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Parties Sitting On The Fence : बीजद, वाईएसआरसीपी, टीडीपी, बीआरएस और बसपा ने नहीं खोले पत्ते

वैसी पार्टियां जो न तो एनडीए की बैठक में शामिल हुईं और न ही इंडिया (यूपीए) की बैठक में, आने वाले समय में उनका रूख बहुत कुछ तय कर सकता है. बीजद, वाईएसआरसीपी, बीआरएस, टीडीपी और बसपा इनमें प्रमुख हैं. दोनों ही गठबंधनों में शामिल पार्टियां इन्हें मनाने में जुटी हुईं हैं. 2024 के आम चुनाव के दौरान और उसके बाद इनका स्टैंड निश्चित तौर पर देखने लायक होगा. पढ़ें पूरी खबर.

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Published : Jul 18, 2023, 7:50 PM IST

Updated : Jul 18, 2023, 8:13 PM IST

नई दिल्ली : 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आज का दिन पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए बहुत खास रहा. दोनों गठबंधनों ने अपने-अपने घटक दलों की बैठक की. यूपीए, जिसका नाम अब इंडिया रख दिया गया है, उनके पास 26 दल हैं, तो एनडीए के पास 38 दल हैं. हालांकि, अभी भी तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं हुई है. कुछ दल ऐसे हैं, जिन्होंने अभी तक निर्णय नहीं लिया है, और ये दल अपने-अपने राज्यों में काफी मायने रखते हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि इनका रूख या तो इंडिया (गठबंधन) की स्थिति मजबूत कर सकता है, या फिर एनडीए की.

जो दल इन दोनों ही गठबंधनों की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं, अगर उन्होंने इनमें से किसी भी गठबंधन के लिए अपना निर्णय लिया, तो जाहिर है उनका पलड़ा भारी हो जाएगा. इन दलों में बीजू जनता दल (ओडिशा), वाईएसएआरसीपी (आंध्रप्रदेश), टीडीपी (आंध्रप्रदेश), बीआरएस (तेलंगाना) और बीएसपी (यूपी) शामिल हैं. टीडीपी और बीएसपी को छोड़कर बाकी दल अपने-अपने राज्यों में सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.

बीजद ओडिशा में, वाईएसआरसीपी आंध्र प्रदेश में और बीआरएस तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टियां हैं. ये सभी दल मजबूत भी हैं. ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें, आंध्र प्रदेश में 25 और तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं. कुल 63 सीट हैं. 2019 में ओडिशा में भाजपा को आठ और तेलंगाना में चार सीटें मिली थीं. आंध्र प्रदेश में भाजपा का खाता भी नहीं खुल सका था. इसलिए भाजपा की इन पर नजर बनी हुई है.

Odisha CM Naveen Patnaikआ
ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक

आंध्र प्रदेश में भाजपा इस बार अभिनेता पवन कल्याण की जनसेना पार्टी के साथ गठबंधन कर रही है. हालांकि, सूत्र बताते हैं कि भाजपा टीडीपी को भी अपने पाले में करना चाहती है, लेकिन उनकी योजना अभी तक सफल नहीं हुई है. पवन कल्याण और चंद्रबाबू नायडू के बीच अच्छा राजनीतिक संबंध है, लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में शायद इस पर कोई निर्णय हो सके.

लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक जो राजनीतिक परिदृश्य देखा गया है, निश्चित तौर पर वाईएसआरसीपी ने भाजपा को कई बार संकट से उबारा है, खासकर तब जबकि उनका कोई महत्वपूर्ण बिल राज्यसभा में अटक जाता है. इसलिए आंध्र प्रदेश में ऊंट किस करवट बैठेगा, कहना मुश्किल है. साथ ही यहां यह भी जानना होगा कि अभी हाल ही में भाजपा ने आंध्र प्रदेश में डी पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. पुरंदेश्वरी टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की साली हैं. अब लोग ये जानना चाह रहे हैं कि कहीं इनके जरिए भाजपा ने टीडीपी पर दबाव तो नहीं बढ़ा दिया है.

जहां तक बात तेलंगाना की है, तो भाजपा ने यहां पर अपने प्रदेश अध्यक्ष संजय बंडी को हटाकर जी. किशन रेड्डी को जिम्मेदारी सौंप दी है. संजय बंडी जिस आक्रामक तरीके से काम कर रहे थे, उससे उन्हें अच्छा रिस्पॉंस मिल रहा था. लेकिन पार्टी ने रणनीति बदल ली. पार्टी ने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी एटाला राजेंद्रन को सौंपी. एटाला बीआरएस पार्टी छोड़कर भाजपा में आए हैं. उनका नाम राज्य के कद्दावर नेताओं में आता है. सूत्र बताते हैं कि एटाला संजय बंडी की कार्यशैली से खुश नहीं थे. 2019 में भाजपा ने चार सीटें लेकर सबको चौंका दिया था. इस बार पार्टी का परफॉर्मेंस क्या रहेगा, कहना मुश्किल है. शहरी इलाकों में भाजपा को ट्रैक्शन मिल रहा है. निगम चुनाव में भाजपा ने सत्ताधारी पार्टी को कड़ी चुनौती पेश की है.

Former CM of Andhra Pradesh Chandrababu Naidu
आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू

यहां का एक और इंटेरेस्टिंग फैक्ट है. वह बीआरएस से जुड़ा है. कुछ दिनों पहले तक बीआरएस भाजपा पर काफी आक्रामक थी. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर हर दिन भाजपा पर राजनीतिक प्रहार करते थे. वह तीसरे मोर्चे की तलाश में कई राज्यों में भी गए. लेकिन बाद में उनका यह आक्रामक रूख बदल गया. यह बदलाव क्यों हुआ, किसी को पता नहीं है. उनकी बेटी का नाम दिल्ली शराब घोटाला में लिया जा रहा है.

जहां तक बात मायावती की है, तो यह सबको पता है कि वह राजनीतिक रूप से कमजोर जरूर हुई हैं, लेकिन उनका वोट बैंक अभी भी यूपी में सुरक्षित माना जाता है. जाटव समुदाय के बीच यूपी में उनकी लोकप्रियता को कोई चुनौती नहीं दे सकता है. वह किसके साथ समझौता करेंगी, यह तस्वीर साफ नहीं है. बिगत में वह कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के साथ जा चुकी हैं. उन्होंने सपा के साथ भी गठबंधन किया था, लेकिन उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. ऐसा कहा जाता है कि बसपा अपना वोट अपने सहयोगी पार्टी को ट्रांसफर करा देती है, लेकिन उनका वोट बसपा को नहीं मिलता है.

कर्नाटक में जेडीएस से भाजपा का समझौता होगा या नहीं किसी को पता नहीं है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने संकेत दिया था कि जेडीएस से समझौता हो सकता है. लेकिन भाजपा का एक धड़ा मानता है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में वोक्कालिगा समुदाय ने खुद जेडीएस से दूरी बना ली. लिहाजा, पार्टी को बहुत अधिक फायदा नहीं पहुंचेगा. वैसे, कर्नाटक में भाजपा और जेडीएस साथ आती है, तो निश्चित तौर पर यह कांग्रेस को चुनौती दे सकती है. जेडीएस कांग्रेस के साथ पहले ही गठबंधन में रह चुकी है.

राजस्थान के सांसद हनुमान बेनीवाल भी एनडीए की बैठक में आने वाले थे. लेकिन उन्होंने किनारा कर लिया. बेनीवाल की पार्टी का नाम है आरएलएसपी. सूत्र बताते हैं कि भाजपा चाहती है कि वह बेनीवाल की पार्टी के बजाए आरएलडी से समझौता करे. आरएलडी नेता जयंत चौधरी कांग्रेस वाले गठबंधन में पहुंचे थे. भाजपा और अकाली दल की भी बातचीत जारी है. लेकिन भाजपा का एक धड़ा मानता है कि अकाली दलों का अब पहले जैसा प्रभाव नहीं रहा है. फिर भी चुनाव में सेंटीमेंट भी बहुत बड़ी चीज होती है और कब यह किस दल को फायदा पहुंचा दे, कहना मुश्किल है.

जाहिर है, ये कुछ ऐसे दल हैं, जो किनारे पर बैठे हैं, इनका रूख बहुत कुछ तय कर सकता है.

ये भी पढ़ें : NDA vs INDIA : 2024 के लिए बिछती बिसात, एनडीए के बरक्स विपक्षी दलों का 'इंडिया'

नई दिल्ली : 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आज का दिन पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए बहुत खास रहा. दोनों गठबंधनों ने अपने-अपने घटक दलों की बैठक की. यूपीए, जिसका नाम अब इंडिया रख दिया गया है, उनके पास 26 दल हैं, तो एनडीए के पास 38 दल हैं. हालांकि, अभी भी तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं हुई है. कुछ दल ऐसे हैं, जिन्होंने अभी तक निर्णय नहीं लिया है, और ये दल अपने-अपने राज्यों में काफी मायने रखते हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि इनका रूख या तो इंडिया (गठबंधन) की स्थिति मजबूत कर सकता है, या फिर एनडीए की.

जो दल इन दोनों ही गठबंधनों की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं, अगर उन्होंने इनमें से किसी भी गठबंधन के लिए अपना निर्णय लिया, तो जाहिर है उनका पलड़ा भारी हो जाएगा. इन दलों में बीजू जनता दल (ओडिशा), वाईएसएआरसीपी (आंध्रप्रदेश), टीडीपी (आंध्रप्रदेश), बीआरएस (तेलंगाना) और बीएसपी (यूपी) शामिल हैं. टीडीपी और बीएसपी को छोड़कर बाकी दल अपने-अपने राज्यों में सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.

बीजद ओडिशा में, वाईएसआरसीपी आंध्र प्रदेश में और बीआरएस तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टियां हैं. ये सभी दल मजबूत भी हैं. ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें, आंध्र प्रदेश में 25 और तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं. कुल 63 सीट हैं. 2019 में ओडिशा में भाजपा को आठ और तेलंगाना में चार सीटें मिली थीं. आंध्र प्रदेश में भाजपा का खाता भी नहीं खुल सका था. इसलिए भाजपा की इन पर नजर बनी हुई है.

Odisha CM Naveen Patnaikआ
ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक

आंध्र प्रदेश में भाजपा इस बार अभिनेता पवन कल्याण की जनसेना पार्टी के साथ गठबंधन कर रही है. हालांकि, सूत्र बताते हैं कि भाजपा टीडीपी को भी अपने पाले में करना चाहती है, लेकिन उनकी योजना अभी तक सफल नहीं हुई है. पवन कल्याण और चंद्रबाबू नायडू के बीच अच्छा राजनीतिक संबंध है, लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में शायद इस पर कोई निर्णय हो सके.

लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक जो राजनीतिक परिदृश्य देखा गया है, निश्चित तौर पर वाईएसआरसीपी ने भाजपा को कई बार संकट से उबारा है, खासकर तब जबकि उनका कोई महत्वपूर्ण बिल राज्यसभा में अटक जाता है. इसलिए आंध्र प्रदेश में ऊंट किस करवट बैठेगा, कहना मुश्किल है. साथ ही यहां यह भी जानना होगा कि अभी हाल ही में भाजपा ने आंध्र प्रदेश में डी पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. पुरंदेश्वरी टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की साली हैं. अब लोग ये जानना चाह रहे हैं कि कहीं इनके जरिए भाजपा ने टीडीपी पर दबाव तो नहीं बढ़ा दिया है.

जहां तक बात तेलंगाना की है, तो भाजपा ने यहां पर अपने प्रदेश अध्यक्ष संजय बंडी को हटाकर जी. किशन रेड्डी को जिम्मेदारी सौंप दी है. संजय बंडी जिस आक्रामक तरीके से काम कर रहे थे, उससे उन्हें अच्छा रिस्पॉंस मिल रहा था. लेकिन पार्टी ने रणनीति बदल ली. पार्टी ने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी एटाला राजेंद्रन को सौंपी. एटाला बीआरएस पार्टी छोड़कर भाजपा में आए हैं. उनका नाम राज्य के कद्दावर नेताओं में आता है. सूत्र बताते हैं कि एटाला संजय बंडी की कार्यशैली से खुश नहीं थे. 2019 में भाजपा ने चार सीटें लेकर सबको चौंका दिया था. इस बार पार्टी का परफॉर्मेंस क्या रहेगा, कहना मुश्किल है. शहरी इलाकों में भाजपा को ट्रैक्शन मिल रहा है. निगम चुनाव में भाजपा ने सत्ताधारी पार्टी को कड़ी चुनौती पेश की है.

Former CM of Andhra Pradesh Chandrababu Naidu
आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू

यहां का एक और इंटेरेस्टिंग फैक्ट है. वह बीआरएस से जुड़ा है. कुछ दिनों पहले तक बीआरएस भाजपा पर काफी आक्रामक थी. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर हर दिन भाजपा पर राजनीतिक प्रहार करते थे. वह तीसरे मोर्चे की तलाश में कई राज्यों में भी गए. लेकिन बाद में उनका यह आक्रामक रूख बदल गया. यह बदलाव क्यों हुआ, किसी को पता नहीं है. उनकी बेटी का नाम दिल्ली शराब घोटाला में लिया जा रहा है.

जहां तक बात मायावती की है, तो यह सबको पता है कि वह राजनीतिक रूप से कमजोर जरूर हुई हैं, लेकिन उनका वोट बैंक अभी भी यूपी में सुरक्षित माना जाता है. जाटव समुदाय के बीच यूपी में उनकी लोकप्रियता को कोई चुनौती नहीं दे सकता है. वह किसके साथ समझौता करेंगी, यह तस्वीर साफ नहीं है. बिगत में वह कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के साथ जा चुकी हैं. उन्होंने सपा के साथ भी गठबंधन किया था, लेकिन उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. ऐसा कहा जाता है कि बसपा अपना वोट अपने सहयोगी पार्टी को ट्रांसफर करा देती है, लेकिन उनका वोट बसपा को नहीं मिलता है.

कर्नाटक में जेडीएस से भाजपा का समझौता होगा या नहीं किसी को पता नहीं है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने संकेत दिया था कि जेडीएस से समझौता हो सकता है. लेकिन भाजपा का एक धड़ा मानता है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में वोक्कालिगा समुदाय ने खुद जेडीएस से दूरी बना ली. लिहाजा, पार्टी को बहुत अधिक फायदा नहीं पहुंचेगा. वैसे, कर्नाटक में भाजपा और जेडीएस साथ आती है, तो निश्चित तौर पर यह कांग्रेस को चुनौती दे सकती है. जेडीएस कांग्रेस के साथ पहले ही गठबंधन में रह चुकी है.

राजस्थान के सांसद हनुमान बेनीवाल भी एनडीए की बैठक में आने वाले थे. लेकिन उन्होंने किनारा कर लिया. बेनीवाल की पार्टी का नाम है आरएलएसपी. सूत्र बताते हैं कि भाजपा चाहती है कि वह बेनीवाल की पार्टी के बजाए आरएलडी से समझौता करे. आरएलडी नेता जयंत चौधरी कांग्रेस वाले गठबंधन में पहुंचे थे. भाजपा और अकाली दल की भी बातचीत जारी है. लेकिन भाजपा का एक धड़ा मानता है कि अकाली दलों का अब पहले जैसा प्रभाव नहीं रहा है. फिर भी चुनाव में सेंटीमेंट भी बहुत बड़ी चीज होती है और कब यह किस दल को फायदा पहुंचा दे, कहना मुश्किल है.

जाहिर है, ये कुछ ऐसे दल हैं, जो किनारे पर बैठे हैं, इनका रूख बहुत कुछ तय कर सकता है.

ये भी पढ़ें : NDA vs INDIA : 2024 के लिए बिछती बिसात, एनडीए के बरक्स विपक्षी दलों का 'इंडिया'

Last Updated : Jul 18, 2023, 8:13 PM IST
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