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जंगल की पदयात्रा, फिर हिलोर मारती लहरों पर नाव का सफर, तब राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र लोकतंत्र में देते हैं आहुति

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 17, 2023, 8:01 PM IST

Updated : Nov 17, 2023, 9:05 PM IST

कोरबा में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं. हैरानी की बात ये भी है कि, ये हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोट डालते हैं.बावजूद इनकी हालत जस की तस है. देखिए विकास को मुंह चिढ़ाती ये रिपोर्ट President adopted sons voting in Korba

phadai Korwa tribe travel miles to vote in Korba
कोरबा में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों ने की वोटिंग
मीलों सफर कर विकास के लिए की वोटिंग

कोरबा: छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण के मतदान में कुछ लोग ऐसे भी हिस्सा लिये. जो सिर्फ और सिर्फ विकास के लिए वोट किये हैं. कोरबा में विकास की बाट जोहने वाले ग्रामीण इस उम्मीद में वोट करते हैं कि, इसमें से विकास रूपी अमृत जरूर निकलेगा. उनके दिन फिरेंगे. विकास उनके गांव भी आएगा.

भगवान भरोसे जिंदगी, लेकिन लोकतंत्र के प्रति आस्था नहीं हुई कम: कोरबा जिले के सतरेंगा पंचायत के गांव खोखराआमा और कुकरी चोली सहित आधा दर्जन गांव के ग्रामीण राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र हैं यानी की पहाड़ी कोरवा हैं. ये लोग विशेष पिछड़ी जनजाति के हैं और वास्तव में धरतीपुत्र हैं. ये जंगलों में निवास करते हैं. उनकी कई पीढ़ियां इसी तरह जंगल में भटकते हुए बीत गई.अब भी उनके हालात ऐसे हैं कि, वोट डालने के लिए भी इन्हें हिलोर मारती नदी पर डगमगाती नाव के जरिए सफर करना पड़ता है. नाव का इंतजाम भी ग्रामीणों ने अपने संसाधन से ही किया है. प्रशासन के पास इतनी भी फुर्सत नहीं है कि, इनकी सुध ले और कम से कम नदी पर एक पुल का इंतजाम कर सकें.

आज भी विकास से अछूते हैं पहाड़ी कोरवा: राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहते हैं कि, वे लोग विशेष पिछड़ी जनजाति से जरूर आते हैं. लेकिन उन्हें कोई सुविधा नहीं मिलती है. साल दर साल यूं ही बीत गए. इनकी कई पीढ़ियां इसी तरह से नाव के जरिए वोट डालने आ रही है. इस साल भी इन लोगों ने इसी उम्मीद के साथ वोट डाला कि जो जीत कर आएंगे वो कम से कम विकास से जोड़ने वाले एक पुल की सौगात देंगे और एक अच्छी सड़क मिलेगी. ये लोग हर चुनाव में वोट देते हैं,लेकिन अब तक तो यहां के हालात नहीं बदले हैं.

"मेरी उम्र 46 साल हो गई है. मैं दादी और परदादा के जमाने से देखा आ रहा हूं कि, हम इसी तरह से जीवन यापन कर रहे हैं. नाव के जरिए नदी पार करके ही हम वोट डालने जाते हैं. कोई बदलाव नहीं आया है. गांव में बिजली पानी की सुविधा भी नहीं है. सबसे पहले तो हमें एक सड़क या पुल मिल जानी चाहिए. जिससे हम विकास के मुख्य धारा से जुड़ सके. पत्थर सिंह ये भी कहते हैं कि, इस उम्मीद के साथ वोट डालने जा रहे हैं कि, जो जीतेंगे वह कुछ काम तो करेंगे, गांव की तस्वीर में कुछ तो बदलाव होगा." पत्थर सिंह, पहाड़ी कोरवा

छत्तीसगढ़ के वोट पर्व में बुजुर्गों का दम, सरकार निर्माण के लिए किया वोटिंग के अधिकार का प्रयोग
छत्तीसगढ़ चुनाव के दूसरे चरण में नक्सली हिंसा, गरियाबंद में आईईडी ब्लास्ट,आईटीबीपी का एक जवान शहीद
भरतपुर सोनहत विधानसभा के शेराडांड, कांटो, रवला मतदान केंद्र में 100 प्रतिशत मतदान


बदहाली में 500 मतदाता: सतरेंगा में आश्रित गांव खोखराआमा डुबान में उस पार है. यह हसदेव नदी का क्षेत्र है, जब बांगो बांध बना तो यह पूरा डूबान क्षेत्र बन गया. पानी घटता और बढ़ता रहता है, खोखराआमा के निवासी इतवार सिंह पहाड़ी कोरवा ने बताया कि 5 किलोमीटर पैदल चलते हैं, फिर नाव तक पहुंचते हैं. हर 5 साल में इसी तरह वोट डालते हैं. एक बार कुछ लोग नाव के पलट जाने से नदी में डूब गए थे, उनकी मौत हो गयी थी. फिर भी हम लोकतंत्र के इस पर्व में हमेशा हिस्सा लेते हैं.

साधन के अभाव में पढ़ाई रही अधूरी: कुकरीचोली की ही रहने वाली कुमारी रमिला पहाड़ी कोरवा से ईटीवी भारत ने बात की है. रमिला विशेष पिछड़ी जनजाति की युवती हैं. और वह फर्स्ट टाइम वोटर हैं. आमतौर पर पहली बार मतदान करने वाले युवाओं में जोश होता है. वह नई उम्मीद के साथ मतदान करते हैं. लेकिन रमीला व्यवस्था से नाराज है. उत्साह की जगह उनके मन में आक्रोश है. रमिला से जब पूछा गया कि आपने कितनी पढ़ाई की, तब उनका जवाब था कि "मैंने दसवीं तक बड़ी मुश्किल से पढ़ाई की है. रोज नाव को पार करके जाने की मुसीबत थी. कुछ दिन रजगारमार में अपने भैया के साथ रही. तब जाकर दसवीं की परीक्षा पास की. गांव में कोई संसाधन नहीं हैं. किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिए मैंने पढ़ाई छोड़ दी है. हमारे गांव में दसवीं तक पढ़ लेना ही बहुत बड़ी बात होती है. पहली बार वोट डालने जा रही हूं. उम्मीद यही है कि जो जीत कर आएंगे. वह गांव में कुछ तो कम करेंगे. हमने चुनाव प्रचार का शोर भी नहीं सुना है. फिर भी वोट डालकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करेंगे. इस उम्मीद के साथ की कभी तो हमारा आने वाला कल कुछ सुधरेगा. हम भी एक दिन विकास की मुख्य धारा से जुड़ सकेंगे."

दावे और वादे सब खोखले: राजनेताओं की सियासत भी गांव खोखरामा और कुकरीचोली जैसे गांव आते-आते समाप्त हो जाती है. इन बीहड़ वनांचल में विशेष पिछड़ी जनजाति के लोग रहते हैं. तमगा तो इन्हें विशेष राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र का दिया गया है. लेकिन सुविधा फूटी कौड़ी की नहीं है. राजनेता दावे करते हैं कि हम आपका दिन बदल देंगे. प्रशासन कहता है कि शत प्रतिशत मतदान का प्रयास है. लेकिन इन्हें व्यवस्था कोई नहीं देता.राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पानी पर हिलोर मारती नाव पर जान जोखिम में डालकर नदी को पार करते हैं. नाव भी उन्होंने खुद बनाई है. और इसमें भी छेद है. कोरबा के कलेक्टर सौरभ कुमार मतदाताओं से अपील करते हैं कि, मतदान अवश्य करें, शत प्रतिशत मतदान होना चाहिए. सीएम भूपेश बघेल ने भी कर्जमाफी और महिलाओं के खाते में 15000 देने के वादे किए. लेकिन इन ग्रामीणों का जीवन स्तर कैसे सुधरेगा. इस दिशा में किसी ने नहीं सोचा. कई पीढ़ियों से ये ग्रामीण इसी तरह जान जोखिम में डालते आ रहे हैं. लेकिन मतदान जरूर करते हैं. और हर बार इस उम्मीद के साथ मतदान करते हैं कि, इस बार उनके भाग्य खुलेंगे

मीलों सफर कर विकास के लिए की वोटिंग

कोरबा: छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण के मतदान में कुछ लोग ऐसे भी हिस्सा लिये. जो सिर्फ और सिर्फ विकास के लिए वोट किये हैं. कोरबा में विकास की बाट जोहने वाले ग्रामीण इस उम्मीद में वोट करते हैं कि, इसमें से विकास रूपी अमृत जरूर निकलेगा. उनके दिन फिरेंगे. विकास उनके गांव भी आएगा.

भगवान भरोसे जिंदगी, लेकिन लोकतंत्र के प्रति आस्था नहीं हुई कम: कोरबा जिले के सतरेंगा पंचायत के गांव खोखराआमा और कुकरी चोली सहित आधा दर्जन गांव के ग्रामीण राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र हैं यानी की पहाड़ी कोरवा हैं. ये लोग विशेष पिछड़ी जनजाति के हैं और वास्तव में धरतीपुत्र हैं. ये जंगलों में निवास करते हैं. उनकी कई पीढ़ियां इसी तरह जंगल में भटकते हुए बीत गई.अब भी उनके हालात ऐसे हैं कि, वोट डालने के लिए भी इन्हें हिलोर मारती नदी पर डगमगाती नाव के जरिए सफर करना पड़ता है. नाव का इंतजाम भी ग्रामीणों ने अपने संसाधन से ही किया है. प्रशासन के पास इतनी भी फुर्सत नहीं है कि, इनकी सुध ले और कम से कम नदी पर एक पुल का इंतजाम कर सकें.

आज भी विकास से अछूते हैं पहाड़ी कोरवा: राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहते हैं कि, वे लोग विशेष पिछड़ी जनजाति से जरूर आते हैं. लेकिन उन्हें कोई सुविधा नहीं मिलती है. साल दर साल यूं ही बीत गए. इनकी कई पीढ़ियां इसी तरह से नाव के जरिए वोट डालने आ रही है. इस साल भी इन लोगों ने इसी उम्मीद के साथ वोट डाला कि जो जीत कर आएंगे वो कम से कम विकास से जोड़ने वाले एक पुल की सौगात देंगे और एक अच्छी सड़क मिलेगी. ये लोग हर चुनाव में वोट देते हैं,लेकिन अब तक तो यहां के हालात नहीं बदले हैं.

"मेरी उम्र 46 साल हो गई है. मैं दादी और परदादा के जमाने से देखा आ रहा हूं कि, हम इसी तरह से जीवन यापन कर रहे हैं. नाव के जरिए नदी पार करके ही हम वोट डालने जाते हैं. कोई बदलाव नहीं आया है. गांव में बिजली पानी की सुविधा भी नहीं है. सबसे पहले तो हमें एक सड़क या पुल मिल जानी चाहिए. जिससे हम विकास के मुख्य धारा से जुड़ सके. पत्थर सिंह ये भी कहते हैं कि, इस उम्मीद के साथ वोट डालने जा रहे हैं कि, जो जीतेंगे वह कुछ काम तो करेंगे, गांव की तस्वीर में कुछ तो बदलाव होगा." पत्थर सिंह, पहाड़ी कोरवा

छत्तीसगढ़ के वोट पर्व में बुजुर्गों का दम, सरकार निर्माण के लिए किया वोटिंग के अधिकार का प्रयोग
छत्तीसगढ़ चुनाव के दूसरे चरण में नक्सली हिंसा, गरियाबंद में आईईडी ब्लास्ट,आईटीबीपी का एक जवान शहीद
भरतपुर सोनहत विधानसभा के शेराडांड, कांटो, रवला मतदान केंद्र में 100 प्रतिशत मतदान


बदहाली में 500 मतदाता: सतरेंगा में आश्रित गांव खोखराआमा डुबान में उस पार है. यह हसदेव नदी का क्षेत्र है, जब बांगो बांध बना तो यह पूरा डूबान क्षेत्र बन गया. पानी घटता और बढ़ता रहता है, खोखराआमा के निवासी इतवार सिंह पहाड़ी कोरवा ने बताया कि 5 किलोमीटर पैदल चलते हैं, फिर नाव तक पहुंचते हैं. हर 5 साल में इसी तरह वोट डालते हैं. एक बार कुछ लोग नाव के पलट जाने से नदी में डूब गए थे, उनकी मौत हो गयी थी. फिर भी हम लोकतंत्र के इस पर्व में हमेशा हिस्सा लेते हैं.

साधन के अभाव में पढ़ाई रही अधूरी: कुकरीचोली की ही रहने वाली कुमारी रमिला पहाड़ी कोरवा से ईटीवी भारत ने बात की है. रमिला विशेष पिछड़ी जनजाति की युवती हैं. और वह फर्स्ट टाइम वोटर हैं. आमतौर पर पहली बार मतदान करने वाले युवाओं में जोश होता है. वह नई उम्मीद के साथ मतदान करते हैं. लेकिन रमीला व्यवस्था से नाराज है. उत्साह की जगह उनके मन में आक्रोश है. रमिला से जब पूछा गया कि आपने कितनी पढ़ाई की, तब उनका जवाब था कि "मैंने दसवीं तक बड़ी मुश्किल से पढ़ाई की है. रोज नाव को पार करके जाने की मुसीबत थी. कुछ दिन रजगारमार में अपने भैया के साथ रही. तब जाकर दसवीं की परीक्षा पास की. गांव में कोई संसाधन नहीं हैं. किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिए मैंने पढ़ाई छोड़ दी है. हमारे गांव में दसवीं तक पढ़ लेना ही बहुत बड़ी बात होती है. पहली बार वोट डालने जा रही हूं. उम्मीद यही है कि जो जीत कर आएंगे. वह गांव में कुछ तो कम करेंगे. हमने चुनाव प्रचार का शोर भी नहीं सुना है. फिर भी वोट डालकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करेंगे. इस उम्मीद के साथ की कभी तो हमारा आने वाला कल कुछ सुधरेगा. हम भी एक दिन विकास की मुख्य धारा से जुड़ सकेंगे."

दावे और वादे सब खोखले: राजनेताओं की सियासत भी गांव खोखरामा और कुकरीचोली जैसे गांव आते-आते समाप्त हो जाती है. इन बीहड़ वनांचल में विशेष पिछड़ी जनजाति के लोग रहते हैं. तमगा तो इन्हें विशेष राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र का दिया गया है. लेकिन सुविधा फूटी कौड़ी की नहीं है. राजनेता दावे करते हैं कि हम आपका दिन बदल देंगे. प्रशासन कहता है कि शत प्रतिशत मतदान का प्रयास है. लेकिन इन्हें व्यवस्था कोई नहीं देता.राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पानी पर हिलोर मारती नाव पर जान जोखिम में डालकर नदी को पार करते हैं. नाव भी उन्होंने खुद बनाई है. और इसमें भी छेद है. कोरबा के कलेक्टर सौरभ कुमार मतदाताओं से अपील करते हैं कि, मतदान अवश्य करें, शत प्रतिशत मतदान होना चाहिए. सीएम भूपेश बघेल ने भी कर्जमाफी और महिलाओं के खाते में 15000 देने के वादे किए. लेकिन इन ग्रामीणों का जीवन स्तर कैसे सुधरेगा. इस दिशा में किसी ने नहीं सोचा. कई पीढ़ियों से ये ग्रामीण इसी तरह जान जोखिम में डालते आ रहे हैं. लेकिन मतदान जरूर करते हैं. और हर बार इस उम्मीद के साथ मतदान करते हैं कि, इस बार उनके भाग्य खुलेंगे

Last Updated : Nov 17, 2023, 9:05 PM IST
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