नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री पर बैन की मांग की गई थी. डॉक्यूमेंट्री में गुजरात दंगों को एक विषय के तौर पर उठाया गया है. यह डॉक्यूमेंट्री मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित है. इस डॉक्यूमेंट्री को लेकर खूब विवाद हुआ है. सोशल साइट पर इस डॉक्यूमेंट्री को बैन कर दिया गया है.
आपको बता दें कि याचिका हिंदू सेना ने दायर की थी. हिंदू सेना ने भारत में बीबीसी के कामकाज पर भी रोक लगाने का अनुरोध किया था. कोर्ट ने कहा कि आपकी याचिका में कोई आधार नहीं है. सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एम एम सुंदरेश की बेंच ने की. याचिकाकर्ता की वकील पिंकी आनंद थीं. पीठ ने कहा, 'रिट याचिका पूरी तरह से मिथ्या विचार है और इसमें कोई दम नहीं है, तदनुसार इसे खारिज किया जाता है.'
भारत और यहां की सरकार के मामले में बीबीसी के पक्षपाती होने का आरोप लगाते हुए याचिका में कहा गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इसका वृत्तचित्र 'भारत और इसके प्रधानमंत्री के वैश्विक उदय के खिलाफ गहरी साजिश का परिणाम है.' शीर्ष अदालत ने तीन फरवरी को बीबीसी के वृत्तचित्र को प्रतिबंधित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र और अन्य पक्षों से जवाब मांगा था. सरकार ने 21 जनवरी को विवादास्पद वृत्तचित्र के लिंक साझा करने वाले कई यूट्यूब वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक करने के निर्देश जारी किए थे.
इससे संबंधित याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इस मामले में कोर्ट केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चुकी है. कोर्ट ने सरकार को अपने फैसले का ओरिजिनल रिकॉर्ड अदालत के सामने सौंपने को कहा है. इस याचिका की सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश ने की. इस याचिका को दाखिल करने वालों में प्रशांत भूषण, एन राम, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा शामिल हैं.
एन. राम और अन्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है, जहां केंद्र ने डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने के लिए आईटी नियमों के तहत आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल किया. पीठ ने वकील से पूछा, आपको पहले उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाना चाहिए? सिंह ने जवाब दिया कि शीर्ष अदालत ने आईटी नियमों को चुनौती देने वाली उच्च न्यायालय में लंबित याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया है. पीठ ने कहा कि वह वर्तमान में उस पहलू पर विचार नहीं कर रही है और लोग डॉक्यूमेंट्री देख रहे हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सरकार की राय सुने बिना अंतरिम निर्देश जारी नहीं कर सकती. दलीलें सुनने के बाद खंडपीठ ने मामले में नोटिस जारी किया.
हालांकि, पूरे मामले को कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने याचिकाकर्ताओं की चाल बताया है. रिजिजू ने कहा कि ऐसी याचिकाओं से किसी का भला नहीं होता है, लेकिन कोर्ट का समय जरूर बर्बाद होता है.
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