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उत्तराखंड : टीकाकरण से महरूम वानरजी जनजाति के लोग - डिजिटल क्रांति के दौर

डिजिटल क्रांति के दौर में वनराजी जनजाति के लोग आज भी मुख्यधारा से कोसों दूर हैं. ये आज भी आदिम युग सा जीवन जीने को मजबूर हैं. दूर दराज के जंगलों में निवास करने के कारण सरकारी योजनाओं के लाभ से भी ये वंचित रहते हैं. भ्रांतियों के कारण ये लोग कोरोना वैक्सीनेशन भी नहीं करवा रहे हैं.

टीकाकरण से महरूम वानरजी जनजाति के लोग
टीकाकरण से महरूम वानरजी जनजाति के लोग
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Published : May 28, 2021, 1:31 AM IST

देहरादून : उत्तराखंड की सबसे पिछड़ी और कम जनसंख्या वाली वनराजी जनजाति पर कोरोना काल में संकट के बादल मंडराने लगे हैं. आलम ये है कि वनराजी समाज के लोगों को ना तो वेक्सीनेशन की कोई जानकारी है और न ही इन्हें कोरोना टीकाकरण अभियान का कोई लाभ मिल पाया है.

गौरतलब है कि वनराजी जनजाति के लोग उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और चंपावत जिले के दूरस्थ जंगलों में स्थित गांवों में निवास करते हैं. इसके अलावा नेपाल के पश्चिम अंचल में भी इनके कुछ गांव बसे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वनराजियों की सबसे अधिक आबादी पिथौरागढ़ जिले में है. यहां इनकी कुल आबादी 700 के करीब है. जिले के डीडीहाट, धारचूला और कनालीछीना विकासखण्ड में वनराजियों के 9 गांव हैं. जहां वनराजियों के कुल 202 परिवार निवास करते हैं. ये सभी परिवार गरीबी के स्तर से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं.

उत्तराखंड में वानरजी जनजाति के लोगों का नहीं हो रहा टीकाकरण
उत्तराखंड में वानरजी जनजाति के लोगों का नहीं हो रहा टीकाकरण

डिजिटल क्रांति के दौर में वनराजी जनजाति के लोग आज भी मुख्यधारा से कोसों दूर हैं. ये आज भी आदिम युग सा जीवन जीने को मजबूर हैं. दूर दराज के जंगलों में निवास करने के कारण सरकारी योजनाओं के लाभ से भी ये वंचित रहते हैं. कोरोना काल में वनराजी जनजाति खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हो गई है. बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिए किसी भी परिवार के पास स्मार्टफोन तक नहीं हैं.

उत्तराखंड में वानरजी जनजाति के लोगों का नहीं हो रहा टीकाकरण
उत्तराखंड में वानरजी जनजाति के लोगों का नहीं हो रहा टीकाकरण

चिफलतरा गांव में 65 वर्षीय देवकी देवी पति के निधन के बाद से ही अकेले एक झोपड़ी में रहती है. उनका कहना है कि दो साल पूर्व पति का निधन हो गया था, मगर अभी तक उनकी पेंशन नहीं लगी है. आधार कार्ड नहीं होने के कारण राशन कार्ड भी ऑनलाइन नहीं हुआ है. मेहनत मजदूरी कर किसी तरह अपना पेट पाल रही हैं.

वनराजियों पर कार्य करने वाली अर्पण संस्था की खीमा देवी बताती हैं कि वनराजी परिवार जंगल से घास काटने, लकड़ी बीनने और रोड़ी फोड़कर अपना गुजारा करते हैं. मगर लॉकडाउन के बाद से उनके रोजगार का ये जरिया भी छिन गया है. वनराजियों की आर्थिक तंगी का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वैक्सीनेशन सेंटर जाने के लिए भी इनके पास पैसे नहीं हैं. वहीं वनराजी परिवार भ्रांतियों के कारण भी वैक्सीनेशन करवाने से डर रहे हैं.

पढ़ें - चक्रवात यास के कारण कन्याकुमारी में 650 हेक्टेयर से अधिक केले के बागान बर्बाद

ईटीवी भारत की टीम ने जब वनराजियों के वैक्सीनेशन का मामला स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के सामने रखा तो स्वास्थ्य महकमा हरकत में आया. सीएमओ हरीश चंद्र पंत का कहना है कि वनराजी गांवों में कोरोना जांच के लिए टीम भेज दी गयी हैं. साथ ही वनराजियों का वैक्सीनेशन भी गांव-गांव जाकर प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा.

देहरादून : उत्तराखंड की सबसे पिछड़ी और कम जनसंख्या वाली वनराजी जनजाति पर कोरोना काल में संकट के बादल मंडराने लगे हैं. आलम ये है कि वनराजी समाज के लोगों को ना तो वेक्सीनेशन की कोई जानकारी है और न ही इन्हें कोरोना टीकाकरण अभियान का कोई लाभ मिल पाया है.

गौरतलब है कि वनराजी जनजाति के लोग उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और चंपावत जिले के दूरस्थ जंगलों में स्थित गांवों में निवास करते हैं. इसके अलावा नेपाल के पश्चिम अंचल में भी इनके कुछ गांव बसे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वनराजियों की सबसे अधिक आबादी पिथौरागढ़ जिले में है. यहां इनकी कुल आबादी 700 के करीब है. जिले के डीडीहाट, धारचूला और कनालीछीना विकासखण्ड में वनराजियों के 9 गांव हैं. जहां वनराजियों के कुल 202 परिवार निवास करते हैं. ये सभी परिवार गरीबी के स्तर से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं.

उत्तराखंड में वानरजी जनजाति के लोगों का नहीं हो रहा टीकाकरण
उत्तराखंड में वानरजी जनजाति के लोगों का नहीं हो रहा टीकाकरण

डिजिटल क्रांति के दौर में वनराजी जनजाति के लोग आज भी मुख्यधारा से कोसों दूर हैं. ये आज भी आदिम युग सा जीवन जीने को मजबूर हैं. दूर दराज के जंगलों में निवास करने के कारण सरकारी योजनाओं के लाभ से भी ये वंचित रहते हैं. कोरोना काल में वनराजी जनजाति खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हो गई है. बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिए किसी भी परिवार के पास स्मार्टफोन तक नहीं हैं.

उत्तराखंड में वानरजी जनजाति के लोगों का नहीं हो रहा टीकाकरण
उत्तराखंड में वानरजी जनजाति के लोगों का नहीं हो रहा टीकाकरण

चिफलतरा गांव में 65 वर्षीय देवकी देवी पति के निधन के बाद से ही अकेले एक झोपड़ी में रहती है. उनका कहना है कि दो साल पूर्व पति का निधन हो गया था, मगर अभी तक उनकी पेंशन नहीं लगी है. आधार कार्ड नहीं होने के कारण राशन कार्ड भी ऑनलाइन नहीं हुआ है. मेहनत मजदूरी कर किसी तरह अपना पेट पाल रही हैं.

वनराजियों पर कार्य करने वाली अर्पण संस्था की खीमा देवी बताती हैं कि वनराजी परिवार जंगल से घास काटने, लकड़ी बीनने और रोड़ी फोड़कर अपना गुजारा करते हैं. मगर लॉकडाउन के बाद से उनके रोजगार का ये जरिया भी छिन गया है. वनराजियों की आर्थिक तंगी का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वैक्सीनेशन सेंटर जाने के लिए भी इनके पास पैसे नहीं हैं. वहीं वनराजी परिवार भ्रांतियों के कारण भी वैक्सीनेशन करवाने से डर रहे हैं.

पढ़ें - चक्रवात यास के कारण कन्याकुमारी में 650 हेक्टेयर से अधिक केले के बागान बर्बाद

ईटीवी भारत की टीम ने जब वनराजियों के वैक्सीनेशन का मामला स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के सामने रखा तो स्वास्थ्य महकमा हरकत में आया. सीएमओ हरीश चंद्र पंत का कहना है कि वनराजी गांवों में कोरोना जांच के लिए टीम भेज दी गयी हैं. साथ ही वनराजियों का वैक्सीनेशन भी गांव-गांव जाकर प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा.

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