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उत्तराखंड के इस गांव में भगवान हनुमान की पूजा नहीं की जाती - चमोली में हनुमान की पूजा नहीं की जाती

उत्तराखंड देवताओं की भूमि कही जाती है. लेकिन यहां एक ऐसा गांव भी है जहां हनुमान जी की पूजा नहीं की जाती है. यहां के लोगों का मानना है कि जब भगवान लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तब हनुमान जी संजीवनी के लिए द्रोणागिरि पर्वत आए थे और संजीवनी बूटी की पहचान ना होने के कारण वे द्रोणागिरि पर्वत के एक बड़े हिस्से को ही उठा कर ले गए थे. तब से ग्रामीण हनुमान जी से नाराज हैं.

हनुमान जी संजीवनी के लिए द्रोणागिरि पर्वत उठा ले गए थे
हनुमान जी संजीवनी के लिए द्रोणागिरि पर्वत उठा ले गए थे
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Published : Apr 16, 2022, 2:19 PM IST

Updated : Apr 16, 2022, 4:31 PM IST

चमोली: पूरे देश में आज हनुमान जयंती मनाई जा रही है. लोग सुबह से ही हनुमान मंदिर पहुंचकर पूजा अर्चना करने में लगे हुए हैं. वहीं, देवभूमि उत्तराखंड में एक ऐसा गांव भी है, जहां भगवान हनुमान की पूजा ही नहीं की जाती. यह गांव चमोली जनपद में समुद्र तल से करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. जी हां हम बात कर रहे हैं चमोली जिले के जोशीमठ से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित द्रोणागिरि गांव की. यहां के ग्रामीण आज भी रामभक्त हनुमान से नाराज हैं. इसलिए इस गांव में बजरंग बली हनुमान की पूजा नहीं की जाती है बल्कि गांव के समीप स्थित द्रोणागिरि पर्वत को देवता के रूप में पूजते हैं.

यह है कारण: ग्रामीण गांव के समीप स्थित द्रोणागिरि पर्वत को पर्वत देवता के रूप में पूजते हैं. कहा जाता है कि त्रेता युग में राम-रावण युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे, तो सुषेण वैद्य के कहने पर हनुमान संजीवनी बूटी लेने के लिए द्रोणागिरि गांव आए थे. संजीवनी बूटी की पहचान ना होने के कारण वे द्रोणागिरि पर्वत के एक बड़े हिस्से को ही उठा कर ले गए थे. तब से ग्रामीण हनुमान जी से नाराज हैं.

भोटिया जनजाति का गांव है द्रोणागिरि: द्रोणागिरि गांव में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं. समुद्र तल से करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव में करीब 100 परिवार रहते हैं. सर्दियों में द्रोणागिरि पर इतनी बर्फबारी होती है कि यहां रुकना काफी मुश्किल भरा होता है. ऐसे में यहां लोग अक्टूबर के दूसरे-तीसरे हफ्ते तक चमोली शहर के आस-पास बसे अपने अन्य गांवों में आ जाते हैं. इसके बाद मई में जब बर्फ पिघल जाती है, तब एक बार फिर से द्रोणागिरि आबाद होता है. तब गांव के लोग यहां वापस लौट आते हैं.

ऐसे पहुंचें द्रोणागिरि पर्वत: जोशीमठ से मलारी की तरफ करीब 50 किमी आगे एक जगह मिलती है, जिसका नाम है जुम्मा. यहीं से द्रोणागिरि गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू हो जाता है. धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी ओर पहाड़ों की श्रृंखला दिखाई देती है. उसे पार करने के बाद द्रोणागिरि पर्वत पर आप पहुंच सकते हैं. यहां से संकरी पहाड़ी पगडंडियों पर करीब 10 किलोमीटर ट्रैकिंग कर लोग यहां पहुंच सकते हैं. हर साल जून के महीने में द्रोणागिरि पर्वत की विशेष पूजा की जाती है.

पढ़ें- हनुमान जी की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण, पीएम बोले- हनुमान जी 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के सूत्र

चमोली: पूरे देश में आज हनुमान जयंती मनाई जा रही है. लोग सुबह से ही हनुमान मंदिर पहुंचकर पूजा अर्चना करने में लगे हुए हैं. वहीं, देवभूमि उत्तराखंड में एक ऐसा गांव भी है, जहां भगवान हनुमान की पूजा ही नहीं की जाती. यह गांव चमोली जनपद में समुद्र तल से करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. जी हां हम बात कर रहे हैं चमोली जिले के जोशीमठ से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित द्रोणागिरि गांव की. यहां के ग्रामीण आज भी रामभक्त हनुमान से नाराज हैं. इसलिए इस गांव में बजरंग बली हनुमान की पूजा नहीं की जाती है बल्कि गांव के समीप स्थित द्रोणागिरि पर्वत को देवता के रूप में पूजते हैं.

यह है कारण: ग्रामीण गांव के समीप स्थित द्रोणागिरि पर्वत को पर्वत देवता के रूप में पूजते हैं. कहा जाता है कि त्रेता युग में राम-रावण युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे, तो सुषेण वैद्य के कहने पर हनुमान संजीवनी बूटी लेने के लिए द्रोणागिरि गांव आए थे. संजीवनी बूटी की पहचान ना होने के कारण वे द्रोणागिरि पर्वत के एक बड़े हिस्से को ही उठा कर ले गए थे. तब से ग्रामीण हनुमान जी से नाराज हैं.

भोटिया जनजाति का गांव है द्रोणागिरि: द्रोणागिरि गांव में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं. समुद्र तल से करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव में करीब 100 परिवार रहते हैं. सर्दियों में द्रोणागिरि पर इतनी बर्फबारी होती है कि यहां रुकना काफी मुश्किल भरा होता है. ऐसे में यहां लोग अक्टूबर के दूसरे-तीसरे हफ्ते तक चमोली शहर के आस-पास बसे अपने अन्य गांवों में आ जाते हैं. इसके बाद मई में जब बर्फ पिघल जाती है, तब एक बार फिर से द्रोणागिरि आबाद होता है. तब गांव के लोग यहां वापस लौट आते हैं.

ऐसे पहुंचें द्रोणागिरि पर्वत: जोशीमठ से मलारी की तरफ करीब 50 किमी आगे एक जगह मिलती है, जिसका नाम है जुम्मा. यहीं से द्रोणागिरि गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू हो जाता है. धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी ओर पहाड़ों की श्रृंखला दिखाई देती है. उसे पार करने के बाद द्रोणागिरि पर्वत पर आप पहुंच सकते हैं. यहां से संकरी पहाड़ी पगडंडियों पर करीब 10 किलोमीटर ट्रैकिंग कर लोग यहां पहुंच सकते हैं. हर साल जून के महीने में द्रोणागिरि पर्वत की विशेष पूजा की जाती है.

पढ़ें- हनुमान जी की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण, पीएम बोले- हनुमान जी 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के सूत्र

Last Updated : Apr 16, 2022, 4:31 PM IST
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