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Beijing Olympics 2022: पाक पीएम इमरान खान का अनिश्चित कार्यकाल, क्या मदद करेगा चीन?

बीजिंग विंटर ओलंपिक 2022 (Beijing 2022 Winter Olympics) के उद्घाटन मौके पर पाक पीएम इमरान खान चीन पहुंचे. हालांकि विशेषज्ञ यह मानते हैं कि इमरान खान का कार्यकाल (Imran Khan's tenure) अनिश्चितता के भंवर में गोते खा रहा है, ऐसे में चीन की पाकिस्तान की विफल अर्थव्यवस्था को उबारने में मदद करेगा, इसकी संभावना नहीं है. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सौरभ शर्मा की रिपोर्ट.

Imran khan
इमरान खान
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Published : Feb 4, 2022, 8:49 PM IST

नई दिल्ली : इमरान खान की बीजिंग यात्रा (Imran Khan's visit to Beijing) में इस्लामाबाद की विफल अर्थव्यवस्था, अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के बाहर निकलने के बाद वैश्विक स्तर पर इसका अलगाव और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाक की स्थिति का चित्रण है.

पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के लिए यह संकट तभी हल हो सकते हैं जब बीजिंग आर्थिक और रणनीतिक दोनों तरह से उनका समर्थन करना जारी रखे. यह भी कहा जा रहा है कि पीएम खान अपनी यात्रा के दौरान चीन से 3 अरब डॉलर का कर्ज लेने पर अपना ध्यान केंद्रित रखेंगे ताकि उनकी नकदी की तंगी खत्म हो. साथ ही पाक पीएम खान कपड़े, जूते, फार्मास्यूटिकल्स, फर्नीचर, कृषि, ऑटोमोबाइल और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे उद्योगों में चीनी निवेश की भी तलाश करेंगे. लेकिन सबसे बुनियादी सवाल जो पीएम खान के दौरे से उपजा है, वह यह कि क्या पाकिस्तान का खाली कटोरा चीन की दरियादिली से भर जाएगा. या चीन इस मदद को अपने पैमानों पर तौलेगा. चीन कुछ भी देने से पहले बदले में क्या चाहता है? ये कुछ बड़े सवाल हैं जो पीएम खान के बीजिंग दौरे से सामने आएंगे.

ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि अगर चीन का पाकिस्तान को किसी भी प्रकार की ठोस सहायता देने का मन होता, तो वे पहले ही कर चुके होते. यह पाकिस्तान में चीनी कर्मियों पर सुरक्षा के लिए खतरे की तरह है, जिन्हें इस क्षेत्र में सबसे खराब अनुभव है. आखिरकार चीन, अमेरिका नहीं है. अमेरिका ने अतीत में बिना कोई सवाल पूछे पाकिस्तान को भारी मात्रा में धन दिया लेकिन चीन हमेशा वापसी की मांग करता है. इसलिए इस संदर्भ में चीन ऐसे समय में पाकिस्तान को ऋण नहीं देगा, जब चीन की अर्थव्यवस्था खुद मंदी का सामना कर रही है.

उन्होंने कहा कि इसमें और परेशानी जोड़ी जाए तो इमरान खान को इस्लामाबाद के आंतरिक राजनीतिक हलकों के भीतर एक गहरे और मजबूत विरोध का सामना करना पड़ रहा है. सेना के साथ उनका झगड़ा अब कोई रहस्य नहीं रहा है. जहां एक तरफ इमरान खान खुद को पाकिस्तान के नेता के रूप में प्रस्तावित करते हैं लेकिन यह सैन्य प्रतिष्ठान हैं जो सभी निर्णय लेता है. हालांकि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर समीकरण इस बैठक के बाद तेज हो सकता है. लेकिन यह भी नोट करने लायक है कि चीन इस तथ्य को स्वीकार करता है कि पाकिस्तान में उनकी उपस्थिति का बलूचिस्तान और अन्य क्षेत्रों में लोगों द्वारा घोर विरोध किया गया है.

14 जुलाई 2021 को पाकिस्तान के दसू बांध पर हुए एक आतंकी हमले में 10 चीनी निर्माण श्रमिकों की मौत हो गई और तब से चीनी निवेश अधर में है. यहां मुख्य चिंता यह है कि चीन मांग करता है कि उनके लोगों और उनके निवेश को किसी भी आतंकी हमले से बचाया जाए और इसके लिए उन्होंने एक मांग भी रखी है कि वहां चीनी सैनिकों को तैनात किया जाए. कुछ हद तक पीएम खान ने इसकी अनुमति दी है. प्रो पंत ने यह भी कहा कि यह कठिन लगता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस्लामाबाद में आंतरिक राजनीतिक उथल-पुथल को देखते हुए पीएम खान को कोई भी ऋण देने के लिए तैयार होंगे और ऐसी भी भविष्यवाणी की जा रही है कि पीएम खान अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे.

चीनी जानते हैं कि यह सेना ही है जो सभी निर्णय लेती है. साथ ही पाकिस्तान में आर्थिक सड़न इतनी गहरी है कि चीन द्वारा किए गए कुछ निवेश इस संकट को हल नहीं कर पाएंगे. जब अमेरिकियों द्वारा भारी मात्रा में धन पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के इस वित्तीय पहलू को हल करने में विफल रहा, तो अकेले चीन की सहायता इसे हल नहीं कर सकती. मूल रूप से इसे इस्लामाबाद को ही कुछ कड़े फैसले लेकर हल करना होगा.

यह भी पढ़ें- चिप आधारित ई पासपोर्ट : विदेश मंत्रालय ने कहा, सुरक्षित बनेंगे यात्रा दस्तावेज

चीन-पाकिस्तान के घनिष्ठ संबंध के बारे में पूछे जाने पर प्रो पंत ने कहा कि जब आप चीन-पाक गठजोड़ के बारे में बात करते हैं, तो यह मूल रूप से चीन के बारे में है. मुंबई की तुलना में छोटी अर्थव्यवस्था के साथ पाकिस्तान यहां और वहां कुछ आतंकवादी हमले करने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता. बड़ी चुनौती चीन से है और चीन से पाकिस्तान को मिलने वाला धन, नई दिल्ली के लिए एक गंभीर खतरा है. बलूचिस्तान में आतंकवादी हमलों में वृद्धि और टीटीपी की आतंकवादी गतिविधियों में अचानक वृद्धि के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रपति जिनपिंग इस्लामाबाद के लगातार धन की मांग पर क्या प्रतिक्रिया देंगे.

नई दिल्ली : इमरान खान की बीजिंग यात्रा (Imran Khan's visit to Beijing) में इस्लामाबाद की विफल अर्थव्यवस्था, अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के बाहर निकलने के बाद वैश्विक स्तर पर इसका अलगाव और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाक की स्थिति का चित्रण है.

पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के लिए यह संकट तभी हल हो सकते हैं जब बीजिंग आर्थिक और रणनीतिक दोनों तरह से उनका समर्थन करना जारी रखे. यह भी कहा जा रहा है कि पीएम खान अपनी यात्रा के दौरान चीन से 3 अरब डॉलर का कर्ज लेने पर अपना ध्यान केंद्रित रखेंगे ताकि उनकी नकदी की तंगी खत्म हो. साथ ही पाक पीएम खान कपड़े, जूते, फार्मास्यूटिकल्स, फर्नीचर, कृषि, ऑटोमोबाइल और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे उद्योगों में चीनी निवेश की भी तलाश करेंगे. लेकिन सबसे बुनियादी सवाल जो पीएम खान के दौरे से उपजा है, वह यह कि क्या पाकिस्तान का खाली कटोरा चीन की दरियादिली से भर जाएगा. या चीन इस मदद को अपने पैमानों पर तौलेगा. चीन कुछ भी देने से पहले बदले में क्या चाहता है? ये कुछ बड़े सवाल हैं जो पीएम खान के बीजिंग दौरे से सामने आएंगे.

ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि अगर चीन का पाकिस्तान को किसी भी प्रकार की ठोस सहायता देने का मन होता, तो वे पहले ही कर चुके होते. यह पाकिस्तान में चीनी कर्मियों पर सुरक्षा के लिए खतरे की तरह है, जिन्हें इस क्षेत्र में सबसे खराब अनुभव है. आखिरकार चीन, अमेरिका नहीं है. अमेरिका ने अतीत में बिना कोई सवाल पूछे पाकिस्तान को भारी मात्रा में धन दिया लेकिन चीन हमेशा वापसी की मांग करता है. इसलिए इस संदर्भ में चीन ऐसे समय में पाकिस्तान को ऋण नहीं देगा, जब चीन की अर्थव्यवस्था खुद मंदी का सामना कर रही है.

उन्होंने कहा कि इसमें और परेशानी जोड़ी जाए तो इमरान खान को इस्लामाबाद के आंतरिक राजनीतिक हलकों के भीतर एक गहरे और मजबूत विरोध का सामना करना पड़ रहा है. सेना के साथ उनका झगड़ा अब कोई रहस्य नहीं रहा है. जहां एक तरफ इमरान खान खुद को पाकिस्तान के नेता के रूप में प्रस्तावित करते हैं लेकिन यह सैन्य प्रतिष्ठान हैं जो सभी निर्णय लेता है. हालांकि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर समीकरण इस बैठक के बाद तेज हो सकता है. लेकिन यह भी नोट करने लायक है कि चीन इस तथ्य को स्वीकार करता है कि पाकिस्तान में उनकी उपस्थिति का बलूचिस्तान और अन्य क्षेत्रों में लोगों द्वारा घोर विरोध किया गया है.

14 जुलाई 2021 को पाकिस्तान के दसू बांध पर हुए एक आतंकी हमले में 10 चीनी निर्माण श्रमिकों की मौत हो गई और तब से चीनी निवेश अधर में है. यहां मुख्य चिंता यह है कि चीन मांग करता है कि उनके लोगों और उनके निवेश को किसी भी आतंकी हमले से बचाया जाए और इसके लिए उन्होंने एक मांग भी रखी है कि वहां चीनी सैनिकों को तैनात किया जाए. कुछ हद तक पीएम खान ने इसकी अनुमति दी है. प्रो पंत ने यह भी कहा कि यह कठिन लगता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस्लामाबाद में आंतरिक राजनीतिक उथल-पुथल को देखते हुए पीएम खान को कोई भी ऋण देने के लिए तैयार होंगे और ऐसी भी भविष्यवाणी की जा रही है कि पीएम खान अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे.

चीनी जानते हैं कि यह सेना ही है जो सभी निर्णय लेती है. साथ ही पाकिस्तान में आर्थिक सड़न इतनी गहरी है कि चीन द्वारा किए गए कुछ निवेश इस संकट को हल नहीं कर पाएंगे. जब अमेरिकियों द्वारा भारी मात्रा में धन पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के इस वित्तीय पहलू को हल करने में विफल रहा, तो अकेले चीन की सहायता इसे हल नहीं कर सकती. मूल रूप से इसे इस्लामाबाद को ही कुछ कड़े फैसले लेकर हल करना होगा.

यह भी पढ़ें- चिप आधारित ई पासपोर्ट : विदेश मंत्रालय ने कहा, सुरक्षित बनेंगे यात्रा दस्तावेज

चीन-पाकिस्तान के घनिष्ठ संबंध के बारे में पूछे जाने पर प्रो पंत ने कहा कि जब आप चीन-पाक गठजोड़ के बारे में बात करते हैं, तो यह मूल रूप से चीन के बारे में है. मुंबई की तुलना में छोटी अर्थव्यवस्था के साथ पाकिस्तान यहां और वहां कुछ आतंकवादी हमले करने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता. बड़ी चुनौती चीन से है और चीन से पाकिस्तान को मिलने वाला धन, नई दिल्ली के लिए एक गंभीर खतरा है. बलूचिस्तान में आतंकवादी हमलों में वृद्धि और टीटीपी की आतंकवादी गतिविधियों में अचानक वृद्धि के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रपति जिनपिंग इस्लामाबाद के लगातार धन की मांग पर क्या प्रतिक्रिया देंगे.

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