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Odisha Septage Treatment : ओडिशा को फॉलो किया तो देश में नहीं होगी खाद की कमी !

ओडिशा ने जिस तरीके से सेप्टेज ट्रीटमेंट प्लांट को व्यवस्थित किया है, अगर देश के दूसरे राज्यों ने इसे भी फॉलो किया, तो खाद की बहुत हद तक कमी पूरी हो सकती है. भारत नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम आधारित खादों की पूर्ति आयात से करता है. फसल उत्पादन को बढ़ाने में इनका बड़ा योगदान होता है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 15, 2023, 2:04 PM IST

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हैदराबाद : ओडिशा का सेप्टेज ट्रीटमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर पूरे देश में सबसे अच्छा है. सीएसई ने अपने अध्ययन में पाया कि अगर इस मॉडल को पूरे देश में अपनाया गया, तो देश में फॉस्फोरस और पोटेशियम आधारित खाद की जरूरतें पूरी हो सकती हैं. इनका प्रयोग फसलों के उत्पादन को बढ़ाने में किया जाता है. भारत नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम आधारित खादों की पूर्ति आयात से करता है.

यह एक तथ्य है कि फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा उत्पन्न फीकल स्लज नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम (एनपीके) का एक रिच सोर्स होता है. और इसका इस्तेमाल फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है. फसलों के लिहाज से इनमें आवश्यक पोषक तत्व भरपूर होते हैं. दूसरी ओर स्थिति यह है कि भारत पोटेशियम और फॉस्फोरस की मांग को पूरा नहीं कर पाता है, इसलिए उसे आयात पर निर्भर रहना पड़ता है.

अब सीएसई ने अपने एक अध्ययन में पाया कि अगर इस पर काम किया गया, तो उपचारित सीवेज से हम करीब-कीब 4531 टन यूरिया का विकल्प ढूंढ सकते हैं. इतना टन यूरिया हमें आयात कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी. ये तीनों तत्व फसल उत्पादन को बढ़ाने वाले पोषक तत्व हैं.

मल कीचड़ उपचार संयंत्रों (एफएसटीपी) और सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) द्वारा उत्पन्न मल कीचड़ नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी) और पोटेशियम (के) का एक समृद्ध स्रोत हो सकता है. फसल उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले ये तीन आवश्यक पोषक तत्व हैं.

सीएसई के वर्कशॉप में इन तथ्यों पर विचार किया गया. सीएसई ने हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट ओडिशा सरकार के साथ मिलकर इसे अरेंज किया था. यहां पर एफएसटीपी और एसटीपी के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं, इस पर गंभीरता से विचार मंथन किया गया. ओडिशा सरकार ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं. उनके कुछ कदम काफी सराहनीय हैं.

सीएसई ने पाया कि उनके कुछ प्रयोग इतने अच्छे हैं कि इसे पूरे देश में रिपीट किया जा सकता है. उन्होंने बायो सोलिड (जैव-ठोस) के रि-यूज (पुनः उपयोग) को लेकर कुछ कदम उठाए हैं. सीएसई के निदेशक दीपेंद्र सिंह कपूर ने कहा कि पूरे देश में 500 से अधिक एफएसटीपी हैं. इनमें से 250 टन बायो सोलिड प्रति दिन जेनरेट करते हैं. इसके अलावा 1469 एसीटीपी से प्रतिदिन 104210 टन बायोसोलिड बनते हैं.

सीएसई ने यह भी पाया कि पूरे देश में सबसे अच्छा बुनियादी ढांचा ओडिशा का है. सरकार ने 115 शहरों में इसे स्थापित किया है. सीएसई में लेबोरेट्री विभाग के उपनिदेशक विनोद विजयन ने कहा कि सेप्टेज और सीवेज से एकत्रित बायो सोलिड, जैवठोस, पदार्थों के पुनः उपयोग में मुख्य बाधा 2022 का फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर है. ये ऑर्डर इन्हें खाद मानकों के अनुरूप नहीं मानते हैं.

सीएसई के प्रोग्राम मैनेजर डॉ सुमिता सिंघल ने कहा कि उन्होंने देश के चार राज्यों के 47 एफएसटीपी के आंकड़ों का अध्ययन किया है. इसमें उन्होंने इसका मूल्यांकन और बायोसोलिड को फिर से उपयोग करने पर विचार किया.

ये भी पढ़ें : गजब खेती! खाद-बीज नहीं किसान खेतों में कर रहे शराब का छिड़काव

हैदराबाद : ओडिशा का सेप्टेज ट्रीटमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर पूरे देश में सबसे अच्छा है. सीएसई ने अपने अध्ययन में पाया कि अगर इस मॉडल को पूरे देश में अपनाया गया, तो देश में फॉस्फोरस और पोटेशियम आधारित खाद की जरूरतें पूरी हो सकती हैं. इनका प्रयोग फसलों के उत्पादन को बढ़ाने में किया जाता है. भारत नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम आधारित खादों की पूर्ति आयात से करता है.

यह एक तथ्य है कि फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा उत्पन्न फीकल स्लज नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम (एनपीके) का एक रिच सोर्स होता है. और इसका इस्तेमाल फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है. फसलों के लिहाज से इनमें आवश्यक पोषक तत्व भरपूर होते हैं. दूसरी ओर स्थिति यह है कि भारत पोटेशियम और फॉस्फोरस की मांग को पूरा नहीं कर पाता है, इसलिए उसे आयात पर निर्भर रहना पड़ता है.

अब सीएसई ने अपने एक अध्ययन में पाया कि अगर इस पर काम किया गया, तो उपचारित सीवेज से हम करीब-कीब 4531 टन यूरिया का विकल्प ढूंढ सकते हैं. इतना टन यूरिया हमें आयात कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी. ये तीनों तत्व फसल उत्पादन को बढ़ाने वाले पोषक तत्व हैं.

मल कीचड़ उपचार संयंत्रों (एफएसटीपी) और सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) द्वारा उत्पन्न मल कीचड़ नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी) और पोटेशियम (के) का एक समृद्ध स्रोत हो सकता है. फसल उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले ये तीन आवश्यक पोषक तत्व हैं.

सीएसई के वर्कशॉप में इन तथ्यों पर विचार किया गया. सीएसई ने हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट ओडिशा सरकार के साथ मिलकर इसे अरेंज किया था. यहां पर एफएसटीपी और एसटीपी के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं, इस पर गंभीरता से विचार मंथन किया गया. ओडिशा सरकार ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं. उनके कुछ कदम काफी सराहनीय हैं.

सीएसई ने पाया कि उनके कुछ प्रयोग इतने अच्छे हैं कि इसे पूरे देश में रिपीट किया जा सकता है. उन्होंने बायो सोलिड (जैव-ठोस) के रि-यूज (पुनः उपयोग) को लेकर कुछ कदम उठाए हैं. सीएसई के निदेशक दीपेंद्र सिंह कपूर ने कहा कि पूरे देश में 500 से अधिक एफएसटीपी हैं. इनमें से 250 टन बायो सोलिड प्रति दिन जेनरेट करते हैं. इसके अलावा 1469 एसीटीपी से प्रतिदिन 104210 टन बायोसोलिड बनते हैं.

सीएसई ने यह भी पाया कि पूरे देश में सबसे अच्छा बुनियादी ढांचा ओडिशा का है. सरकार ने 115 शहरों में इसे स्थापित किया है. सीएसई में लेबोरेट्री विभाग के उपनिदेशक विनोद विजयन ने कहा कि सेप्टेज और सीवेज से एकत्रित बायो सोलिड, जैवठोस, पदार्थों के पुनः उपयोग में मुख्य बाधा 2022 का फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर है. ये ऑर्डर इन्हें खाद मानकों के अनुरूप नहीं मानते हैं.

सीएसई के प्रोग्राम मैनेजर डॉ सुमिता सिंघल ने कहा कि उन्होंने देश के चार राज्यों के 47 एफएसटीपी के आंकड़ों का अध्ययन किया है. इसमें उन्होंने इसका मूल्यांकन और बायोसोलिड को फिर से उपयोग करने पर विचार किया.

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