नई दिल्ली : संसद की एक समिति ने कुछ राजनीतिक दलों और उनके नेताओं द्वारा की जा रही आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा कि तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों को हिंदी में दिए गए नाम असंवैधानिक नहीं हैं. भाजपा सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने संविधान के अनुच्छेद 348 के शब्दों का संज्ञान लिया, जिसमें कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के साथ-साथ अधिनियमों, विधेयकों और अन्य कानूनी दस्तावेजों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अंग्रेजी होनी चाहिए.
राज्यसभा को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया, "समिति ने पाया कि चूंकि संहिता का पाठ अंग्रेजी में है, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 348 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है. समिति गृह मंत्रालय के जवाब से संतुष्ट है और मानती है कि प्रस्तावित कानून को दिया गया नाम भारत के संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन नहीं है." गौरतलब है कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसए-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) को 11 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था. प्रस्तावित कानून क्रमशः भारतीय दंड संहिता, 1860, आपराधिक प्रक्रिया अधिनियम, 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने केंद्र सरकार द्वारा विधेयकों को हिंदी नाम देने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि (विधेयकों में) हिंदी नाम नहीं दिए जाने चाहिए. जब अंग्रेजी का उपयोग किया जाता है तो इसे अंग्रेजी नाम दिया जा सकता है. यदि हिंदी का उपयोग किया जाता है, तो इसे हिंदी नाम दिया जा सकता है. जब कानूनों का मसौदा तैयार किया जाता है तो यह अंग्रेजी में किया जाता है और बाद में इसका हिंदी में अनुवाद किया जाता है. लेकिन उन्होंने विधेयक के कानूनों और प्रावधानों का मसौदा अंग्रेजी में तैयार किया है और इसे हिंदी नाम दिया है. इसका उच्चारण करना भी मुश्किल है."
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने भी प्रस्तावित आपराधिक कानूनों के लिए हिंदी नामों के उपयोग के खिलाफ कड़ी आपत्ति जताई थी. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा था कि केंद्र के इस कदम से 'भाषाई साम्राज्यवाद की बू आती है' और यह अनौपनिवेशीकरण के नाम पर पुन: औपनिवेशीकरण करने का प्रयास है. मद्रास बार एसोसिएशन ने तीनों विधेयकों के नाम हिंदी में रखने के केंद्र के कदम को संविधान के खिलाफ बताया था. एसोसिएशन ने इस संबंध में एक प्रस्ताव भी पारित किया था.
द्रमुक सांसद दयानिधि मारन ने समिति के अध्यक्ष बृजलाल को एक पत्र भेजकर विधेयकों के हिंदी शीर्षकों पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि ये देश की संगठित प्रकृति का उल्लंघन करते हैं जहां नागरिक हिंदी के अलावा कई अन्य भाषाएं बोलते हैं. हालांकि, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्टालिन के बयान को ‘ओछी राजनीति’ करार दिया था. प्रधान ने कहा था कि इस तरह की ‘तुच्छ राजनीति’ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकती है लेकिन ‘यह भारत की भावना को कमजोर’ करती है.
समिति के विचार-विमर्श के दौरान केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने द्रमुक के एन आर इलांगो, दयानिधि मारन और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह सहित कुछ विपक्षी सांसदों की आपत्तियों को दूर करने का भी प्रयास किया. भल्ला ने कथित तौर पर कहा था कि किसी भी संवैधानिक प्रावधान का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है क्योंकि विधेयक और उनके पाठ अंग्रेजी में लिखे गए हैं. उन्होंने सांसदों से कहा कि जैसा कि अनुच्छेद 348 में सभी विधेयकों, अधिनियमों और अध्यादेशों में अंग्रेजी भाषा के उपयोग का प्रावधान है, अगर विधेयकों को अंग्रेजी में लिखा गया है तो कोई उल्लंघन नहीं है.