नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय में एक याचिकाकर्ता ने कहा है कि निशुल्क सुविधाएं देने से पहले आर्थिक प्रभाव का आंकलन किया जाना जरूरी है. याचिकाकर्ता ने अदालत से विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का अनुरोध किया, जो बिना पर्याप्त बजटीय प्रावधानों के इस तरह की सुविधाएं दिए जाने की जांच करे. वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका में मुफ्त सुविधाएं देने के लिए राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध किया गया है.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील विजय हंसारिया ने अदालत से कहा कि देश के दो सर्वोच्च आर्थिक निकायों ने उचित वित्तीय और बजटीय प्रबंधन के बिना राज्यों द्वारा मुफ्त सुविधाएं दिए जाने से पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त की है. वकील अश्विनी कुमार दुबे ने अपनी दलील में कहा, 'यह बताया जाता है कि राज्य सरकारें अनुच्छेद 293(3) और (4) की आवश्यकताओं के अनुपालन के बिना भारत सरकार से ऋण बकाया होने पर भी पैसा उधार ले रही हैं. राज्य सरकार को ऋण सुविधा प्रदान करने के लिए पेश की गई 'क्रेडिट रेटिंग की प्रणाली' लागू करने सहित इन प्रावधानों का कड़ाई से पालन करना आवश्यक है.'
याचिकाकर्ता ने एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध किया, जो बिना पर्याप्त बजटीय प्रावधानों के वित्तीय संसाधनों (मुफ्त सुविधाएं) से जुड़े चुनावी वादे करने के अभ्यास की जांच करे और सुधारात्मक उपायों का सुझाव दे. याचिकाकर्ता ने राज्यों के सकल राज्य घरेलू उत्पाद के अनुपात में ऋण कम करने के लिए एक व्यापक नीति तैयार करने का भी अनुरोध किया है. साथ ही राज्यों के वित्त से जुड़े संकेतों की निगरानी के लिए संस्थागत तंत्र विकसित करने का भी सुझाव दिया गया है जो वित्तीय स्थिति के गंभीर रूप से प्रभावित होने की सूरत में पहले ही आगाह कर सके.
शीर्ष अदालत ने तीन अगस्त को केंद्र, नीति आयोग, वित्त आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक सहित सभी हितधारकों से चुनावों के दौरान मुफ्त में दिए जाने वाले उपहारों के मुद्दे पर विचार करने और इससे निपटने के लिए रचनात्मक सुझाव देने को कहा था.
ये भी पढ़ें : चुनाव से पहले मुफ्त उपहार देने के वादे संबंधी मामले में आप ने अदालत का रुख किया