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पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित प्रो. करतार सिंह का निधन

पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित प्रो. करतार सिंह का निधन हो गया है. वे 94 साल के थे.

Kartar Singh
करतार सिंह
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Published : Jan 2, 2022, 9:50 AM IST

नई दिल्ली : पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित प्रो. करतार सिंह का निधन हो गया है. वे 94 साल के थे. जानकारी के अनुसार वे काफी समय से बीमार थे.

बता दें कि शिरोमणि रागी प्रो. करतार सिंह को उनकी सिख पंथ के प्रति सेवाओं को ध्यान में रखते हुए पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था.

प्रो. करतार सिंह का जन्म 1928 में लाहौर के गांव घुंमणके में हुआ था. उन्होंने पारंपरिक वाद्य यंत्रों से गुरबाणी के निर्धारित रागों में गुरबाणी के शब्द गाने का प्रशिक्षण पाया और फिर उसके बाद युवाओं को इसका प्रशिक्षण देकर गुरबाणी के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया.

प्रो. करतार सिंह द्वारा प्रशिक्षित रागी जत्थे आज सिख पंथ की सेवा कर रहे हैं. लगभग 12 साल तक (1991-2002) अद्वती गुरमत संगीत सम्मलेन के कोआर्डिनेटर की भूमिका निभाने वाले प्रो. करतार सिंह ने पंजाब में गुरबाणी के रागों पर गुरमत संगीत के सर्वश्रेष्ठ केंद्र जवद्दी टकसाल में रागियों को तांती रांगों का प्रशिक्षण दिया.

पढ़ें :- सलमान खान के प्रोड्यूसर विजय गलानी का लंदन में कैंसर से निधन

सिख धर्म में गुरबाणी के शब्द तांती रागों में ही गाए जाते थे और इस परंपरा को जीवित रखने में प्रोफेसर का बहुत बड़ा योगदान है.

नई दिल्ली : पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित प्रो. करतार सिंह का निधन हो गया है. वे 94 साल के थे. जानकारी के अनुसार वे काफी समय से बीमार थे.

बता दें कि शिरोमणि रागी प्रो. करतार सिंह को उनकी सिख पंथ के प्रति सेवाओं को ध्यान में रखते हुए पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था.

प्रो. करतार सिंह का जन्म 1928 में लाहौर के गांव घुंमणके में हुआ था. उन्होंने पारंपरिक वाद्य यंत्रों से गुरबाणी के निर्धारित रागों में गुरबाणी के शब्द गाने का प्रशिक्षण पाया और फिर उसके बाद युवाओं को इसका प्रशिक्षण देकर गुरबाणी के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया.

प्रो. करतार सिंह द्वारा प्रशिक्षित रागी जत्थे आज सिख पंथ की सेवा कर रहे हैं. लगभग 12 साल तक (1991-2002) अद्वती गुरमत संगीत सम्मलेन के कोआर्डिनेटर की भूमिका निभाने वाले प्रो. करतार सिंह ने पंजाब में गुरबाणी के रागों पर गुरमत संगीत के सर्वश्रेष्ठ केंद्र जवद्दी टकसाल में रागियों को तांती रांगों का प्रशिक्षण दिया.

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सिख धर्म में गुरबाणी के शब्द तांती रागों में ही गाए जाते थे और इस परंपरा को जीवित रखने में प्रोफेसर का बहुत बड़ा योगदान है.

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