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बंगाल में एक सींग वाले गैंडों की संख्या बढ़ी, बसाने के लिए जगह तलाश रहा वन विभाग - एक सींग वाले गैंडों की संख्या बढ़ी

पश्चिम बंगाल में एक सींग वाले गैंडों (one horned rhinoceros) की संख्या बढ़ी है. वन विभाग इन्हें अन्य जगहों पर बसाने की सोच रहा रहा, लेकिन इसके लिए उसे केंद्र से इजाजत लेनी होगी.

One horned rhinos
एक सींग वाले गैंडों की संख्या बढ़ी
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Published : Jul 4, 2022, 9:21 PM IST

कोलकाता : एक सकारात्मक घटनाक्रम के तहत बंगाल में एक सींग वाले गैंडों की संख्या में वृद्धि हुई है. इनकी संख्या बढ़ने से काफी उम्मीदें जगी हैं. लेकिन वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इतने गैंडों के लिए उत्तर बंगाल और असम में निवास के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है इसलिए राज्य में जलदापारा और गोरुमारा के अलावा वन विभाग इन्हें स्थानांतरित करने के लिए नई जगहों की तलाश कर रहा है.

वन मंत्री ज्योतिप्रिया मल्लिक (Jyotipriya Mallick) के अनुसार असम में काजीरंगा (Kaziranga) के साथ-साथ राज्य में जलदापारा (Jaldapara) और गोरुमारा (Gorumara sanctuaries) अभयारण्य एक सींग वाले गैंडों के लिए कुछ प्रमुख घूमने वाले क्षेत्र हैं. मार्च में अपडेट की गई संख्या के अनुसार वन विभाग ने कहा कि यहां 292 गैंडे हैं. इनमें से 101 नर हैं जबकि 134 मादा गैंडे हैं. बाकी का लिंग निर्धारित नहीं किया जा सका है. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 1982-1983 के दौरान दो अभयारण्यों में केवल 16 गैंडे थे. जैसे-जैसे समय के साथ गैंडों की संख्या बढ़ती गई, यह अब 300 के करीब है. इस स्थिति में अलीपुरद्वार के बक्सा और कूचबिहार के पातालखावा में गैंडों के लिए नए बुनियादी ढांचे का निर्माण करना अनिवार्य हो गया है.

पुनर्वास के लिए लेनी होगी इजाजत : हाल ही में एक सींग वाला गैंडा पातालखावा गया था, जहां करीब दो महीने बिताए हैं. ऐसे में वन विभाग का मानना ​​है कि गैंडों के आवास के लिए अनुकूल माहौल बनाया गया है. लेकिन इन सबके बाद भी सरकार चाहे तो भी कुछ गैंडों को कूचबिहार या अलीपुरद्वार में पुनर्वास नहीं कर सकती है. इसके लिए केंद्र से अनुमति लेनी होगी. हालांकि मंत्री को अनुमति मिलने की उम्मीद है. अनुमति मिलते ही लगभग 100 गैंडों को नए स्थानों पर बसाया जा सकता है.

हालांकि, वन विभाग के मुख्य वन्यजीव अधिकारी देबल रॉय ने कहा कि सरकार चाहती है कि गैंडे अपने दम पर तोरसा के किनारे जाएं. फिर अलग से अनुमति की जरूरत नहीं होगी. इसीलिए गैंडों के रहने के लिए अनुकूल वातावरण बनाया गया है. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक करीब 100 साल पहले पातालखावा में गैंडे रहते थे, लेकिन भोजन के अभाव में वे कहीं और चले गए. वर्तमान में स्थिति बदल गई है इसलिए राज्य चाहता है कि गैंडे वहां जाकर फिर से बसें.

असम : काजीरंगा में बाढ़ के पानी से बचकर रोड तक पहुंचा गैंडा, देखें वीडियो

कोलकाता : एक सकारात्मक घटनाक्रम के तहत बंगाल में एक सींग वाले गैंडों की संख्या में वृद्धि हुई है. इनकी संख्या बढ़ने से काफी उम्मीदें जगी हैं. लेकिन वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इतने गैंडों के लिए उत्तर बंगाल और असम में निवास के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है इसलिए राज्य में जलदापारा और गोरुमारा के अलावा वन विभाग इन्हें स्थानांतरित करने के लिए नई जगहों की तलाश कर रहा है.

वन मंत्री ज्योतिप्रिया मल्लिक (Jyotipriya Mallick) के अनुसार असम में काजीरंगा (Kaziranga) के साथ-साथ राज्य में जलदापारा (Jaldapara) और गोरुमारा (Gorumara sanctuaries) अभयारण्य एक सींग वाले गैंडों के लिए कुछ प्रमुख घूमने वाले क्षेत्र हैं. मार्च में अपडेट की गई संख्या के अनुसार वन विभाग ने कहा कि यहां 292 गैंडे हैं. इनमें से 101 नर हैं जबकि 134 मादा गैंडे हैं. बाकी का लिंग निर्धारित नहीं किया जा सका है. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 1982-1983 के दौरान दो अभयारण्यों में केवल 16 गैंडे थे. जैसे-जैसे समय के साथ गैंडों की संख्या बढ़ती गई, यह अब 300 के करीब है. इस स्थिति में अलीपुरद्वार के बक्सा और कूचबिहार के पातालखावा में गैंडों के लिए नए बुनियादी ढांचे का निर्माण करना अनिवार्य हो गया है.

पुनर्वास के लिए लेनी होगी इजाजत : हाल ही में एक सींग वाला गैंडा पातालखावा गया था, जहां करीब दो महीने बिताए हैं. ऐसे में वन विभाग का मानना ​​है कि गैंडों के आवास के लिए अनुकूल माहौल बनाया गया है. लेकिन इन सबके बाद भी सरकार चाहे तो भी कुछ गैंडों को कूचबिहार या अलीपुरद्वार में पुनर्वास नहीं कर सकती है. इसके लिए केंद्र से अनुमति लेनी होगी. हालांकि मंत्री को अनुमति मिलने की उम्मीद है. अनुमति मिलते ही लगभग 100 गैंडों को नए स्थानों पर बसाया जा सकता है.

हालांकि, वन विभाग के मुख्य वन्यजीव अधिकारी देबल रॉय ने कहा कि सरकार चाहती है कि गैंडे अपने दम पर तोरसा के किनारे जाएं. फिर अलग से अनुमति की जरूरत नहीं होगी. इसीलिए गैंडों के रहने के लिए अनुकूल वातावरण बनाया गया है. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक करीब 100 साल पहले पातालखावा में गैंडे रहते थे, लेकिन भोजन के अभाव में वे कहीं और चले गए. वर्तमान में स्थिति बदल गई है इसलिए राज्य चाहता है कि गैंडे वहां जाकर फिर से बसें.

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