नई दिल्ली : परमवीर चक्र से सम्मानित सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव को शनिवार को 75वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर मानद कैप्टन रैंक से सम्मानित किया गया है. 1999 के करगिल युद्ध में शौर्य और पराक्रम से लड़ने वाले 18 ग्रेनेडियर के योगेंद्र सिंह यादव को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उस समय उनकी उम्र सिर्फ 19 साल थी. उन्हें मानद लेफ्टिनेंट रैंक से भी सम्मानित किया जा चुका है.
मई 1999 से जुलाई 1999 के बीच देश ने पाकिस्तान के साथ कश्मीर के करगिल में जंग लड़ी गई थी. करीब 3 महीनों तक चली लड़ाई के बाद कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और जांबाजी के बल पर दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाले चार सैनिकों को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उनमें से एक हैं ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव. मूलरूप से बुलंदशहर के रहने वाले योगेंद्र सिंह यादव ने करगिल युद्ध के दौरान न सिर्फ तोलोलिंग पहाड़ी को पाकिस्तानियों से छीनने में अपनी वीरता दिखाई, बल्कि मशहूर टाइगर हिल पर भी 15 गोली लगने के बाद भी अपना जौहर दिखाया था.
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परमवीर चक्र से सम्मानित सूबेदार मेजर (मानद लेफ्टिनेंट) योगेंद्र सिंह यादव को 75वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को मानद कैप्टन रैंक से सम्मानित किया गया। pic.twitter.com/zAiblcEV1u
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19 साल की उम्र में लड़ी करगिल की लड़ाई
करगिल युद्ध के दौरान 19 साल के योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर में तैनात थे. करगिल के तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानियों ने कब्जा जमा लिया था. उसे छुड़ाने का जिम्मा बारी-बारी कई टीमों ने संभाला था, जिनको पहाड़ की चोटी पर बैठे पाकिस्तानियों ने निशाना बना डाला. 20 मई को तोलोलिंग पर कब्जा करने का अभियान शुरू हुआ. 22 दिन की लड़ाई में नायब सूबेदार लालचंद, सूबेदार रणवीर सिंह, मेजर राजेश अधिकारी और लेफ्टिनेंट कर्नल आर. विश्वनाथन की टीमों ने बारी-बारी धावा बोला था. मगर यह प्रयास असफल रहा. 12 जून 1999 को 18 ग्रेनेडियर और सेकंड राइफल ने अटैक किया. योगेंद्र सिंह यादव इस टीम का हिस्सा बने. गजब की जंग हुई और तोलोलिंग फतेह के बाद जीत का सिलसिला शुरू हो गया. 13 जून को इस टीम ने 8 चोटियों पर कब्जा किया. आदेश के बाद उनकी टीम वापस लौट गई. फिर आगे की लड़ाई का जिम्मा संभाला जम्मू कश्मीर राइफल ने, जिसको विक्रम बत्रा लीड कर रहे थे.
क्षमता से मिली थी घातक प्लाटून में जगह
योगेंद्र बताते हैं कि तोलोलिंग फतह के दौरान घातक प्लाटून के कई जवान शहीद हो गए थे. इसलिए जब 17 हजार फुट ऊंचे टाइगर हिल को छुड़ाने की प्लानिंग शुरू हुई तो बेहतर योद्धाओं की तलाश हुई. तोलोलिंग पर जीत के बाद योगेंद्र सिंह यादव और उनके तीन साथियों को लड़ाई लड़ रहे सैनिकों तक राशन पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया था. इसके लिए उन्हें घंटों पैदल चलना होता था. उनकी शारीरिक क्षमता को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में जगह मिल गई. पहले दो रात और एक दिन की चढ़ाई और फिर लड़ाई.
फिर बारी आई टाइगर हिल फतेह करने की. दो रात और एक दिन कठिन चढ़ाई के बाद सात जवान तीसरी रात टाइगर हिल पर चढ़ गए और वहां मौजूद दुश्मनों को खत्म कर बंकर पर कब्जा कर लिया. मगर दूसरी पहाड़ी के दुश्मनों ने पांच घंटे तक ताबड़तोड़ गोलाबारी की. 15 गोली लगने के बाद भी योगेंद्र की सांसें चल रही थीं. ऐसी हालत में भी उन्होंने एक ग्रेनेड पाकिस्तानियों की ओर फेंका. ग्रेनेड ने अपना काम कर दिया. कई पाकिस्तानी मारे गए. टाइगर हिल दुश्मनों के कब्जों से मुक्त हो चुका था. गंभीर रूप से जख्मी होने बाद भी योगेंद्र ने हिम्मत दिखाई और घिसटते हुए बेस कैंप पहुंचे. उनकी इस बहादुरी के बाद करगिल में लड़ाई का रुख बदल गया.
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