नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी के पूर्व नेता प्रद्योत बिक्रम से बातचीत की है, ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवादताता सौरभ शर्मा ने.
कांग्रेस लगातार एक के बाद एक चुनाव क्यों हारती जा रही है ?
कांग्रेस पार्टी को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. कुछ नेताओं ने अपने आप पार्टी छोड़ दी, और कुछ नेता पार्टी छोड़ने पर मजबूर हुए. हेमंत सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जगन रेड्डी जैसे नेताओं ने पार्टी छोड़ी. उनके जाने से पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ है. दरअसल, मुझ जैसे नेताओं को सुना ही नहीं जाता है. कांग्रेस को युवा नेताओं की जरूरत है.
क्या आपके और राहुल गांधी के बीच सबकुछ ठीक नहीं था. क्योंकि एक वक्त आप उनके काफी करीब हुआ करते थे ?
मैं अब भी राहुल के करीब हूं. वह बहुत ही अच्छे व्यक्ति हैं. सुशील हैं. सज्जन हैं. मुझे उनके साथ कोई दिक्कत नहीं है. मुझे गांधी परिवार के किसी भी सदस्य के साथ बात करने में कोई दिक्कत नहीं है. मैं उनका हमेशा ही सम्मान करता रहूंगा. इसी तरह से हमें अमित शाह के साथ काम करने में भी कोई दिक्कत नहीं है. मैं 2020 में उनके साथ पुनर्वास को लेकर काम कर चुका हूं. इसी तरह से सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी के साथ भी मुझे कोई दिक्कत नहीं है. वह भी बहुत ही अच्छे व्यक्ति हैं. मुझे ममता बनर्जी के साथ भी कोई समस्या नहीं है. मेरी मां उनके साथ संसद में काम कर चुकी है. मैं उनका बहुत ही सम्मान करता हूं.
आप अगले साल त्रिपुरा में होने वाले विधानसभा चुनाव में कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे ?
अभी हमने 60 में से 35 सीटों पर ग्राउंड वर्क किया है. आगे देखते हैं.
आपने टिपरालैंड की मांग क्यों रखी है. क्योंकि यहां पर 1930 की जनगणना के मुताबिक 80 फीसदी त्रिपुरीज हैं और 20 फीसदी बंगाली मूल के ?
देखिए तथ्य यह है कि पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं के शोषण के बाद यहां पर बाहर से बहुत सारे लोग आए. यह त्रिपुरा के लिए बड़ी समस्या है. हमारी उनके साथ पूरी सहानुभूति है. हम बंगाली हिंदुओं का दर्द समझते हैं. वो पूर्वी पाक में अलग-अलग तानाशाहों के काल में पीड़ा झेल चुके हैं. इसलिए हमने सरकार से कहा है कि वे उन्हें वापस बांग्लादेश न भेंजे. उन्हें अधिकार दें. लेकिन हमारी संवैधानिक अधिकारों की तो रक्षा सरकार को करनी होगी. हमारी संस्कृति, भाषा, परंपरा, जीवन जीने का तरीका, पहचान कायम रहनी चाहिए. इसके लिए ही हमने अपनी मांग रखी है. हमने बंगाली हिंदुओं के अधिकार छीनने की बात नहीं की है. सरकार हमलोगों के लिए कोई वित्तीय पैकेज दे सकती है. संवैधानिक अधिकारों की गारंटी प्रदान कर दे. इसके लिए ही हमने टिपरालैंड की मांग की है.
क्या केंद्र की किसी पार्टी ने इस मुद्दे पर आपसे संपर्क साधा है ?
कांग्रेस ने कहा है कि हमारी मांग संवैधानिक है, यह एंटी नेशनल नहीं है. वाम पार्टियों ने भी हमारी मांगों का समर्थन किया है. भाजपा के सदस्यों ने निजी तौर पर स्वीकार किया है कि आपके द्वारा उठाए गए मुद्दों का हल खोजा जाना चाहिए.
क्या आप उनके नाम बता सकते हैं ?
नहीं, यह सही नहीं होगा. हां, कई जनजातीय नेताओं ने हमसे सपर्क किया है. देखिए, 2018 में भाजपा ने स्थानीय त्रिपुरीज लोगों के लिए राज्य के अंदर एक स्टेट काउंसल की मांग को लेकर चिट्ठी लिखी थी. यह तो एक तरीके से अलग राज्य के मांग जैसा ही है. भाजपा विपक्ष में रहते हुए यह मांग उठा चुकी है. मेरी भी यही मांग है कि बिना बंगालियों का अधिकार छीने हुए आप स्थानीय त्रिपुरीज के अधिकारों की रक्षा कीजिए.
आपको ऐसा नहीं लगता है कि इस तरह की मांग उत्तर पूर्व में एक और 'स्थानीय वर्सेस बाहरी' मुद्दा को जन्म देगा ?
नहीं, बिल्कुल नहीं. त्रिपुरीज एरिया में 23 फीसदी नॉन त्रिपुरीज रहते हैं. इनमें मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई, बंगाली, मणिपुरी रहते हैं. उन्हें भी समान अधिकार और प्रतिष्ठा के साथ रहने का पूरा हक है. हम अतिवादी ताकत नहीं हैं. हम जेनोफॉबिक भी नहीं हैं. हम आर्थिक और राजनीतिक लाइन पर संवैधानिक मांग रख रहे हैं.
क्या हम उम्मीद कर सकते हैं आप किसी गठबंधन की ओर बढ़ेंगे, क्योंकि आपने खुद कहा कि कांग्रेस ने आपकी मांगों का समर्थन किया है, साथ ही भाजपा के भी कई नेताओं ने निजी तौर पर आपकी मांगों को सही कहा ?
हम किसी गठबंधन की ओर नहीं बढ़ेंगे, जब तक कि पार्टियां लिखित तौर हमें हमारी मांगों का समर्थन नहीं कर देती हैं. संविधान के दायरे में ग्रेटर टिपरालैंड का उन्हें समर्थन करना होगा. अगर वे सहमत नहीं होते हैं, तो 14 लाख टिपराज के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा. कोई भी हमसे बातचीत करेगा, तो हम उनके साथ बातचीत के लिए तैयार हैं.
अगले साल होने वाले चुनाव में टीएमसी भी जोर लगा रही है. इस चुनौती से कैसे आप निपटेंगे ?
हर पार्टी को चुनाव लड़ने का अधिकार है. टीएमसी तो धर्मनिरपेक्ष पार्टी है. हमारे और उनके बीच कोई वैचारिक मतभेद नहीं है. फिलहाल, इन क्षेत्रों में वे मजबूत नहीं हैं. हम वहां पर मजबूत हैं. टीएमसी मुख्य तौर पर जहां भाजपा मजबूत है, वहां पर फोकस कर रही है.
आपने कांग्रेस पार्टी क्यों छोड़ दी ?
सीएए के दौरान ये सब हुआ. मेरी राय थी कि हमें सीएए का विरोध करना चाहिए. तब के कांग्रेस महासचिव लुइजिन्हो फलेरो, अब टीएमसी में हैं, की राय हमसे अलग थी. उनका मानना था कि विरोध करने से गैर मुस्लिम और गैर टिपराज नाराज हो जाएंगे. हम इस हाइपोक्रेसी में नहीं विश्वास करते हैं. हमें कहा गया कि आप कुछ नहीं बोलिए. लेकिन हमने टिपराज के हित में पार्टी छोड़ दी.
हाल ही में भाजपा ने त्रिपुरा में नेतृत्व परिवर्तन कर दिया. इस पर आपकी क्या राय है ?
इसका जवाब तो भाजपा ही दे सकती है. पिछले चार साल से अधिक समय में बिप्लब देब पार्टी का चेहरा बने हुए थे. चुनाव से ठीक पहले चेहरा बदल दिया गया. इसका मतलब भाजपा मानती है कि उनकी सरकार ठीक से काम नहीं कर पाई. उत्तराखंड और गुजरात में तो यह फॉर्मूला काम कर सकता है, क्योंकि वहां पर पार्टी का ढांचा है. यहां तो वैसा ढांचा ही नहीं है. भाजपा के समर्थक कौन हैं, एक समय में ये सारे कांग्रेस के कार्यकर्ता होते थे. भाजपा के लिए राह आसान नहीं होगी. भाजपा ने अपने पोस्टर बॉय को छोड़कर एक पूर्व कांग्रेसी को ही अपना चेहरा बना दिया.
क्या आप भाजपा ज्वाइन कर सकते हैं या उनके साथ कोई सहमति बन सकती है ?
देखिए मैंने स्थिति साफ कर दी है, कि जो कोई भी हमें लिखित आश्वासन देता है कि वे टिपरालैंड का समर्थन करते हैं, उनके साथ हम बातचीत करने के लिए तैयार हैं. मैं फिर से आपको कह हूं कि मैं सांसद या मुख्यमंत्री बनने नहीं आया हूं. मेरी कोई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा भी नहीं है. मैं अपनी मौत तक राजनीति नहीं करूंगा. भागवान में मुझे काफी कुछ दिया है. मैं सिर्फ उन लोगों के लिए खड़ा हूं, जो लगातार उपेक्षित हो रहे हैं.