कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जियाद रहमान एए की पीठ ने कहा कि घरों और परिवार से दूर रहने वाले प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा एक अंतहीन कथा है, जो अक्सर अर्थहीन और दुखद होती है.
अदालत ने अपील को खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष के अनुसार दोषी और पीड़िता दोनों अपने बच्चे के साथ जीवन-यापन करने के लिए पश्चिम बंगाल से केरल आए थे.
हालांकि 4 मई 2011 की रात को दोषी ने अपनी लिव-इन-पार्टनर महिला की 15 बार चाकू मारकर हत्या कर दी और उसके बच्चे का भी गला घोंट दिया. जिसके बाद वह अगली सुबह अपने मूल राज्य भाग गया. इसके बाद उसे पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चलाने के लिए वापस केरल लाया गया.
अभियोजन पक्ष के अनुसार उसने महिला के पास जमा पैसे के लिए उसकी और बच्चे की हत्या की थी. दोषी ने अपनी अपील में दावा किया था कि उसे अपराध से जोड़ने वाली परिस्थितियों के बीच कोई कड़ी नहीं है. न ही कोई उद्देश्य स्थापित किया गया. उसके पास अपने कार्यस्थल से दूर होने के लिए एक वैध स्पष्टीकरण है.
उसने दावा किया था कि वह अपनी बीमार दादी को देखने के लिए तत्काल बंगाल रवाना हुआ था. दोषी ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज अपने बयान में पीड़ितों के साथ किसी भी तरह के संबंध से भी इनकार किया था.
हालांकि अभियोजन पक्ष ने कहा कि दोषी और पीड़िता के नियोक्ता सहित कई गवाहों ने कहा कि दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में थे और उसे आखिरी बार घटना के दिन पीड़ितों के साथ देखा गया था.
अपीलकर्ता और अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने कहा कि मृतकों के साथ उसकी (दोषी की) मौजूदगी, मृत्यु होने के आसपास उसके पैतृक स्थान जाने, स्पष्टीकरण की कमी और धारा 313 के तहत दर्ज झूठा बयान आरोपी के अपराध को स्थापित करता है.
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इसलिए हमें अपील का कोई आधार नहीं मिला. निचली अदालत द्वारा की गई दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए अपील खारिज की जाती है.