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मुफ्त उपहार को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगा तत्काल सुनवाई - ree gifts or revari culture

चुनाव प्रचार के दौरान पार्टियों द्वारा मुफ्त उपहार को लेकर दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट तत्काल सुनवाई नहीं करेगा.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Oct 14, 2022, 11:42 AM IST

Updated : Oct 28, 2022, 3:19 PM IST

नई दिल्ली : चुनाव प्रचार के दौरान पार्टियों द्वारा मुफ्त उपहार को लेकर दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट तत्काल सुनवाई नहीं करेगा. इससे पहले मुफ्त उपहारों पर सुप्रीम कोर्ट के पैनल का सुझाव था कि राज्यों की कल्याणकारी योजनाओं के लिए एक फीसदी जीएसडीपी या राज्य के स्वामित्व वाले कर संग्रह का एक फीसदी या राज्य के राजस्व व्यय का एक फीसदी तय किया जाना चाहिए. एक शोध रिपोर्ट में यह बात कही गई है.

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि वांछित कल्याणकारी योजनाओं को उचित तरीके से लागू किया जा सकता है. supreme court panel on freebies .रेवड़ी (फ्रीबीज) की बड़ी राजकोषीय लागत होती है और कीमतों को विकृत करके और संसाधनों का गलत आवंटन करके अक्षमताओं का कारण बनती है. कुछ मुफ्त उपहार गरीबों को लाभान्वित कर सकते हैं, यदि उन्हें न्यूनतम रिसाव के साथ उचित रूप से लक्षित किया जाए और परिणाम समाज को अधिक स्पष्ट तरीके से मदद कर सकते हैं, जैसे कि एसएचजी को ब्याज सबवेंशन.

घोष ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दल मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, सस्ता अनाज, स्मार्टफोन, लैपटॉप, साइकिल और कृषि ऋण माफी आदि जैसी कई चीजों का वादा करते हैं, जो मतदाताओं को वादों के जरिए प्रेरित करने और उन्हें करदाताओं के पैसे से पूरा करने जैसा लगता है.इसके अलावा, कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को वापस करना भी राज्यों द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक उपकरण प्रतीत होता है. उदाहरण के लिए तीन राज्य- छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान पहले ही पुरानी पेंशन योजना या 'पे ऐज यू गो' योजना में वापस आ चुके हैं. पंजाब नवीनतम है जो बदलाव पर विचार कर रहा है। भारत में 2004 से पहले एक पे ऐज यू गो योजना थी.

ये भी पढ़ें - SC Panel on Freebies : 'रेवड़ी' पर सुप्रीम कोर्ट पैनल को उम्मीद, कर संग्रह का एक फीसदी तय किया जा सकता है

नई दिल्ली : चुनाव प्रचार के दौरान पार्टियों द्वारा मुफ्त उपहार को लेकर दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट तत्काल सुनवाई नहीं करेगा. इससे पहले मुफ्त उपहारों पर सुप्रीम कोर्ट के पैनल का सुझाव था कि राज्यों की कल्याणकारी योजनाओं के लिए एक फीसदी जीएसडीपी या राज्य के स्वामित्व वाले कर संग्रह का एक फीसदी या राज्य के राजस्व व्यय का एक फीसदी तय किया जाना चाहिए. एक शोध रिपोर्ट में यह बात कही गई है.

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि वांछित कल्याणकारी योजनाओं को उचित तरीके से लागू किया जा सकता है. supreme court panel on freebies .रेवड़ी (फ्रीबीज) की बड़ी राजकोषीय लागत होती है और कीमतों को विकृत करके और संसाधनों का गलत आवंटन करके अक्षमताओं का कारण बनती है. कुछ मुफ्त उपहार गरीबों को लाभान्वित कर सकते हैं, यदि उन्हें न्यूनतम रिसाव के साथ उचित रूप से लक्षित किया जाए और परिणाम समाज को अधिक स्पष्ट तरीके से मदद कर सकते हैं, जैसे कि एसएचजी को ब्याज सबवेंशन.

घोष ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दल मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, सस्ता अनाज, स्मार्टफोन, लैपटॉप, साइकिल और कृषि ऋण माफी आदि जैसी कई चीजों का वादा करते हैं, जो मतदाताओं को वादों के जरिए प्रेरित करने और उन्हें करदाताओं के पैसे से पूरा करने जैसा लगता है.इसके अलावा, कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को वापस करना भी राज्यों द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक उपकरण प्रतीत होता है. उदाहरण के लिए तीन राज्य- छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान पहले ही पुरानी पेंशन योजना या 'पे ऐज यू गो' योजना में वापस आ चुके हैं. पंजाब नवीनतम है जो बदलाव पर विचार कर रहा है। भारत में 2004 से पहले एक पे ऐज यू गो योजना थी.

ये भी पढ़ें - SC Panel on Freebies : 'रेवड़ी' पर सुप्रीम कोर्ट पैनल को उम्मीद, कर संग्रह का एक फीसदी तय किया जा सकता है

Last Updated : Oct 28, 2022, 3:19 PM IST
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