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Waiting For Organ Transplantation : वेटिंग लिस्ट हो रही लंबी, ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन सूची में शामिल 20 से ज्यादा मरीजों की हो रही हर रोज मौत

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Published : Aug 6, 2023, 3:38 PM IST

Organ shortage - अंगदान को लेकर भारत में प्रतीक्षा सूची बढ़ती ही जा रही है. हालात ऐसे हैं कि वेटिंग लिस्ट में शामिल कम से कम 20 लोग हर रोज मौत की मुंह में समा रहे हैं. उससे भी ज्यादा बदतर स्थिति यह है कि जिंदा लोग अंगदान करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन मौत के बाद उनके परिजन मृतकों का अंगदान करने के लिए राजी नहीं होते हैं. जबकि हकीकत ये है कि एक व्यक्ति की मौत होने के बाद वह कम स कम 83 जिंदा लोगों की जिंदगी बदल सकता है.

transplantation
प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा सूची

नई दिल्ली : भारत में अंगदान यानी ऑर्गन डोनेशन की दर बहुत ही कम है. यही वजह है कि कई लोग इंतजार करते-करते मौत के करीब पहुंच जाते हैं, लेकिन उन्हें अंग नहीं मिल पाता है, और आखिर में उनकी मौत हो जाती है.

आंकड़े बताते हैं कि तीन लाख से ज्यादा लोग ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन की सूची में शामिल हैं. इंतजार करते-करते इस सूची में शामिल कम-से-कम 20 लोगों की मौत प्रत्येक दिन हो रही है. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय का आंकड़ा बताता है कि साल 2014 में 6,916 लोगों ने अंगदान किया था, जबकि 2022 में इस सूची में 16,041 लोगों का का नाम जुड़ा. अब आपको यह लग रहा होगा कि आंकड़े तो बढ़े हैं, इसलिए समस्याएं कम हुई हैं, पर ऐसा नहीं है.

आप इस आंकड़े पर गौर कीजिए, और विश्लेषण कीजिए. 10 लाख लोगों की आबादी पर अंगदान करने वालों (डोनर) की संख्या मात्र एक है. और यह रेशियो पिछले 10 सालों से यथावत बना हुआ है. विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में उनकी संख्या कम-से-कम प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर 65 तो होनी ही चाहिए.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में 20 एम्स और 600 मेडिकल कॉलेज हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इन कॉलेजों से कम से कम एक-एक डोनेशन (अंगदान) हरेक साल मिल जाए, तो भी स्थिति बेहतर हो सकती है.

ऐसा नहीं है कि भारत में ही अंग दान करने वालों की संख्या कम है, कमोबेश पूरी दुनिया में आंकड़े ऐसे ही है. वैश्विक सूची पर नजर डालेंगे तो वहां पर प्रतीक्षा सूची में शामिल 10 फीसदी रोगियों को ही समय पर अंग मिल पाता है. हां, अमेरिका और स्पेन जैसे देशों की स्थिति थोड़ी बेहतर जरूर है. इन दोनों देशों में अंगदान का अनुपात अच्छा है. वहां पर 10 लाख की आबादी पर 35-50 लोग अंगदान के लिए उपलब्ध हो जाते हैं.

भारत में अंग दान करने वालों में 85 फीसदी वे लोग हैं, जो जिंदा रहते हुए अंगदान करते हैं, जबकि मौत के बाद उनके परिजन अंगदान करने के लिए तैयार नहीं होते हैं. इन आंकड़ों पर एक नजर डालिए. डिसिज्ड कैटेगरी यानी मौत के तुरंत बाद परिजनों की सहमति देने पर 2022 में 1589 किडनी, 761 लिवर और 250 हार्ट दान किया गया.

हमें एक साल में करीब दो लाख किडनी ट्रांसप्लांटेशन की जरूरत पड़ती है. लेकिन 10 हजार ही उपलब्ध हो पाते हैं. इसलिए इसका समाधान हो सकता है यदि मौत के तुरंत बाद परिजन अंग दान की सहमति प्रदान कर दें. क्योंकि प्रतीक्षा सूची लगातार बढ़ती ही रहती है. प्रत्येक 10 मिनट पर एक लोगों का नाम प्रतीक्षा सूची में जुड़ रहा है.

वैसे भी, अब तो सरकार ने नियमों में ढिलाई भी दे दी है. पहले की कड़ी शर्तें हटा दी गई हैं. पहले उम्र की बाधा थी, उसे भी सरकार ने हटा दिया. आवासीय नियमों और उम्र सीमा में छूट दी गई है. 65 साल से अधिक उम्र के रोगियों को भी अंगदान किया जा सकता है. आप किसी भी राज्य में पंजीकरण करा सकते हैं, चाहे आपका मूल दूसरा ही राज्य क्यों न हो. रजिस्ट्रेशन कराने के बाद उस रोगी को एक पहचान नंबर दिया जाता है. यह नंबर नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांटेशन ऑर्गेनाइजेशन द्वारा प्रदान किया जाता है.

इसी तरह से सरकार ने ट्रांस्पलांटेशन की सूची में नाम दर्ज कराने के लिए फीस की शर्त हटा दी है. कुछ राज्यों ने फीस लगा रखी थी. अगर आप अंगदान करते हैं तो सरकार भी सुविधाएं देती हैं. आप सरकारी कर्मचारी हैं तो आपको सीएल भी मिलेगा. भारत में अंगदान पर कानून 1994 से ही है.

हालांकि, इसमें एक बात का विशेष ख्याल रखना पड़ता है, कि अंगदान सीमित समय में किया जाता है. समय बीत जाने पर वह अंग बेकार हो जाता है. इसलिए सरकार और कई निजी संस्थाएं भी अंगदान को लेकर जागरूकता अभियान चला रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग इस सूची में नाम दर्ज करें और इसका फायदा जरूरतमंदों को मिले. पिछले साल के आंकड़े बताते हैं कि मौत के बाद अंगदान करने वालों की सबसे अधिक संख्या तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, बंगाल और महराष्ट्र में है.

आंकड़े ये भी बताते हैं कि तीन चौथाई डोनर महिलाएं होती हैं. एक व्यक्ति के अंगदान से आठ जिंदगियां बचाई जा सकती हैं. मान लीजिए जिस व्यक्ति की मौत हो जाती है, और उसके परिजन अंगदान को राजी हो जाते हैं, तो उसकी दो किडनियों से दो रोगियों को डायलिसिस से छुटकारा मिल जाएगा. उसके एक लिवर से दो अन्य जिंदगियां बच जाएंगी. इसका मतलब है कि लिवर ट्रांसप्लांटेशन से भी दो लोगों की जिंदगी बच सकती है. इसी तरह से पैनक्रियाज और हार्ट ट्रांसप्लांटेशन से दो अन्य की जिंदगी बच सकती है. टीशू डोनर से 75 अन्य लोगों की जिंदगी में बेहतरी आ सकती है. किसी को कॉर्निया, तो किसी को स्किन, तो किसी को बोन, किसी कौ कार्टिलेज वैगरह में मदद मिलती है.

आपको बता दें कि एक बार जब आप अपना नाम अंगदान के लिए रजिस्टर करा देते हैं, तो उसके बाद आपका मेडिकल टेस्ट किया जाता है, ताकि उस अंग की वर्किंग कंडिशन क्या होती है, इसकी जानकारी मिल सके. एक सरकारी कमेटी इस रिपोर्ट की समीक्षा करती है. इस कमेटी का यह भी काम है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई भी व्यक्ति पैसे के लिए अंगदान नहीं कर रहा हो. मरीज को यह लिख कर देना होता है कि वह अपनी मर्जी से अंगदान कर रहा है.

नोट : भारत सरकार की ओर से जारी -------- अंग दान और प्रत्यारोपण के बारे में किसी भी जानकारी के लिए एनओटीटीओ की वेबसाइट www.notto.mohfw.gov.in पर जा सकते हैं. टोलफ्री हेल्पलाइन नंबर 180114770 पर कॉल कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें : Kerala News: हादसे में मारे गए 10वीं के टॉपर के अंगों ने बचाई 6 लोगों की जान

नई दिल्ली : भारत में अंगदान यानी ऑर्गन डोनेशन की दर बहुत ही कम है. यही वजह है कि कई लोग इंतजार करते-करते मौत के करीब पहुंच जाते हैं, लेकिन उन्हें अंग नहीं मिल पाता है, और आखिर में उनकी मौत हो जाती है.

आंकड़े बताते हैं कि तीन लाख से ज्यादा लोग ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन की सूची में शामिल हैं. इंतजार करते-करते इस सूची में शामिल कम-से-कम 20 लोगों की मौत प्रत्येक दिन हो रही है. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय का आंकड़ा बताता है कि साल 2014 में 6,916 लोगों ने अंगदान किया था, जबकि 2022 में इस सूची में 16,041 लोगों का का नाम जुड़ा. अब आपको यह लग रहा होगा कि आंकड़े तो बढ़े हैं, इसलिए समस्याएं कम हुई हैं, पर ऐसा नहीं है.

आप इस आंकड़े पर गौर कीजिए, और विश्लेषण कीजिए. 10 लाख लोगों की आबादी पर अंगदान करने वालों (डोनर) की संख्या मात्र एक है. और यह रेशियो पिछले 10 सालों से यथावत बना हुआ है. विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में उनकी संख्या कम-से-कम प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर 65 तो होनी ही चाहिए.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में 20 एम्स और 600 मेडिकल कॉलेज हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इन कॉलेजों से कम से कम एक-एक डोनेशन (अंगदान) हरेक साल मिल जाए, तो भी स्थिति बेहतर हो सकती है.

ऐसा नहीं है कि भारत में ही अंग दान करने वालों की संख्या कम है, कमोबेश पूरी दुनिया में आंकड़े ऐसे ही है. वैश्विक सूची पर नजर डालेंगे तो वहां पर प्रतीक्षा सूची में शामिल 10 फीसदी रोगियों को ही समय पर अंग मिल पाता है. हां, अमेरिका और स्पेन जैसे देशों की स्थिति थोड़ी बेहतर जरूर है. इन दोनों देशों में अंगदान का अनुपात अच्छा है. वहां पर 10 लाख की आबादी पर 35-50 लोग अंगदान के लिए उपलब्ध हो जाते हैं.

भारत में अंग दान करने वालों में 85 फीसदी वे लोग हैं, जो जिंदा रहते हुए अंगदान करते हैं, जबकि मौत के बाद उनके परिजन अंगदान करने के लिए तैयार नहीं होते हैं. इन आंकड़ों पर एक नजर डालिए. डिसिज्ड कैटेगरी यानी मौत के तुरंत बाद परिजनों की सहमति देने पर 2022 में 1589 किडनी, 761 लिवर और 250 हार्ट दान किया गया.

हमें एक साल में करीब दो लाख किडनी ट्रांसप्लांटेशन की जरूरत पड़ती है. लेकिन 10 हजार ही उपलब्ध हो पाते हैं. इसलिए इसका समाधान हो सकता है यदि मौत के तुरंत बाद परिजन अंग दान की सहमति प्रदान कर दें. क्योंकि प्रतीक्षा सूची लगातार बढ़ती ही रहती है. प्रत्येक 10 मिनट पर एक लोगों का नाम प्रतीक्षा सूची में जुड़ रहा है.

वैसे भी, अब तो सरकार ने नियमों में ढिलाई भी दे दी है. पहले की कड़ी शर्तें हटा दी गई हैं. पहले उम्र की बाधा थी, उसे भी सरकार ने हटा दिया. आवासीय नियमों और उम्र सीमा में छूट दी गई है. 65 साल से अधिक उम्र के रोगियों को भी अंगदान किया जा सकता है. आप किसी भी राज्य में पंजीकरण करा सकते हैं, चाहे आपका मूल दूसरा ही राज्य क्यों न हो. रजिस्ट्रेशन कराने के बाद उस रोगी को एक पहचान नंबर दिया जाता है. यह नंबर नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांटेशन ऑर्गेनाइजेशन द्वारा प्रदान किया जाता है.

इसी तरह से सरकार ने ट्रांस्पलांटेशन की सूची में नाम दर्ज कराने के लिए फीस की शर्त हटा दी है. कुछ राज्यों ने फीस लगा रखी थी. अगर आप अंगदान करते हैं तो सरकार भी सुविधाएं देती हैं. आप सरकारी कर्मचारी हैं तो आपको सीएल भी मिलेगा. भारत में अंगदान पर कानून 1994 से ही है.

हालांकि, इसमें एक बात का विशेष ख्याल रखना पड़ता है, कि अंगदान सीमित समय में किया जाता है. समय बीत जाने पर वह अंग बेकार हो जाता है. इसलिए सरकार और कई निजी संस्थाएं भी अंगदान को लेकर जागरूकता अभियान चला रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग इस सूची में नाम दर्ज करें और इसका फायदा जरूरतमंदों को मिले. पिछले साल के आंकड़े बताते हैं कि मौत के बाद अंगदान करने वालों की सबसे अधिक संख्या तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, बंगाल और महराष्ट्र में है.

आंकड़े ये भी बताते हैं कि तीन चौथाई डोनर महिलाएं होती हैं. एक व्यक्ति के अंगदान से आठ जिंदगियां बचाई जा सकती हैं. मान लीजिए जिस व्यक्ति की मौत हो जाती है, और उसके परिजन अंगदान को राजी हो जाते हैं, तो उसकी दो किडनियों से दो रोगियों को डायलिसिस से छुटकारा मिल जाएगा. उसके एक लिवर से दो अन्य जिंदगियां बच जाएंगी. इसका मतलब है कि लिवर ट्रांसप्लांटेशन से भी दो लोगों की जिंदगी बच सकती है. इसी तरह से पैनक्रियाज और हार्ट ट्रांसप्लांटेशन से दो अन्य की जिंदगी बच सकती है. टीशू डोनर से 75 अन्य लोगों की जिंदगी में बेहतरी आ सकती है. किसी को कॉर्निया, तो किसी को स्किन, तो किसी को बोन, किसी कौ कार्टिलेज वैगरह में मदद मिलती है.

आपको बता दें कि एक बार जब आप अपना नाम अंगदान के लिए रजिस्टर करा देते हैं, तो उसके बाद आपका मेडिकल टेस्ट किया जाता है, ताकि उस अंग की वर्किंग कंडिशन क्या होती है, इसकी जानकारी मिल सके. एक सरकारी कमेटी इस रिपोर्ट की समीक्षा करती है. इस कमेटी का यह भी काम है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई भी व्यक्ति पैसे के लिए अंगदान नहीं कर रहा हो. मरीज को यह लिख कर देना होता है कि वह अपनी मर्जी से अंगदान कर रहा है.

नोट : भारत सरकार की ओर से जारी -------- अंग दान और प्रत्यारोपण के बारे में किसी भी जानकारी के लिए एनओटीटीओ की वेबसाइट www.notto.mohfw.gov.in पर जा सकते हैं. टोलफ्री हेल्पलाइन नंबर 180114770 पर कॉल कर सकते हैं.

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