच में सम्राट अशोक के सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं या माजरा कुछ और ही है.

सम्राट अशोक की औरंगजेब से तुलना: पद्मश्री से सम्मानित लेखक दया प्रकाश सिन्हा (Daya Prakash Sinha) ने सम्राट अशोक पर विवादित बयान देते हुए उनकी तुलना क्रूर औरंगजेब से कर दी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दया प्रकाश सिन्हा ने कहा था कि सम्राट अशोक क्रूर, कामुक और बदसूरत थे. उन्होंने अशोक को भाई का हत्यारा बताकर उनकी तुलना क्रूर औरंगजेब से कर दी. उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक बेहद बदसूरत और कामुक थे. देश के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में सम्राट अशोक के उजले पक्ष को ही शामिल किया गया है, जबकि उनकी असलियत इससे अलग थी. श्रीलंका के तीन बौद्ध ग्रंथों का उन्होंने हवाला देकर ये बयान दिया था.

जोडीयू-बीजेपी आमने-सामने: दया प्रकाश के बयान के बाद जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने विरोध जताते हुए उनसे पद्मश्री वापस लेने की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि यह अमर्यादित टिप्पणी है. पूरे देश में इसको लेकर आक्रोश है. यदि पार्टी कार्रवाई नहीं करती है तो उन्हें भी नुकसान उठाना पड़ सकता है. जिस प्रकार से सम्राट अशोक की औरंगजेब से अभद्र ढंग से तुलना की गई है, ऐसे व्यक्ति से पुरस्कार भी वापस ले लेना चाहिए. हालांकि जैसे ही सम्राट अशोक की औरंगजेब से तुलना करने वाले दया प्रकाश सिन्हा के ताल्लुक बीजेपी से होने की बात सामने आई, संजय जायसवाल से लेकर सुशील मोदी तक सामने आ गए. दावा किया कि लेखक से पार्टी का कोई संबंध नहीं है. संजय जायसवाल ने तो दया प्रकाश के खिलाफ पटना के कोतवाली थाने में मामला भी दर्ज करवा दिया.

इतिहासकार रोमिला थापर ने क्या कहा: सम्राट अशोक की जाति पर भले ही बीजेपी और जेडीयू की ओर से दावे किए जा रहे हों लेकिन इतिहासकार इससे बिल्कुल भी सहमत नहीं दिखते. प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर, जिन्होंने सम्राट अशोक पर विस्तार से अध्ययन कर एक किताब लिखी है. उनका कहना है कि अशोक की जाति का कहीं से कोई पता नहीं चलता. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि अगर किसी के पास अशोक की जन्‍मतिथि के सबूत हैं तो उसे सामने रखना चाहिए. मेरे पास कोई सबूत नहीं है. मुझे नहीं पता कि बिहार सरकार इस निष्‍कर्ष पर कैसे पहुंची कि अशोक का जन्‍म 14 अप्रैल को हुआ था. जब तक सबूत न हों, इतिहासिक तथ्‍यों को लेकर कोई भी दावा नहीं किया जा सकता.

अशोक की जाति पर इतिहासकारों की राय: वहीं, पटना के ही एक इतिहासकार कहते है कि अशोक के पूर्वज चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म एक शूद्र दासी की कोख से हुआ था, इसलिए उनके कुशवाहा होने का तो सवाल नहीं. पूर्व आईपीएस और इतिहास से जुड़ी कई किताबें लिख चुके किशोर कुणाल भी कह चुके हैं कि सरकार ने 14 अप्रैल की तारीख क्‍यों तय की, मैं भी यह जानने के लिए उत्‍सुक हूं. मैं उन स्रोतों के बारे में जानना चाहता हूं, जिसके आधार पर बिहार सरकार ने यह फैसला लिया. मैंने अपनी किताब इतिहास के दर्पण में दलित को लिखते हुए मौर्य साम्राज्‍य से जुड़े सभी अहम स्रोतों का जिक्र किया है, लेकिन मुझे अशोक के जन्‍म की सही सही तिथि के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उनका कहना है कि जहां बौद्ध साहित्‍य में मौर्य वंश के लोगों को क्षत्रिय बताया जाता है, वहीं संस्‍कृत और सनातनी साहित्‍य में उनके छोटे जाति से होने की ओर संकेत दिया जाता है.

"सम्राट अशोक की जाति को लेकर इतिहास में कोई साक्ष्य नहीं है और जब सम्राट अशोक का शासन हुआ करता था, तब जाति व्यवस्था नहीं थी. कर्म के आधार पर वर्ण का बंटवारा होता था. सम्राट अशोक को राजनीतिज्ञों द्वारा कुशवाहा कहा जाना अनुचित है"- सीपी सिन्हा, इतिहासकार

"सम्राट अशोक किस जाति के थे, इसे लेकर ना तो कोई साहित्यिक साक्ष्य मौजूद है और ना ही कोई पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध है. सम्राट अशोक कुशवाहा जाति से हैं, यह कहना भी अंधेरे में तीर चलाने जैसा है"- डॉ. शंकर सुमन, सहायक निदेशक, बिहार म्यूजियम

कुशवाहा जाति से अशोक का संबंध: हालांकि इतिहासकारों के दावों और तथ्यों से इतर पटना में इतिहास पढ़ाने वाले बीजेपी नेता सूरज नंदन प्रसाद कुशवाहा जैसे बौद्धिक चिंतक यह कहकर एक ही वाक्य में रोमिला थापर से लेकर आरएस शर्मा जैसे इतिहासकारों के अध्ययन को खारिज करते हुए कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी के पास ठोस सबूत है कि सम्राट अशोक कुशवाहा जाति से ही ताल्लुक रखते थे.

सियासी चूल्हे पर सम्राट अशोक: अब सवाल उठता है कि सम्राट अशोक पर तो कुशवाहा समाज पहले से दावेदारी करता ही रहा है. समाज उनके नाम पर आयोजन भी करता-कराता रहता था तो अचानक बीजेपी को खुलकर जाति के इस खेल में आने की जरूरत क्यों पड़ गई? दरअसल बिहार में वर्षों से लव-कुश समीकरण चल रहा है. यह दो जातियों कोईरी और कुर्मी के मेल-मिलाप वाला समीकरण है. इसके चैंपियन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार माने जाते रहे हैं. बीजेपी की नजर इसी वोट बैंक पर है. खासकर कोईरी यानी कुशवाहा समाज को बीजेपी अपने साथ लाना चाहती है.

बीजेपी का क्या कहना है: पटना के बापू सभागार में आयोजित कार्यक्रम में बीजेपी सांसद और नीतीश के पुराने सहयोगी सुशील कुमार मोदी ने कहा कि कुशवाहा समाज बीजेपी के साथ जुड़ रहा है. लव-कुश भगवान राम की संतान रहे हैं और राम को लेकर सबसे ज्यादा आस्था किसने दिखाई, ये बात उत्तर प्रदेश में साबित हो चुकी है. उन्होंने मंच से एलान किया कि अगले साल गांधी मैदान में सम्राट अशोक की जयंती मनाई जानी चाहिए.

जेडीयू का क्या कहना है: वहीं, जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी की ओर से अशोक जयंती माने पर तंज कसते हुए कहा कि सम्राट अशोक का झंडा लेकर जयंती मनाने से विकास नहीं होगा, बल्कि सम्राट अशोक के विचारों को मानने से होगा. उन्होंने कहा कि जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सम्राट अशोक जयंती पर बिहार में अवकाश की घोषणा की थी, उस समय बिहार में बीजेपी के साथ की गठबंधन की सरकार नहीं थीं. उस समय बिहार में जेडीयू का किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन की सरकार थी. उन्होंने सवाल पूछा कि सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से करने वाले लेखक दया प्रकाश सिन्हा से क्यों नहीं अबतक पद्म श्री पुरस्कार वापस लेकर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया.

नीतीश ने क्या कहा: मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने सम्राट अशोक कन्‍वेंशन हॉल पहुंचकर महान शासक की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर उन्‍हें याद किया. इस मौके पर उन्होंने कहा 'सम्राट अशोक की जन्‍मतिथि को लेकर काफी विवाद था. मैंने विशेषज्ञों को बुलाकर पूछा कि सम्राट अशोक की जयंती कब मनाई जानी चाहिए? इसके बाद सम्राट अशोक की जन्‍मतिथि अष्‍टमी के दिन तय की गई. ऐसे में सभी को इसी दिन सम्राट अशोक की जयंती मनानी चाहिए. हमने आज के दिन के लिए एक दिन का राजकीय अवकाश भी घोषित किया है, लिहाजा जयंती समारोह इसी दिन मनाया जाना चाहिए.'

मांझी ने क्या कहा: बीजेपी और जेडीयू की लड़ाई में जीतनराम मांझी भी कूद चुके हैं. मांझी ने सम्राट अशोक को पिछड़ी जाति से जुड़ा बताया है. पिछली बार जब सम्राट अशोक पर बिहार में सियासी संग्राम छिड़ा था, तब उन्होंने ट्वीट कर लिखा था, 'कुछ लोग सम्राट अशोक का अपमान सिर्फ इसलिए कर रहें है कि वह पिछड़ी जाति से थे. ऐसे सामंती लोग नहीं चाहते हैं कि कोई दलित/आदिवासी/पिछड़ा का बच्चा सत्ता के शीर्ष पर बैठे. मा. राष्ट्रपति से आग्रह है कि हमारे शौर्य के प्रतीक सम्राट अशोक पर टिप्पणी करने वालों का पद्म सम्मान वापिस लें.'

अशोक की जाति से सियासी लाभ: बिहार की सियासत वर्षों से ऐसे ही समीकरणों से चलती रही है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि जल्द ही अशोक कुशवाहा समाज के एक बड़े हिस्से के नायक हो जाएंगे और बीजेपी ऐसा कर इस चुनाव में कुछ न कुछ तो फायदा उठा ही लेगी लेकिन इतिहास का क्या कबाड़ा होगा और आगे का इतिहास कैसा बनेगा, इसकी चिंता फिलहाल किसी को नहीं है. राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि सम्राट अशोक जैसे महान शासक को जाति के दायरे में लाकर खड़ा करना उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने जैसा है, वह भी तब जब इतिहास में उनकी जाति को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है.

यह भी पढ़ें- औरंगजेब की तुलना सम्राट अशोक से की, विवाद बढ़ते ही लेखक के खिलाफ मामला दर्ज

कौन थे सम्राट अशोक: चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे. उनका पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य था. उन्होंने 269 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक राज किया था. 304 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (पटना) में आखिरी सांस ली. उन्होंने अखंड भारत पर अपना शासन स्थापित किया था. हिंदू कुश की श्रेणी से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी और मैसूर तक उनका राज्य फैला हुआ था. आज के बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान तक अशोक का शासन था. सम्राट अशोक ने अपने जीवन में बहुत लड़ाई लड़ी और विजय हासिल की लेकिन कलिंग युद्ध के बाद उनका हृदय परिवर्तन हुआ. फिर शांति, सामाजिक, प्रगति और धार्मिक राह पर चल निकले. बाद में बौद्ध धर्म को अपना लिया. किसी भी साहित्यिक और ऐतिहासिक स्रोतों में सम्राट अशोक की जाति के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि वह कुशवाहा जाति से थे.

पटना: सम्राट अशोक की जयंती (Emperor Ashoka Birth Anniversary) के बहाने एनडीए में क्रेडिट लेने की होड़ मची है. बीजेपी ने जहां आठ अप्रैल को कार्यक्रम आयोजित किया, वहीं जेडीयू ने नौ अप्रैल को समारोह का आयोजन किया. दरअसल, करीब आठ साल पहले जब बिहार में बीजेपी नेता सूरजनंदन कुशवाहा ने मौर्य वंश के सम्राट अशोक के नाम पर यात्रा निकाली, तब शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि एक दिन उनका यह कदम बिहार की राजनीति में नया मोड़ लाएगा.

उसके बाद से ही राजनीतिक दलों ने न केवल सम्राट अशोक की जाति (Emperor Ashoka Caste) का पता लगाया, बल्कि उनकी जन्म तिथि भी पता कर डाली. राजनीतिक दलों को अशोक के नाम पर एक बड़ा ओबीसी वोट बैंक दिख रहा है. हालांकि सियासी दलों की ओर से सम्राट अशोक की जाति को लेकर जारी दावों से इतिहासकार इत्तेफाक नहीं रखते हैं.

बीजेपी ने बताई अशोक की जाति: सम्राट अशोक की जाति पर बिहार की सियासत में पहला दावा साल 2014 में बीजेपी नेता सूरजनंदन कुशवाहा ने किया था. उन्होंने सम्राट अशोक को कोईरी जाति (कुशवाहा) का बताकर 2330वीं जयंती आयोजित की थी. रविशंकर प्रसाद समेत बीजेपी के बड़े नेता उस कार्यक्रम में मौजूद थे. रविशंकर प्रसाद ने सम्राट अशोक की उस तस्वीर के साथ डाक टिकट जारी कर दिया. एक टिकट तो 2017 में पटना के जनरल पोस्ट ऑफिस में जारी किया गया. उसके बाद से अशोक को इसी जाति से जोड़कर देखा जाता है.

देखें वीडियो

नीतीश ने बताई अशोक की जन्मतिथि: उधर नीतीश कुमार बीजेपी से नाता तोड़ लालू के साथ गलबहियां करने लगे और लव-कुश के चक्कर में सम्राट अशोक पर उनकी पार्टी ने भी दावेदारी कर दी. नतीजा ये निकला कि सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार ने 14 अप्रैल को अशोक जयंती घोषित करते हुए राजकीय छुट्टी घोषित कर दी. मतलब तब नीतीश कुमार ने सम्राट अशोक का बर्थ डे खोज लिया. हालांकि बाद के वर्षों में अशोक जयंती पर बहुत शोर नहीं सुनाई पड़ा लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से सम्राट अशोक की तुलना मुगल शासक औरंगजेब से करने का विवादित बयान सामने आया, बिहार में जातियों के सम्मान का बखेड़ा खड़ा हो गया.

सम्मान की लड़ाई या कुछ और माजरा: वैसे सम्राट अशोक की जन्म तिथि का कोई साक्ष्य नहीं है. इतिहासकार बताते हैं कि उनका जन्म 304 ईसा पूर्व यानी करीब 2300 साल पहले हुआ था लेकिन बिहार के कई नेता सम्राट अशोक की जाति तय कर चुके हैं. ऐसे में इतिहासकार, इतिहास के साथ होते इस छेड़छाड़ पर अपनी विवशता जाहिर करने को मजबूर हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या नेता सच में सम्राट अशोक के सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं या माजरा कुछ और ही है.

सम्राट अशोक की औरंगजेब से तुलना: पद्मश्री से सम्मानित लेखक दया प्रकाश सिन्हा (Daya Prakash Sinha) ने सम्राट अशोक पर विवादित बयान देते हुए उनकी तुलना क्रूर औरंगजेब से कर दी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दया प्रकाश सिन्हा ने कहा था कि सम्राट अशोक क्रूर, कामुक और बदसूरत थे. उन्होंने अशोक को भाई का हत्यारा बताकर उनकी तुलना क्रूर औरंगजेब से कर दी. उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक बेहद बदसूरत और कामुक थे. देश के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में सम्राट अशोक के उजले पक्ष को ही शामिल किया गया है, जबकि उनकी असलियत इससे अलग थी. श्रीलंका के तीन बौद्ध ग्रंथों का उन्होंने हवाला देकर ये बयान दिया था.

जोडीयू-बीजेपी आमने-सामने: दया प्रकाश के बयान के बाद जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने विरोध जताते हुए उनसे पद्मश्री वापस लेने की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि यह अमर्यादित टिप्पणी है. पूरे देश में इसको लेकर आक्रोश है. यदि पार्टी कार्रवाई नहीं करती है तो उन्हें भी नुकसान उठाना पड़ सकता है. जिस प्रकार से सम्राट अशोक की औरंगजेब से अभद्र ढंग से तुलना की गई है, ऐसे व्यक्ति से पुरस्कार भी वापस ले लेना चाहिए. हालांकि जैसे ही सम्राट अशोक की औरंगजेब से तुलना करने वाले दया प्रकाश सिन्हा के ताल्लुक बीजेपी से होने की बात सामने आई, संजय जायसवाल से लेकर सुशील मोदी तक सामने आ गए. दावा किया कि लेखक से पार्टी का कोई संबंध नहीं है. संजय जायसवाल ने तो दया प्रकाश के खिलाफ पटना के कोतवाली थाने में मामला भी दर्ज करवा दिया.

इतिहासकार रोमिला थापर ने क्या कहा: सम्राट अशोक की जाति पर भले ही बीजेपी और जेडीयू की ओर से दावे किए जा रहे हों लेकिन इतिहासकार इससे बिल्कुल भी सहमत नहीं दिखते. प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर, जिन्होंने सम्राट अशोक पर विस्तार से अध्ययन कर एक किताब लिखी है. उनका कहना है कि अशोक की जाति का कहीं से कोई पता नहीं चलता. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि अगर किसी के पास अशोक की जन्‍मतिथि के सबूत हैं तो उसे सामने रखना चाहिए. मेरे पास कोई सबूत नहीं है. मुझे नहीं पता कि बिहार सरकार इस निष्‍कर्ष पर कैसे पहुंची कि अशोक का जन्‍म 14 अप्रैल को हुआ था. जब तक सबूत न हों, इतिहासिक तथ्‍यों को लेकर कोई भी दावा नहीं किया जा सकता.

अशोक की जाति पर इतिहासकारों की राय: वहीं, पटना के ही एक इतिहासकार कहते है कि अशोक के पूर्वज चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म एक शूद्र दासी की कोख से हुआ था, इसलिए उनके कुशवाहा होने का तो सवाल नहीं. पूर्व आईपीएस और इतिहास से जुड़ी कई किताबें लिख चुके किशोर कुणाल भी कह चुके हैं कि सरकार ने 14 अप्रैल की तारीख क्‍यों तय की, मैं भी यह जानने के लिए उत्‍सुक हूं. मैं उन स्रोतों के बारे में जानना चाहता हूं, जिसके आधार पर बिहार सरकार ने यह फैसला लिया. मैंने अपनी किताब इतिहास के दर्पण में दलित को लिखते हुए मौर्य साम्राज्‍य से जुड़े सभी अहम स्रोतों का जिक्र किया है, लेकिन मुझे अशोक के जन्‍म की सही सही तिथि के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उनका कहना है कि जहां बौद्ध साहित्‍य में मौर्य वंश के लोगों को क्षत्रिय बताया जाता है, वहीं संस्‍कृत और सनातनी साहित्‍य में उनके छोटे जाति से होने की ओर संकेत दिया जाता है.

"सम्राट अशोक की जाति को लेकर इतिहास में कोई साक्ष्य नहीं है और जब सम्राट अशोक का शासन हुआ करता था, तब जाति व्यवस्था नहीं थी. कर्म के आधार पर वर्ण का बंटवारा होता था. सम्राट अशोक को राजनीतिज्ञों द्वारा कुशवाहा कहा जाना अनुचित है"- सीपी सिन्हा, इतिहासकार

"सम्राट अशोक किस जाति के थे, इसे लेकर ना तो कोई साहित्यिक साक्ष्य मौजूद है और ना ही कोई पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध है. सम्राट अशोक कुशवाहा जाति से हैं, यह कहना भी अंधेरे में तीर चलाने जैसा है"- डॉ. शंकर सुमन, सहायक निदेशक, बिहार म्यूजियम

कुशवाहा जाति से अशोक का संबंध: हालांकि इतिहासकारों के दावों और तथ्यों से इतर पटना में इतिहास पढ़ाने वाले बीजेपी नेता सूरज नंदन प्रसाद कुशवाहा जैसे बौद्धिक चिंतक यह कहकर एक ही वाक्य में रोमिला थापर से लेकर आरएस शर्मा जैसे इतिहासकारों के अध्ययन को खारिज करते हुए कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी के पास ठोस सबूत है कि सम्राट अशोक कुशवाहा जाति से ही ताल्लुक रखते थे.

सियासी चूल्हे पर सम्राट अशोक: अब सवाल उठता है कि सम्राट अशोक पर तो कुशवाहा समाज पहले से दावेदारी करता ही रहा है. समाज उनके नाम पर आयोजन भी करता-कराता रहता था तो अचानक बीजेपी को खुलकर जाति के इस खेल में आने की जरूरत क्यों पड़ गई? दरअसल बिहार में वर्षों से लव-कुश समीकरण चल रहा है. यह दो जातियों कोईरी और कुर्मी के मेल-मिलाप वाला समीकरण है. इसके चैंपियन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार माने जाते रहे हैं. बीजेपी की नजर इसी वोट बैंक पर है. खासकर कोईरी यानी कुशवाहा समाज को बीजेपी अपने साथ लाना चाहती है.

बीजेपी का क्या कहना है: पटना के बापू सभागार में आयोजित कार्यक्रम में बीजेपी सांसद और नीतीश के पुराने सहयोगी सुशील कुमार मोदी ने कहा कि कुशवाहा समाज बीजेपी के साथ जुड़ रहा है. लव-कुश भगवान राम की संतान रहे हैं और राम को लेकर सबसे ज्यादा आस्था किसने दिखाई, ये बात उत्तर प्रदेश में साबित हो चुकी है. उन्होंने मंच से एलान किया कि अगले साल गांधी मैदान में सम्राट अशोक की जयंती मनाई जानी चाहिए.

जेडीयू का क्या कहना है: वहीं, जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी की ओर से अशोक जयंती माने पर तंज कसते हुए कहा कि सम्राट अशोक का झंडा लेकर जयंती मनाने से विकास नहीं होगा, बल्कि सम्राट अशोक के विचारों को मानने से होगा. उन्होंने कहा कि जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सम्राट अशोक जयंती पर बिहार में अवकाश की घोषणा की थी, उस समय बिहार में बीजेपी के साथ की गठबंधन की सरकार नहीं थीं. उस समय बिहार में जेडीयू का किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन की सरकार थी. उन्होंने सवाल पूछा कि सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से करने वाले लेखक दया प्रकाश सिन्हा से क्यों नहीं अबतक पद्म श्री पुरस्कार वापस लेकर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया.

नीतीश ने क्या कहा: मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने सम्राट अशोक कन्‍वेंशन हॉल पहुंचकर महान शासक की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर उन्‍हें याद किया. इस मौके पर उन्होंने कहा 'सम्राट अशोक की जन्‍मतिथि को लेकर काफी विवाद था. मैंने विशेषज्ञों को बुलाकर पूछा कि सम्राट अशोक की जयंती कब मनाई जानी चाहिए? इसके बाद सम्राट अशोक की जन्‍मतिथि अष्‍टमी के दिन तय की गई. ऐसे में सभी को इसी दिन सम्राट अशोक की जयंती मनानी चाहिए. हमने आज के दिन के लिए एक दिन का राजकीय अवकाश भी घोषित किया है, लिहाजा जयंती समारोह इसी दिन मनाया जाना चाहिए.'

मांझी ने क्या कहा: बीजेपी और जेडीयू की लड़ाई में जीतनराम मांझी भी कूद चुके हैं. मांझी ने सम्राट अशोक को पिछड़ी जाति से जुड़ा बताया है. पिछली बार जब सम्राट अशोक पर बिहार में सियासी संग्राम छिड़ा था, तब उन्होंने ट्वीट कर लिखा था, 'कुछ लोग सम्राट अशोक का अपमान सिर्फ इसलिए कर रहें है कि वह पिछड़ी जाति से थे. ऐसे सामंती लोग नहीं चाहते हैं कि कोई दलित/आदिवासी/पिछड़ा का बच्चा सत्ता के शीर्ष पर बैठे. मा. राष्ट्रपति से आग्रह है कि हमारे शौर्य के प्रतीक सम्राट अशोक पर टिप्पणी करने वालों का पद्म सम्मान वापिस लें.'

अशोक की जाति से सियासी लाभ: बिहार की सियासत वर्षों से ऐसे ही समीकरणों से चलती रही है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि जल्द ही अशोक कुशवाहा समाज के एक बड़े हिस्से के नायक हो जाएंगे और बीजेपी ऐसा कर इस चुनाव में कुछ न कुछ तो फायदा उठा ही लेगी लेकिन इतिहास का क्या कबाड़ा होगा और आगे का इतिहास कैसा बनेगा, इसकी चिंता फिलहाल किसी को नहीं है. राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि सम्राट अशोक जैसे महान शासक को जाति के दायरे में लाकर खड़ा करना उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने जैसा है, वह भी तब जब इतिहास में उनकी जाति को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है.

यह भी पढ़ें- औरंगजेब की तुलना सम्राट अशोक से की, विवाद बढ़ते ही लेखक के खिलाफ मामला दर्ज

कौन थे सम्राट अशोक: चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे. उनका पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य था. उन्होंने 269 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक राज किया था. 304 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (पटना) में आखिरी सांस ली. उन्होंने अखंड भारत पर अपना शासन स्थापित किया था. हिंदू कुश की श्रेणी से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी और मैसूर तक उनका राज्य फैला हुआ था. आज के बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान तक अशोक का शासन था. सम्राट अशोक ने अपने जीवन में बहुत लड़ाई लड़ी और विजय हासिल की लेकिन कलिंग युद्ध के बाद उनका हृदय परिवर्तन हुआ. फिर शांति, सामाजिक, प्रगति और धार्मिक राह पर चल निकले. बाद में बौद्ध धर्म को अपना लिया. किसी भी साहित्यिक और ऐतिहासिक स्रोतों में सम्राट अशोक की जाति के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि वह कुशवाहा जाति से थे.

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