नई दिल्ली : जैन साध्वी आचार्य चंदना (Padma Shri Acharya Chandna) जो कि परिवर्तन-निर्माता और विचारक हैं, जिन्होंने भौतिक संसार को त्यागने के लिए करुणा की अवधारणा को पेश किया और एक क्रांति को आगे बढ़ाने में मदद की. 86 वर्षीया चंदना 1987 में आचार्य की उपाधि प्राप्त करने वाली पहली जैन महिला हैं और पद्म श्री से सम्मानित होने वाली भी पहली (First Jain Sadhvi to be awarded Padma Shri) जैन साध्वी हैं.
वे कहती हैं कि मैंने हमेशा महसूस किया है कि धर्म केवल भगवान का नाम लेने की बात नहीं करता. इसलिए साधु और साध्वी समाज में बदलाव लाने में शारीरिक रूप से योगदान नहीं दे सके. मेरे लिए धर्म लोगों की रोजमर्रा की चुनौतियों को हल करने और उनके जीवन में शांति लाने का प्रयास करने के बारे में है. यह करुणा के बारे में उपदेश देने के बजाय लोगों की सेवा करने के बारे में है. यह जैन विचारधारा और इसे विकसित करने में भी मदद करता है.
वीरायतन आंदोलन की अगुआ
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाली आचार्य चंदना वीरायतन के पीछे की प्रेरक शक्ति हैं. जो राजगीर में स्थित एक परोपकारी संगठन है. जिसके केंद्र अमेरिका, केन्या, यूनाइटेड अरब अमीरात, यूके और सिंगापुर सहित दुनिया के कई हिस्सों में हैं. वीरायतन अस्पतालों, स्कूलों, कॉलेजों और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन करता है.
इसने 2004 की सुनामी, 2006 की सूरत बाढ़ और कोविड महामारी जैसी आपदाओं के दौरान पुनर्वास और आपातकालीन राहत कार्यक्रम भी किए हैं. चंदना पद्म श्री पुरस्कार के बारे में कहती हैं कि यह पुरस्कार अकेले मेरे लिए नहीं है. हजारों डॉक्टर, शिक्षक, स्वयंसेवक हैं और वे लोग जो मानव जाति की सेवा के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं, चाहे वह शिक्षा या चिकित्सा उपचार के रूप में हो या गरीबों और वंचितों की देखभाल सभी के लिए यह पुरस्कार है.
वे कहती हैं कि मैं वीरायतन नामक आंदोलन का हिस्सा रही हूं. मुझे आध्यात्मिक गुरु ने जोड़ा, जो शिक्षा और चिकित्सा देखभाल प्रदान करके जीवन को बदलने में सहायक रहा और कई चुनौतियों का सामना किया है. जिसमें वित्तीय बाधाएं और डकैतों के हमले शामिल हैं. विवरण को याद करते हुए उनकी सहयोगी साध्वी यशा ने कहा कि वीरायतन के शुरुआती दिनों में चंदना सहित महिला भिक्षुओं के एक समूह को 15-20 बाहुबलियों के एक समूह ने पीटा और लूटा था.
जब पुलिस ने विवरण मांगा तो चंदना ने यह कहते हुए कुछ भी बताने से इनकार कर दिया कि वे महावीर के अनुयायी हैं और उन्होंने अपने हमलावरों को माफ कर दिया है. चंदना, जिन्होंने एक बार जैन मूर्तियों और विभिन्न धर्मों का अध्ययन करने के लिए 12 साल तक मौन व्रत लिया, ने 1973 में राजगीर को वीरायतन के मुख्यालय के रूप में चुना. वे कहती हैं कि सत्कर्म (अच्छे कर्म) के बिना धर्म अधूरा है. धर्म जीवन को इसकी संपूर्णता से स्वीकार करता है. किसी भी शारीरिक या मानसिक पीड़ा से छुटकारा पाने की दिशा में काम करना ही सच्चा धर्म है.
सेवा को ही मानती हैं धर्म
उन्होंने कहा कि सेवा अध्यात्म से अलग नहीं है बल्कि सेवा ही अध्यात्म है. अपने गैर-अनुरूपतावादी विचार के बारे में बताते हुए चंदना ने कहा कि अगर कोई लड़का मेरे सामने गिर गया है और मैं उसे यह सोचकर मदद नहीं करती कि मेरे धर्म में लड़के को छूना मना है तो मैं इस तरह के विचार में विश्वास नहीं करती. उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके लिए मानवता सबसे बड़ा धर्म है और वह अंतिम सांस तक मानव जाति के लिए काम करेंगी. उन्होंने जोर देकर कहा कि मेरी दृष्टि न बदली है और न कभी बदलेगी.
चंदना अमेरिका में अध्यात्म या जैन धर्म पर व्याख्यान देने सहित गरीबों और बीमारों से घिरे बिहार के धूल भरे मैदानों में काम करने में समान रूप से सहज हैं. उसका दिन सुबह 4 बजे शुरू होता है और वह इस उम्र में भी देर तक काम करती हैं. वे कहती हैं कि मैं अपनी जीवन यात्रा से खुश हूं. जहां तक मैं लोगों के जीवन में थोड़ा बदलाव ला सकी. मैं जिंदा रहने तक मेहनत करते रहना चाहती हूं और दूसरों को भी प्रेरित करना चाहती हूं. मैं 86 साल की हूं और मैं इतनी बंधी हुई हूं कि मुझे अपनी उम्र का एहसास नहीं होता है. लोगों ने बड़े पैमाने पर मेरा समर्थन किया है.
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क्या एक महिला होने के नाते एक गैर-परंपरागत रास्ता चुनना बहुत मुश्किल था? उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि महिलाएं किसी भी मायने में पुरुषों से कमतर हैं. आज महिलाएं नई ऊंचाईयां छू रही हैं. हां, शुरुआत में मुझे अपने काम को सही ठहराने के लिए लोगों की मानसिकता बदलनी पड़ी और लोगों का विश्वास हासिल करना पड़ा. लेकिन धीरे-धीरे सभी ने हमारे प्रयास में हमारा साथ दिया.
(PTI)