जयपुर. चुनावी साल में राजस्थान में बहन-बेटियों की सुरक्षा को लेकर रोज बहस हो रही है. इस मुद्दे को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है, हालांकि, आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि महिला अत्याचार के 45.2 फीसदी मामलों में सजा हुई है, जबकि देशभर में ऐसे मामलों में सजा का प्रतिशत (राष्ट्रीय औसत प्रतिशत) महज 26.5 फीसदी है. इसी तरह महिलाओं से दुष्कर्म के 48 फीसदी मामलों में पुलिस ने दोषियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाकर सजा दिलवाई है, हालांकि इस तरह के मामलों में राष्ट्रीय औसत 30.19 प्रतिशत ही है.
पिछले साल के मुकाबले मुकदमों में कमी : पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में जुलाई तक महिला अत्याचार के 39,810 मामले प्रदेशभर के थानों में दर्ज हुए थे, जबकि साल 2022 में जुलाई तक 47,335 मामले दर्ज हुए हैं. बात अगर इस साल की करें तो जुलाई तक प्रदेशभर के थानों में महिला अत्याचार के 46,964 मुकदमें दर्ज हुए हैं. इस लिहाज से पिछले साल की तुलना में इस साल 0.78 फीसदी कम मुकदमें दर्ज हुए हैं. नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म (पॉक्सो एक्ट) के मामलों में राजस्थान में पुलिस ने 42.1 फीसदी मामलों में दोषियों को सजा दिलाई है, जबकि पॉक्सो एक्ट में सजा दिलाने का राष्ट्रीय औसत 32.2 फीसदी ही है.
255 मामलों में आजीवन कारावास : पुलिस के अनुसार साल 2019 से 2023 तक नाबालिग से दुष्कर्म के 13 मामलों में दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है, जबकि इस तरह के 255 मामलों में दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. इसी तरह नाबालिग से दुष्कर्म के 386 मामलों में 20 साल की सजा दोषियों को दी गई है, जबकि 936 मुकदमों में अन्य सजा सुनाई गई है. नाबालिग से दुष्कर्म के 1590 मामलों में 2019 से अब तक सजा हुई है, इनमें से 13 मामलों में दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है.
दुष्कर्म के मामलों में 1.49 प्रतिशत कमी : प्रदेश में दुष्कर्म के मुकदमों में पिछले साल की तुलना में इस साल 1.49 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि महिलाओं-युवतियों से दुष्कर्म के मामलों में 3.90 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. इसी तरह दहेज मृत्यु के मुकदमों में साल 2021 की तुलना में इस साल 6.36 फीसदी और 2022 की तुलना में 1.85 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. महिलाओं को खुदकुशी के लिए उकसाने के मामलों में भी 2021 की तुलना में 5.50 फीसदी की कमी और 2022 की तुलना में 13.45 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. पुलिस के अनुसार धारा 498 (ए) के तहत मुकदमों में पिछले साल की तुलना में 2.60 फीसदी की कमी दर्ज की गई है, जबकि छेड़छाड़ के मामलों में भी बीते साल के मुकाबले 1.81 फीसदी की कमी आई है.
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कोर्ट इस्तगासे से दर्ज होने वाले मुकदमे घटे : राजस्थान सरकार ने निर्बाध (जरूरी) एफआईआर की व्यवस्था लागू की है. इससे कोर्ट इस्तगासे के जरिए दर्ज होने वाले मुकदमों की संख्या में भी कमी आई है. 2018 में महिला अत्याचार के 30.47 फीसदी मुकदमे कोर्ट इस्तगासे के जरिए दर्ज हुए थे, जबकि अब 2023 में जुलाई तक यह आंकड़ा 14.13 फीसदी रह गया है. महिला अत्याचार के मामलों में पिछले साल 2022 की तुलना में इस साल चालान पेश करने का आंकड़ा भी 3 फीसदी बढ़ा है.
अनुसंधान का समय भी हुआ कम : डीजीपी उमेश मिश्रा का कहना है कि महिला अत्याचारों के मामलों में संवेदनशीलता दिखाते हुए ऐसे मामलों के जल्द निस्तारण को प्राथमिकता दी गई है. दुष्कर्म के मामलों के अनुसंधान में लगने वाला औसत समय साल 2018 में 136 दिन था, जो अब इस साल जुलाई तक 54 दिन रह गया है. इसी तरह महिला अत्याचार के मुकदमों के अनुसंधान में पहले (2018 में) औसतन 113 दिन का समय लगता था, जो अब 2023 में 57 दिन रह गया है.