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पितृपक्ष के पहले दिन गया की फल्गु नदी के तट पर पिंडदान जारी, जानें विधि-विधान और महत्व - फल्गु नदी के तट पर पिंडदान जारी

इस बार कोरोना काल के चलते मोक्ष नगरी गयाजी में पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं किया गया है. लेकिन लोग पिंडदान कर सकते हैं. ऐसे में पिंडदानी आज फल्गु नदी में स्नान कर पहला पिंडदान कर रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

पितृपक्ष
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Published : Sep 20, 2021, 12:48 PM IST

गया: पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के तहत पिंडदान शुरू हो गया है. बिहार की धार्मिक नगरी गया जी में त्रैपाक्षिक कर्मकांड करने वाले पिंडदानी फल्गु नदी (Falgu River In Gaya) में पहला पिंडदान कर रहे हैं. पिंडदान के पहले दिन खीर का पिंडदान करने का महत्व है. सूर्य की लालिमा जैसे ही फल्गु नदी के जल पर पड़ी, पिंडदानी फल्गु नदी में स्नान करके पितरों को फल्गु के जल से तर्पण कर त्रैपाक्षिक कर्मकांड की शुरुआत कर दिए. हालांकि कोरोना की वजह से इस बार लोग कई सारी चीजें अपने पितरों के लिए नहीं कर पाएंगे.

दरअसल, कोरोना महामारी के बीच पहली बार गया में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान किया जा रहा है. जिला प्रशासन और विष्णुपद प्रबन्धकारणी समिति ने पिंडदानीयों की सुविधाओं के लिए व्यवस्था की है. गयाजी में आज यानि पूर्णिमा तिथि को फल्गुनी नदी तीर्थ में स्नान, तर्पण और नदी तट पर खीर के पिंड से फल्गु श्राद्ध करने का विधान है. जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन करना चाहिए.

देखें रिपोर्ट.

इस बारे में पिंडदान करने आए अशोक कुमार ने कहा कि गया जी के बारे में सुना था कि गया जी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. आज दिल्ली से आकर एक दिवसीय पिंडदान कर रहा हूं.' वहीं ब्राह्मण सुधीर पांडेय ने कहा कि गया में पितृ वंशज को देखते ही खुश हो जाते हैं. फल्गु नदी में काला तिल के साथ और फल्गु नदी के जल से तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वंशज या संतान के लिए ये पल काफी भावुक होता है. उनकी आंसू जब फल्गु नदी में गिरती है, तो पितृ को ऋण से मुक्ति मिलती है.'

इसी प्रकार पिंडदान करने आए विंजेदर शर्मा ने बताया कि यहां त्रैपाक्षिक कर्मकांड कर रहे हैं. मैं अपने पूर्वजों और ब्राह्मणों से गया जी धाम के बारे में सुना था. गया जी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही आने वाले पीढ़ी सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं. मैं गया जी में अंनत चतुर्थदर्शी को आया था. आज गया जी में पिंडदान की शुरुआत फल्गु नदी में स्नान करके किया हूं.'

वहीं आचार्य मुकेश पांडेय ने बताया कि आज के दिन पुनपुन नदी के तट पर पिंडदानी गया जी में आकर फल्गु नदी के तट पर तीर्थपुरोहित को पांव पूजन करके पिंडदान शुरू करते हैं. 17 दिवसीय पिंडदान का आज दूसरा दिन है. गया जी में पिंडदान का पहला दिन है. गया जी में फल्गु नदी में पिंडदान करने का महत्व है. फल्गु नदी पर खीर का पिंडदान किया जाए, तो उसे अति उत्तम माना जाता है.

ये भी पढ़ें - Pitru Paksha 2021 : जानिए पितरों के पूजन की खास विधि और तिथियां

स्वश्रेष्ठ नदी कैसे श्रापित हो गयी इसके पीछे कहानी है. फल्गु नदी को पंचतीर्थ नदी कहा जाता है. फल्गु नदी पांच नदियों के संगम से उत्पन्न हुआ है. विष्णुपद क्षेत्र के राजाचार्य ने बताया कि फल्गु नदी देश की सभी नदियों में सबसे ज्यादा पवित्र है. फल्गु नदी सतयुग सतत सलिला प्रवाहित होता था. लेकिन एक वाक्या इस नदी को श्रापित कर दिया.

भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी अपने पिता के मृत्यु के उपरांत गया जी में पिंडदान करने आये थे. पिंडदान की सामग्री लाने दोनों भाई नगर में चले गए और माता सीता फल्गु नदी में अठखेलियां कर रही थीं. इसी बीच आकाशवाणी हुई कि पुत्री पिंडदान का वक्त हो गया है. मुझे पिंड दो.

माता सीता ने फल्गु नदी, गाय, ब्राह्मण और अक्षयवट को साक्षी रखकर राजा दशरथ को बालू का पिंडदान दी. भगवान राम और लक्ष्मण के वापस आने पर माता सीता ने पूरा वाक्या बताया. लेकिन भगवान राम को भरोसा नहीं हुआ. माता सीता ने साक्षी चारों से पूछा लेकिन ब्राह्मण, फल्गु और गौ ने कह दिया कि माता सीता ने पिंडदान नहीं किया है. माता सीता ने आक्रोशित होकर फल्गु नदी को अततः सलिला होने का श्राप दे दिया.

बता दें कि गया जी में त्रैपाक्षिक कर्मकांड दूसरे दिन का पिंडदान प्रेतशिला, रामशिला, कागबलि और रामकुंड में किया जाता है. प्रेतशिला पहाड़ को भूतों का पहाड़ कहा जाता है. जिनकी अकाल मृत्यु होती है, उनका पिंडदान यहां जरूर किया जाता है. इस बार पितृपक्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अश्विनी मास की अमावस्या तिथि यानी 6 अक्टूबर तक रहेगा.

पितृपक्ष श्राद्ध की पूजा विधि

  • श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्व दिया जाता है.
  • श्राद्ध में इन चीजों को विशेष रूप से सम्मिलित करें.
  • इसके बाद श्राद्ध को पितरों को भोग लगाकर किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं.
  • तिल और पितरों की पंसद चीजें, उन्हें अर्पित करें.
  • श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए.
  • श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.
  • अंत में कौओं को श्राद्ध को भोजन कराएं. क्योंकि कौए को पितरों का रुप माना जाता है.

पितृपक्ष पक्ष की तिथियां

  • 20 सितंबर पूर्णिमा श्राद्ध
  • 21 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध
  • 22 सितंबर द्वितीया श्राद्ध
  • 23 सितंबर तृतीया श्राद्ध
  • 24 सितंबर तृतीया श्राद्ध
  • 25 सितंबर पंचमी श्राद्ध
  • 26/27 सितंबर षष्ठी श्राद्ध
  • 28 सितंबर सप्तमी श्राद्ध
  • 29 सितंबर अष्टमी श्राद्ध
  • 30 सितंबर नवमी श्राद्ध
  • 1 अक्टूबर दशमी श्राद्ध
  • 2 अक्टूबर एकादशी श्राद्ध
  • 3 अक्टूबर द्वादशी श्राद्ध
  • 4 अक्टूबर त्रयोदशी श्राद्ध
  • 5 अक्टूबर चतुर्दशी श्राद्ध
  • 6 अक्टूबर अमावस्या श्राद्ध

गया: पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के तहत पिंडदान शुरू हो गया है. बिहार की धार्मिक नगरी गया जी में त्रैपाक्षिक कर्मकांड करने वाले पिंडदानी फल्गु नदी (Falgu River In Gaya) में पहला पिंडदान कर रहे हैं. पिंडदान के पहले दिन खीर का पिंडदान करने का महत्व है. सूर्य की लालिमा जैसे ही फल्गु नदी के जल पर पड़ी, पिंडदानी फल्गु नदी में स्नान करके पितरों को फल्गु के जल से तर्पण कर त्रैपाक्षिक कर्मकांड की शुरुआत कर दिए. हालांकि कोरोना की वजह से इस बार लोग कई सारी चीजें अपने पितरों के लिए नहीं कर पाएंगे.

दरअसल, कोरोना महामारी के बीच पहली बार गया में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान किया जा रहा है. जिला प्रशासन और विष्णुपद प्रबन्धकारणी समिति ने पिंडदानीयों की सुविधाओं के लिए व्यवस्था की है. गयाजी में आज यानि पूर्णिमा तिथि को फल्गुनी नदी तीर्थ में स्नान, तर्पण और नदी तट पर खीर के पिंड से फल्गु श्राद्ध करने का विधान है. जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन करना चाहिए.

देखें रिपोर्ट.

इस बारे में पिंडदान करने आए अशोक कुमार ने कहा कि गया जी के बारे में सुना था कि गया जी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. आज दिल्ली से आकर एक दिवसीय पिंडदान कर रहा हूं.' वहीं ब्राह्मण सुधीर पांडेय ने कहा कि गया में पितृ वंशज को देखते ही खुश हो जाते हैं. फल्गु नदी में काला तिल के साथ और फल्गु नदी के जल से तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वंशज या संतान के लिए ये पल काफी भावुक होता है. उनकी आंसू जब फल्गु नदी में गिरती है, तो पितृ को ऋण से मुक्ति मिलती है.'

इसी प्रकार पिंडदान करने आए विंजेदर शर्मा ने बताया कि यहां त्रैपाक्षिक कर्मकांड कर रहे हैं. मैं अपने पूर्वजों और ब्राह्मणों से गया जी धाम के बारे में सुना था. गया जी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही आने वाले पीढ़ी सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं. मैं गया जी में अंनत चतुर्थदर्शी को आया था. आज गया जी में पिंडदान की शुरुआत फल्गु नदी में स्नान करके किया हूं.'

वहीं आचार्य मुकेश पांडेय ने बताया कि आज के दिन पुनपुन नदी के तट पर पिंडदानी गया जी में आकर फल्गु नदी के तट पर तीर्थपुरोहित को पांव पूजन करके पिंडदान शुरू करते हैं. 17 दिवसीय पिंडदान का आज दूसरा दिन है. गया जी में पिंडदान का पहला दिन है. गया जी में फल्गु नदी में पिंडदान करने का महत्व है. फल्गु नदी पर खीर का पिंडदान किया जाए, तो उसे अति उत्तम माना जाता है.

ये भी पढ़ें - Pitru Paksha 2021 : जानिए पितरों के पूजन की खास विधि और तिथियां

स्वश्रेष्ठ नदी कैसे श्रापित हो गयी इसके पीछे कहानी है. फल्गु नदी को पंचतीर्थ नदी कहा जाता है. फल्गु नदी पांच नदियों के संगम से उत्पन्न हुआ है. विष्णुपद क्षेत्र के राजाचार्य ने बताया कि फल्गु नदी देश की सभी नदियों में सबसे ज्यादा पवित्र है. फल्गु नदी सतयुग सतत सलिला प्रवाहित होता था. लेकिन एक वाक्या इस नदी को श्रापित कर दिया.

भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी अपने पिता के मृत्यु के उपरांत गया जी में पिंडदान करने आये थे. पिंडदान की सामग्री लाने दोनों भाई नगर में चले गए और माता सीता फल्गु नदी में अठखेलियां कर रही थीं. इसी बीच आकाशवाणी हुई कि पुत्री पिंडदान का वक्त हो गया है. मुझे पिंड दो.

माता सीता ने फल्गु नदी, गाय, ब्राह्मण और अक्षयवट को साक्षी रखकर राजा दशरथ को बालू का पिंडदान दी. भगवान राम और लक्ष्मण के वापस आने पर माता सीता ने पूरा वाक्या बताया. लेकिन भगवान राम को भरोसा नहीं हुआ. माता सीता ने साक्षी चारों से पूछा लेकिन ब्राह्मण, फल्गु और गौ ने कह दिया कि माता सीता ने पिंडदान नहीं किया है. माता सीता ने आक्रोशित होकर फल्गु नदी को अततः सलिला होने का श्राप दे दिया.

बता दें कि गया जी में त्रैपाक्षिक कर्मकांड दूसरे दिन का पिंडदान प्रेतशिला, रामशिला, कागबलि और रामकुंड में किया जाता है. प्रेतशिला पहाड़ को भूतों का पहाड़ कहा जाता है. जिनकी अकाल मृत्यु होती है, उनका पिंडदान यहां जरूर किया जाता है. इस बार पितृपक्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अश्विनी मास की अमावस्या तिथि यानी 6 अक्टूबर तक रहेगा.

पितृपक्ष श्राद्ध की पूजा विधि

  • श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्व दिया जाता है.
  • श्राद्ध में इन चीजों को विशेष रूप से सम्मिलित करें.
  • इसके बाद श्राद्ध को पितरों को भोग लगाकर किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं.
  • तिल और पितरों की पंसद चीजें, उन्हें अर्पित करें.
  • श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए.
  • श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.
  • अंत में कौओं को श्राद्ध को भोजन कराएं. क्योंकि कौए को पितरों का रुप माना जाता है.

पितृपक्ष पक्ष की तिथियां

  • 20 सितंबर पूर्णिमा श्राद्ध
  • 21 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध
  • 22 सितंबर द्वितीया श्राद्ध
  • 23 सितंबर तृतीया श्राद्ध
  • 24 सितंबर तृतीया श्राद्ध
  • 25 सितंबर पंचमी श्राद्ध
  • 26/27 सितंबर षष्ठी श्राद्ध
  • 28 सितंबर सप्तमी श्राद्ध
  • 29 सितंबर अष्टमी श्राद्ध
  • 30 सितंबर नवमी श्राद्ध
  • 1 अक्टूबर दशमी श्राद्ध
  • 2 अक्टूबर एकादशी श्राद्ध
  • 3 अक्टूबर द्वादशी श्राद्ध
  • 4 अक्टूबर त्रयोदशी श्राद्ध
  • 5 अक्टूबर चतुर्दशी श्राद्ध
  • 6 अक्टूबर अमावस्या श्राद्ध
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