नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दो हजार रुपए के नोटों के वापस लेने का मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गया है. फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. इसमें कहा गया है कि RBI के पास इस तरह का निर्णय लेने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है. विशिष्ट समय सीमा के भीतर केवल 4-5 साल के संचलन के बाद बैंक के नोट को वापस लेने का निर्णय अन्यायपूर्ण और मनमाना है.
यह जनहित याचिका अधिवक्ता रजनीश भास्कर गुप्ता ने दायर की है. यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया गया है कि प्रतिवादी नंबर एक यानी आरबीआई के पास गैर-मुद्दे या किसी भी मूल्यवर्ग के बैंक नोटों को जारी करने और बंद करने की उक्त शक्ति केवल केंद्र सरकार के पास आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 24 (2) के तहत निहित है.
सिर्फ सरकार के पास अधिकारः जनहित याचिका में कहा गया है कि 'क्लीन नोट पॉलिसी' के अलावा कोई अन्य कारण आरबीआई द्वारा बड़े पैमाने पर जनता की अपेक्षित समस्याओं का विश्लेषण किए बिना बैंक नोटों को संचलन से वापस लेने का ऐसा बड़ा मनमाना निर्णय लेने के लिए नहीं दिया गया है.
भारतीय रिजर्व बैंक की स्वच्छ नोट नीति के प्रावधान के अनुसार किसी भी मूल्यवर्ग के क्षतिग्रस्त, नकली, या गंदे नोटों को संचलन से वापस ले लिया जाता है और नए मुद्रित बैंक नोटों को परिचालित किया जाता है. लेकिन वर्तमान मामले में ऐसा नहीं हो रहा है. केवल 2000 रुपये के मूल्यवर्ग का नोट एक विशिष्ट तिथि समय सीमा के भीतर वापस लिया जा रहा है और आरबीआई द्वारा संचलन में कोई नया समान बैंक नोट नहीं दिया गया है.
नोटों को छापने में खर्च हुए करोड़ों रुपए होंगे बर्बाद: याचिकाकर्ता ने आरोप लगाते हुए कहा कि छोटे दुकानदारों ने आरबीआई के फैसले के बाद 2000 रुपये के नोट लेना अभी से ही बंद कर दिया है, जबकि यह नोट 30 सितंबर, 2023 तक वैध है. यह बड़े पैमाने पर जनता के लिए एक परेशानी का कारण बना है. दलील में आगे कहा गया कि अगर इस तरह के नोटों को देश की अर्थव्यवस्था के हित में बिना किसी वैध वैज्ञानिक कारणों के अनावश्यक रूप से संचलन से वापस ले लिया जाता है, तो वर्ष 2016 में डिमॉनेटाइजेशन के बाद 2000 रुपये के नोट छापने के लिए सरकारी खजाने से खर्च किए गए एक हजार करोड़ रुपये बर्बाद हो जाएगा.
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बता दें, 2000 रूपये के नोट को वापस लेने से संबंधित भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय स्टेट बैंक की अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर इस सप्ताह के शुरू में हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. 2000 के करेंसी नोट बिना किसी पहचान प्रमाण के जमा न करने की याचिका भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अधिसूचनाओं को मनमाना और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ घोषित करने की मांग की गई थी.
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