नई दिल्ली : संसद ने सोमवार को मध्यस्थता विधेयक, 2023 को मंजूरी दे दी, जिसमें मध्यस्थता की प्रक्रिया को सुगम बनाने तथा अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में कमी लाने का प्रावधान किया गया है. इस विधेयक में भारतीय मध्यस्थता परिषद स्थापित करने का भी प्रावधान है. राज्यसभा ने पिछले सप्ताह चर्चा के बाद सरकार द्वारा लाये गये विभिन्न संशोधनों के साथ उक्त विधेयक को मंजूरी दी थी. आज लोकसभा ने संक्षिप्त चर्चा के बाद 'मध्यस्थता विधेयक, 2023' को मंजूरी दे दी.
अगस्त 2021 में यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया, और इसे स्थायी समिति में भेजा गया. सरकार ने समिति के 25 सुझावों को मान लिया. लोकसभा में विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि भारतीय परंपरा में ग्राम पंचायतें मध्यस्थता की भूमिका निभाती थीं, किंतु बाद में पंचायतों की भूमिका कम होने लगी और लोग अदालतों की प्रक्रिया में उलझ गये. उन्होंने कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया को लचीली और स्वैच्छिक प्रक्रिया बनाया गया है. यह किफायती प्रक्रिया है जिसमें धन के साथ समय भी कम लगेगा.
मंत्री ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में करीब 70 हजार और उच्च न्यायालयों में 60 लाख से अधिक मुकदमे लंबित है. उन्होंने कहा कि निचली अदालतों में चार करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं. उन्होंने कहा, 'हमारी कोशिश है कि कैसे इन लंबित मुकदमों को कम किया जाए.' मंत्री ने कहा कि इस विधेयक से लंबित मुकदमों को कम करने में मदद मिलेगी. मेघवाल ने बताया कि समिति ने करीब 52 सुझाव दिए और ये सुझाव बहुत अच्छे थे, जिनमें से 25 सुझावों को स्वीकार कर लिया गया है.
मेघवाल ने कहा कि मध्यस्थ एक तटस्थ तृतीय पक्ष होगा. उन्होंने बताया कि मध्यस्थता परिषद में कानूनी पृष्ठभूमि के लोग होंगे, इसमें समाजिक क्षेत्रों में काम करने वाले लोग भी शामिल होंगे. उन्होंने कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया को एक समयबद्ध प्रक्रिया के तहत पूरा किया जायेगा. विधि एवं न्याय मंत्री ने कहा कि इसके माध्यम से परिवार के झगड़ों में काफी कमी आयेगी. उन्होंने कहा कि अब परिवार टूटेंगे नहीं, बल्कि जुड़ेंगे. मंत्री ने आश्वासन दिया कि इसमें मामलों का निपटान करते समय गोपनीयता का ध्यान रखा जायेगा. उन्होंने कहा कि इस विधेयक में ऑनलाइन माध्यम से मध्स्थता का प्रावधान किया गया है.
मेघवाल ने कहा कि इसमें केवल परिवार या जमीन-जायदाद के झगड़े ही नहीं, बल्कि वाणिज्यिक विवादों को लेकर भी मध्यस्थता को सुलझाने का प्रावधान है. मंत्री ने कहा कि 'अमृतकाल में यह महत्वपूर्ण विधेयक है.' विधि एवं न्याय मंत्री मेघवाल के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी. विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा में हिस्सा लेते हुए भारतीय जनता पार्टी के सुभाष बहेरिया ने कहा कि हमारी पुरातन परंपरा रही है कि गांव में विवाद होने पर लोग आपस में बैठकर इसका निपटारा करते थे.
उन्होंने कहा कि अब इस विधेयक के माध्यम से ऐसी व्यवस्था को कानूनी स्वरूप प्रदान किया जा रहा है. सदस्य ने कहा कि इन विषयों पर ध्यान देने के लिए एक मध्यस्थता परिषद के गठन का प्रावधान किया गया है. चर्चा में हिस्सा लेते हुए वाईएसआर कांग्रेस के एन रेडप्पा ने कहा कि देश की अदालतों में काफी संख्या में मामले लंबित हैं जिनकी संख्या 4.44 करोड़ है. रेडप्पा ने कहा कि इतनी अधिक संख्या में मामलों का निपटारा करने में मध्यस्थ काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. बहुजन समाज पार्टी के मलूक नागर ने कहा कि सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि अदालतों में लंबित मामले कम हों.
भाजपा के वीरेंद्र सिंह ने कहा कि इस कानून के बनने से आत्मनिर्भर भारत का सपना पूरा होगा. विधेयक के कारणों एवं उद्देश्यों में कहा गया है कि इसका उद्देश्य वाणिज्यिक एवं अन्य विवादों का समाधान मध्यस्थता विशेषकर संस्थागत मध्यस्थता के जरिये करने को प्रोत्साहन और सहूलियत दी जाएंगी. इसमें मध्यस्थता के माध्यम से निकाले गये समझौते को लागू करवाने का प्रावधान है. विधेयक में मध्यस्थता करने वालों के पंजीकरण के लिए एक निकाय - भारतीय मध्यस्थता परिषद स्थापित करने का प्रावधान है. विधेयक में ऑनलाइन मध्यस्थता का भी प्रावधान किया गया है. इसमें मध्यस्थता की प्रक्रिया को 180 दिनों में पूरा करने का भी प्रावधान है.
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(भाषा)