नई दिल्ली : राजद नेता मनाेज झा ने कहा कि इसके साथ ही संसद के दोनों सदनों में सरकार को भरोसा दिलाना चाहिए कि किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लिया जाएगा और उन किसानों के परिवारों को मुआवजा दिया जाएगा जिनकी मौत आंदोलन के दौरान हुई है.
राज्यसभा सदस्य झा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में बताना चाहिए कि कृषि कानूनों को वापस लेने पर सहमत होने से पहले किसान आंदोलन को 'बदनाम' क्यों किया गया और इसका 'दुष्प्रचार' क्यों किया गया.
झा को दिए साक्षात्कार में कहा कि विपक्ष संसद की सुचारु कार्यवाही के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए 'चार कदम उठाए' जाएंगे, बशर्ते सत्तारूढ़ पार्टी भी खुले मन से अर्थपूर्ण दिशा में इनमें से दो कदम उठाए.
बिहार उप चुनाव के दौरान राष्ट्रीय जनता दल (राजद)-कांग्रेस के बीच हुई जुबानी जंग को अस्थायी करार देते हुए उन्होंने विपक्ष में दरार की खबरों को खारिज कर दिया. झा ने जोर देकर कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गांरटी के लिए विधेयक लाने की मांग को लेकर पूरा विपक्ष एकजुट है.
कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच चल रहे विवाद पर राजद नेता ने कहा कि अगर कोई राजनीतिक पार्टी अपना दायरा बढ़ाती है तो यह उसके राजनीतिक क्षेत्र का सवाल है, लेकिन संसद में भारत की जनता की आवाज को मिलकर उठाना है. उन्होंने जोर देकर कहा कि संसद में विपक्ष की एकजुटता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
उन्होंने रेखांकित किया कि सरकार किसानों के आंदोलन के केंद्र में रहे तीन कृषि कानूनों को वापस लाने के लिए विधेयक ला रही है. झा ने कहा कि सरकार को सभी कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी की कानूनी गांरटी देने के लिए खातसौर पर अलग से विधेयक लाना चाहिए.
राज्यसभा नेता ने कहा,'किसानों द्वारा इसकी लगातार मांग की जा रही है. रोचक तथ्य है कि यह मांग संविधान सभा की बहस में भी की गई थी और मुझे उम्मीद है कि सरकार अब समझ चुकी है कि किसान समुदाय की आवाज की कितनी ताकत है. उन्होंने इसका अनुभव कर लिया है. झा ने रेखांकित किया कि सभी विपक्षी पार्टियों ने 26 नवंबर को संविधान दिवस कार्यक्रम में शामिल नहीं होने का फैसला किया था क्योंकि उनका मानना है कि ''संविधान के मूल्यों को कुचलना और संविधान दिवस मनाना साथ-साथ नहीं चल सकते हैं.'
उन्होंने कृषि कानून पर संसद के दोनों सदनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बयान देने की मांग की. राजद नेता ने कहा, 'यह एक व्यक्ति का मंत्रिमंडल है. उदाहरण के लिए कृषि कानूनों को रद्द करने के फैसले की जानकारी कृषि मंत्री नहीं दी, बल्कि प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा की. सरकार में जब कोई व्यक्ति सभी समान लोगों में पहला होने के बजाय, पहला और आखिरी बन जाता है तो इस तरह की स्थिति में प्रधानमंत्री के अलावा कोई मायने नहीं रखता. इसलिए उनका बयान हमारे और किसानों के लिए मायने रखता है.'
झा ने कहा, 'हम प्रधानमंत्री से जानना चाहते हैं कि उन्होंने यह (विधायक लाने का) फैसला क्यों लिया? किसानों के लिए -खालिस्तानी, पाकिस्तानी और आंदोलनजीवी- जैसे शब्द क्यों इस्तेमाल किए गए.
आपने आंदोलन को बदनाम किया. आपने आंदोलन के बारे में दुष्प्रचार किया और अंतत: आपको आंदोलन की आवाज सुननी पड़ी. अगर आप ऐसा पहले कर देते तो भारत ने इतना समय नहीं गवांया होता और कृषक समुदाय इतने दिनों तक अपने घरों और खेतों से दूर नहीं रहता.'
(पीटीआई-भाषा)