नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के अपराध जांच विभाग (सीआईडी) को एक 64 वर्षीय विधवा और उसकी बेटी की याचिका के संबंध में बिना किसी दबाव के अपनी जांच जारी रखने का निर्देश दिया है. इसमें कलकत्ता हाईकोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा के पति (वकील) पर आपराधिक जांच में हस्तक्षेप का आरोप लगाया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को दिसंबर में सुनवाई की अगली तारीख पर सीलबंद लिफाफे में जांच पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि वकील प्रताप चंद्र डे और उनकी पत्नी न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने अपने पद का दुरुपयोग किया है और याचिकाकर्ताओं द्वारा उनके रिश्तेदारों के खिलाफ दायर दो आपराधिक मामलों की जांच में हस्तक्षेप किया है. मामला कुछ पैतृक संपत्ति पर कानूनी लड़ाई को लेकर है.
यह मामला सोमवार को जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की बेंच के सामने आया. शीर्ष अदालत ने राज्य सीआईडी को बिना किसी दबाव के जांच जारी रखने और यह बताने का निर्देश दिया कि क्या कोई हस्तक्षेप था. पश्चिम बंगाल सरकार को दिसंबर में अगली सुनवाई की तारीख पर सीलबंद लिफाफे में जांच पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया.
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि जांच की स्थिति और लगाए गए आरोपों के संबंध में पहले कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक रिपोर्ट भेजी गई थी. राज्य ने कहा कि वह निष्पक्षता से जांच कर रहा है और वह याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए आरोपों को गंभीरता ले रहा है. अधिवक्ता सुनील फर्नांडीस और आस्था शर्मा ने शीर्ष अदालत के समक्ष पश्चिम बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व किया.
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि संपत्ति का एक हिस्सा उसके पिता की मृत्यु के बाद विधवा को दे दिया गया था, हालांकि उसके बड़े भाई और उसका परिवार कथित तौर पर उसे संपत्ति से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं. याचिका में दावा किया गया कि विधवा को संपत्ति छोड़ने के लिए कई बार धमकी दी गई थी. विधवा ने अपने रिश्तेदारों के खिलाफ दो आपराधिक मामले दायर किए और आरोप लगाया कि उसके रिश्तेदारों ने वकील डे से सगाई कर ली है और वह कथित तौर पर जांच एजेंसी पर दबाव बना रहे हैं.
मामलों में आपराधिक साजिश, चोट पहुंचाने, धोखाधड़ी, जालसाजी के आरोप शामिल हैं. साथ ही गैर इरादतन हत्या के प्रयास, महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने, घर में अतिक्रमण और 2007 के वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 25 के आरोप भी शामिल हैं. याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग कि वकील डे या उनकी पत्नी के प्रभाव के बिना दो आपराधिक शिकायतों की उचित जांच की जाए.